परिमल कुमार की कलम से : बीजेपी के पैराशूटर उम्मीदवार

दिल्ली भाजपा अध्यक्ष सतीश उपाध्याय

नई दिल्ली:

दिल्ली में बीजेपी की लिस्ट बहुत सारे ऐसे नामों से भरी है जो कल तक बीजेपी के ख़िलाफ़ थे। पार्टी के भीतर ऐसे बाहरी लोगों को लेकर गुस्सा है। प्रदर्शनों का दौर है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। उम्मीदवार से लेकर विरोध उस चेहरे को लेकर भी है जिसके नेतृत्व में बीजेपी ने चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। किरण बेदी को लेकर उत्तर पूर्वी दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी ने इशारों-इशारों में निशाना साधा था। फिर बाद में बयान से वापस हो लिए।

बुधवार को भी दिल्ली बीजेपी दफ़्तर के बाहर कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन चलता रहा। नारेबाजी होती रही। यहां तक कि दिल्ली बीजेपी के प्रभारी प्रभात झा के साथ धक्का-मुक्की तक की नौबत आ गई। इसके पहले कई नेताओं के समर्थकों ने मंगलवार को भी हंगामा किया। कृष्णानगर में हर्षवर्द्धन और किरण बेदी की बैठक में भी कार्यकर्ता उदासीन दिखे। हालांकि प्रभात झा पार्टी में किसी असंतोष से इनकार कर रहे हैं। कहते हैं इतना होता है। अब तक कोई भी बगावत करके पर्चा नहीं भरा।

लेकिन हकीकत ये है कि इन चुनावों में पंद्रह फ़ीसदी से ज़्यादा सीटें बीजेपी ने बाहर से आए नेताओं को दे दी हैं। मुख्यमंत्री पद की दावेदार किरण बेदी सहित सुल्तानपुर माजरा सीट से प्रभु दयाल साई, शकूरबस्ती से डॉ एससी वत्स, मटिया महल से शकील अंजुम देहलवी, पटेल नगर से कृष्णा तीरथ, जंगपुरा से एमएस धीर, देवली से अरविंद कुमार, अंबेडकरनगर से अशोक चौहान, ओखला से ब्रह्म सिंह विधूड़ी, विकासपुरी से संजय सिंह और
पटपड़गंज से विनोद कुमार बिन्नी को टिकट दे दिया गया जो पार्टी में हाल फिलहाल ही शामिल हुए थे।

टिकट नहीं मिलने को लेकर प्रदेश पार्टी अध्यक्ष सतीश उपाध्याय तक को सफाई देनी पड़ गई। उपाध्याय ने कहा कि सब चुनाव लड़ेंगे तो लड़वाएगा कौन। मेरा खुद का फैसला है कि चुनाव न लड़ू। लेकिन वो तस्वीर भी मीडिया को दिखी जिसमें सतीश उपाध्याय को टिकट नहीं मिलने को लेकर उनके समर्थकों ने हंगामा किया था।

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चुनाव में सब जायज है। नहीं तो कार्यकर्ताओं की बात करने वाली पार्टी कमान भला किसी बाहरी को क्यों देती। बात जमीन की होती है और उम्मीदवार पैराशूट से दाखिल होते हैं। हो सकता है कि दिल्ली के दंगल के इसका फायदा भी मिले, लेकिन घर के दंगल का क्या जिनकी उम्मीद पर पानी फिर गया। लिहाजा कहना मुनासिब है कि राजनीति में न कोई तेरा, न कोई मेरा। सब मौके के साथ हैं। सब मौके की बात है।