नवजोत सिंह सिद्धू (फाइल फोटो)
खास बातें
- नवजोत सिंह सिद्धू के आप पार्टी में जाने की संभावना थी
- सिद्धू को कांग्रेस ने भी अपने पाले में लाने की कोशिश की थी
- बीजेपी छोड़ चुके सिद्धू के लिए आगे की रणनीति बनाना चुनौती
नई दिल्ली: कांग्रेस ने औपचारिक रूप से इस बात से इनकार कर दिया है कि उसकी नवजोत सिंह सिद्धू से कोई बातचीत चल रही है. कांग्रेस की पंजाब प्रभारी आशा कुमारी ने एनडीटीवी-इंडिया को बताया कि "कांग्रेस पार्टी की सिद्धू से या किसी और से कोई बातचीत नहीं चल रही है, हमने पहले दिन से ये साफ़ किया है कि अगर कोई कांग्रेस के संविधान और नेतृत्व को मानते हुए पार्टी में आना चाहता है तो उसका स्वागत है."
इससे पहले बुधवार को दिल्ली में आवाज़-ए-पंजाब के नेताओं नवजोत सिंह सिद्धू, परगट सिंह और बैंस बंधुओं की दिल्ली में बैठक हुई जिसमें नवजोत सिंह सिद्धू को आगे का विकल्प फाइनल करने के लिए अधिकृत किया गया और संकेत मिले कि आवाज़-ए-पंजाब यानी सिद्धू के नेतृत्व वाला मंच कांग्रेस के साथ जा सकता है.
आवाज़-ए-पंजाब के नेता और पूर्व भारतीय हॉकी कप्तान परगट सिंह ने एनडीटीवी इंडिया से बात करते हुए कहा कि 'नवजोत सिद्धू को आगे का फैसला लेने के लिए अधिकृत किया गया है और कांग्रेस में जाने के विकल्प खुले हैं.' कांग्रेस की पंजाब प्रभारी आशा कुमारी ने बताया कि 'हमारी सिद्धू से कोई बात नहीं चल रही लेकिन परगट सिंह ज़रूर हाल में कांग्रेस नेता कैप्टेन अमरिंदर सिंह से मिलने आये थे, लेकिन इसमें कोई ठोस बात निकलकर नहीं आई.'
#आप के दरवाज़े बंद, फंस गए सिद्धू
असल में नवजोत सिंह सिद्धू समेत आवाज़-ए-पंजाब के नेता अब फँस चुके हैं. नवजोत सिंह सिद्धू और परगट सिंह बीजेपी और अकाली दल छोड़कर आए हैं. ऐसे में उनके सामने कांग्रेस या आप ही विकल्प हैं, लेकिन पिछले दिनों सिद्धू और परगट सिंह ने आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविन्द केजरीवाल पर जिस तरह के हमले किए उससे अब आम आदमी पार्टी में उनके रास्ते बंद से हो गए साथ ही आम आदमी पार्टी 117 में से 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित भी कर चुकी है. ऐसे इन नेताओं के सामने कांग्रेस में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं दिखता.
कांग्रेस मज़बूत स्थिति में
अब जब सिद्धू और दूसरे नेता अपनी मुट्ठी खोल चुके हैं जिसमें उनके सामने कांग्रेस के अलावा कोई विकल्प ही नहीं दिखता तो ऐसे में अब कांग्रेस भी सिद्धू और अन्य नेताओं के साथ बातचीत के लिए उतावली नहीं और मोलभाव की सूरत में वो मज़बूत स्थिति में है क्योंकि अब कांग्रेस से ज़्यादा सिद्धू और अन्य नेताओं को कांग्रेस की ज़रूरत है. ऐसे में अगर बातचीत हुई भी तो कांग्रेस का पलड़ा पहले से ज़्यादा भारी रहेगा.