शरद शर्मा कलम से : खुद अपनी दुश्मन है 'आप'

नई दिल्ली:

जबसे मैंने लोकपाल आंदोलन को कवर किया और आज जब मैं अब तक के सबसे रोमांचक दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी को कवर कर रहा हूं। मैंने सबसे पहली बात यहीं नोटिस की कि इस आंदोलन या इस पार्टी को किसी और दुश्मन से खतरा नहीं है क्योंकि ये किसी को मौका मिलने ही नहीं देती और खुद ही अपना नुकसान कर लेती है।

गुरुवार को सुबह से न्यूज़ चैनल पर आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य शांति भूषण ने आम आदमी पार्टी पर अरविंद केजरीवाल पर अपनी राय मीडिया में देकर पार्टी की शांति भंग कर दी। बुधवार को ही दिल्ली में नामांकन का दौर खत्म हुआ था। उम्मीद थी कि गुरुवार से प्रचार में तेजी दिखेगी लेकिन हुआ वो जो सोचा न था।

शांति भूषण के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल नाकाम रहे हैं और उनको संयोजक पद से हट जाना चाहिए। शांति भूषण का यहां तक कहना है कि केजरीवाल ने स्वराज के सिद्धांत को त्याग दिया है और वो सुनते तो सबकी है, लेकिन बहुमत की राय पर नहीं चलते बल्कि अपनी बात सब पर थोपते हैं।

शांति भूषण असल में पार्टी में टिकट बंटवारे से परेशान हैं। उनका कहना है कि पार्टी में अपने कार्यकर्ताओं और ईमानदार की बजाय जिताऊ उम्मीदवार को टिकट देने पर तवज्जो दी जा रही है। अरविंद केजरीवाल का कहना है कि पार्टी में सबको अपनी बात कहने का हक है और जहां तक टिकट की बात है इंटरनल लोकपाल की जांच में जो उम्मीदवार साफ नहीं थे, उनके टिकट पार्टी ने काटे भी हैं।

विरोधी कोई आरोप लगाए तो समझ में आता है, लेकिन जब कोई अपना और वो भी शांति भूषण के कद वाला, तो न तो बात समझ आती है और न ही पार्टी समझा पाती है। लेकिन, मैं इससे भी बड़े एक सवाल पर रोशनी डाल रहा हूं और वो यह कि ये कोई पहला मौका नहीं जब पार्टी को उसके अपने नुकसान पहुंचा रहे हों।

पार्टी को सबसे ज़्यादा नुकसान उस इस्तीफे ने पहुंचाया जो 49 दिन सरकार चलाकर दिया गया और जिसकी वजह से लोकसभा चुनाव में पार्टी ने निराशाजनक प्रदर्शन किया। केजरीवाल और उनकी पार्टी आज भी उसी की वजह ही लोगों को समझा रहे हैं।

पार्टी को नुकसान पहुंचाया उसके अपने विधायक विनोद कुमार बिन्नी ने जो बागी हो गए। चाहे वजह कुछ भी हो, मामले को संभालने में पार्टी कामयाब नहीं हो पाई और पार्टी की साख को नुकसान हुआ। जनवरी 2014 में पार्टी ने सरकार में रहते हुए जिस तरह से दो दिन दिल्ली के रेल भवन पर धरना किया, उससे भी पार्टी को नुकसान हुआ।
 
जून 2014 में पार्टी नेता योगेंद्र यादव और मनीष सिसोदिया में चिट्ठी का आदान-प्रदान सार्वजनिक हुआ जिसमें दोनों एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे थे। उससे पार्टी को नुकसान हुआ। यह पार्टी अभी नई है, इसलिए विरोधियों के पास इसके खिलाफ़ कहने को बहुत ज़्यादा कुछ है नहीं, लेकिन पार्टी में जब ऐसे वाक्ये होते हैं तो विरोधी भी क्यों टेंशन ले? हां, कहने को कहा जा सकता है कि पार्टी नई है, सीख रही और लोकतंत्र में जब आप एक नई कोशिश करते हैं तो ये सब होना स्वाभाविक है।

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लेकिन, फिर भी बात तो यही है कि इन मामलों की वजह से ही किसी बाहरी ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया यदि इसके अलावा कोई मामला मिले जिसमें अपनों से पहले बाज़ी विरोधी मार ले गए हों तो मुझे ज़रूर बताना।