कांग्रेस इतनी ही सीटों के 'लायक' है : समाजवादी पार्टी

कांग्रेस इतनी ही सीटों के 'लायक' है : समाजवादी पार्टी

सपा-कांग्रेस गठबंधन लगभग खटाई में पड़ चुका है

लखनऊ:

राजनीति में कभी कभी एक एक दिन भी पहाड़ सा लगने लगता है - 48 घंटे पहले की बात है जब कांग्रेस के बड़े नेता और यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ज़ोर शोर से दावा कर रहे थे कि राज्य में दोनों पार्टियों का गठबंधन होने जा रहा है और छोटे मोटे पेंच को सुलझा लिया जाएगा. लेकिन मामला जितना सरल लग रहा था, उतना है नहीं. सपा नेता नरेश अग्रवाल ने दिल्ली में कह दिया है कि 'बातचीत अब आगे नहीं होगी.' वहीं कांग्रेस के राज बब्बर का यह कहना कि 'बातचीत अभी जारी है', इस बात की तरफ संकेत करता है कि कौन सी पार्टी ज्यादा जरूरतमंद है. शनिवार शाम सूत्रों ने बताया कि गठबंधन को बचाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को हस्तक्षेप करना पड़ा है.

दोनों ही पार्टियों के बीच 10 सीटों को लेकर मामला अटका पड़ा है. अखिलेश यादव ने कहा है कि वह कांग्रेस को यूपी की 403 सीटों में से ज्यादा से ज्यादा 99 सीट दे सकते हैं. वहीं कांग्रेस ने 110 की मांग की है, हालांकि बताया जा रहा है कि वह 104 सीटों पर संतुष्ट होने के लिए राज़ी है. शुक्रवार को समाजवादी पार्टी ने 208 उम्मीदवारों की लिस्ट लाकर कांग्रेस को चौंका दिया, साथ ही यह भी साफ कर दिया कि कांग्रेस जितनी सीटों की उम्मीद कर रही है, उससे कम में ही उसे संतुष्ट होना पड़ेगा. इसके अलावा दो और समस्याएं हैं - सपा ने उन नौ सीटों पर भी अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं जो फिलहाल कांग्रेस की हैं, साथ ही यह भी संकेत दिए गए हैं कि रायबरेली और अमेठी में 10 निर्वाचन क्षेत्र में भी वह उन सात सीटों को नहीं छोड़ने वाली जिस पर फिलहाल उसका कब्ज़ा है. यह सर्वविदित है कि कांग्रेस के लिए इस इलाके के क्या मायने हैं क्योंकि यह पार्टी के सबसे बड़े नेता सोनिया और राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र है.

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कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि पार्टी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने शनिवार को सुबह 8 से शाम चार बजे तक अखिलेश यादव के साथ बिताया लेकिन बात बनती नहीं दिखी. बताया जा रहा है कि जब अखिलेश की अपने पिता से अनबन चल रही थी और समाजवादी पार्टी के दो हिस्से होने वाले थे, तब मुख्यमंत्री ने कांग्रेस को 140 सीटों का प्रस्ताव दिया था. लेकिन अब पिता को पीछे हटाकर पार्टी की कमान अपनी हाथों में लेने के बाद अखिलेश ने कांग्रेस का कोटा कम कर दिया है.

सपा सूत्रों का यह भी कहना है कि 2012 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सिर्फ 50 सीटों में समाजवादी पार्टी से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया था. इसलिए 99 सीटें जरूरत से ज्यादा है और इसी में से कांग्रेस अगर चाहे तो छोटी क्षेत्रीय पार्टियों को सीटें दे सकती है.

वहीं सोमवार को बिहार की तर्ज पर यूपी में महागठबंधन की संभावना पर तब विराम लग गया था जब राष्ट्रीय लोक दल के नेता अजीत सिंह ने तय किया था कि वह बीजेपी के खिलाफ बन रहे इस मोर्चे का हिस्सा नहीं बनेंगे. वहीं कांग्रेस ने काफी कोशिश की थी कि आरएलडी इस व्यवस्था का हिस्सा बन जाए. हालांकि समाजवादी पार्टी ने साफ किया था कि क्योंकि आरएलडी को जाट समुदाय का समर्थन हासिल है और उससे हाथ मिलाने का मतलब उन मुसलमानों वोटरों से दूरी बना लेना है जिनका 2013 के मुज्जफरनगर दंगों में जाटों से आमना सामना हुआ था.

सपा सूत्रों ने यह भी कहा है कि 2012 में जब बीजेपी राज्य में नंबर 3 पर थी, तब कांग्रेस ने सिर्फ 28 सीटें जीती थीं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अभूतपूर्व जीत के बाद कांग्रेस की हालत ख़स्ता है और उसे अपने इस हाल को स्वीकार कर लेना चाहिए.


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