यह ख़बर 08 अक्टूबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

सबसे ज्यादा 'सर्च' किए गए नरेंद्र मोदी, शहरी युवा पसोपेश में - किसे दें वोट

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का फाइल चित्र

नई दिल्ली:

अगले साल मई में होने वाले लोकसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले गूगल इंडिया द्वारा कराए एक सर्वे से ज़ाहिर हुआ है कि देश की 40 प्रतिशत से अधिक शहरी युवा आबादी अब तक इस बात का फैसला नहीं कर पाई है कि उन्हें किस राजनैतिक दल को वोट देना है। इसी सर्वे से यह भी स्पष्ट हुआ कि पिछले छह महीने में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए गए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इंटरनेट पर सबसे ज़्यादा सर्च किए गए हैं।

इस सूची में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाकर दिल्ली विधानसभा चुनाव से नवंबर में राजनैतिक करियर शुरू करने जा रहे अरविंद केजरीवाल के नाम नरेंद्र मोदी के बाद दर्ज हैं। सूची में छठे नंबर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मौजूद हैं।

सबसे ज़्यादा सर्च किए गए राजनैतिक दलों की सूची में भी नरेंद्र मोदी की बीजेपी ही शीर्ष पर है जबकि कांग्रेस, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) तथा शिवसेना क्रमशः दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें नंबर पर हैं।

सर्च के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि देश के सबसे ज़्यादा सर्च किए गए शीर्ष 10 राजनेताओं में से चार कांग्रेस के हैं, जबकि बीजेपी के दो ही नेता इस सूची में शामिल हैं।

न केवल 42 फीसदी मतदाता असमंजस में दिखे बल्कि यह भी उजागर हुआ कि ज्यादातर मतदाता वोट देने के लिए स्थानीय उम्मीदवार को उतना ही महत्वपूर्ण मानते हैं जितना कि किसी राजनीतिक दल को। केवल 11 फीसदी मतदाताओं ने माना कि उनके फैसले में किसी भी दल के प्रधानमंत्री पद के दावेदार प्रत्याशी की भी अहम भूमिका रहेगी।

गूगल इंडिया द्वारा किए गए इस सर्वे में 108 चुनाव क्षेत्रों के सात हजार इंटरनेट यूजर से सवाल पूछे गए। माना जा रहा है कि इस नमूने के जरिए देशभर की 543 सीटों के करीब 20 फीसदी हिस्से का अनुमान लगाया जा सकता है।  

सर्वे से पता चलता है कि शहरी भारत स्थानीय उम्मीदवार के बारे में इंटरनेट से ज्यादा जानकारी जुटा रहा है। करीब आधे लोगों का मानना है कि इंटरनेट पर इन लोगों के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है।

लोगों का मानना है कि जिन राजनीतिज्ञों की इंटरनेट पर मौजूदगी है वे ज्यादा प्रगतिशील और पारदर्शी हैं।

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सोशल मीडिया पर डाली गई पोस्ट से संकट में फंसने की हालिया कुछ घटनाओं के बाद दो तिहाई मतदाताओं ने ऐसा करने से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं।