नीतीश कुमार की चुनौती : मैं प्रधानमंत्री से बहस के लिए तैयार हूं... क्या वह तैयार हैं?

नीतीश कुमार की चुनौती : मैं प्रधानमंत्री से बहस के लिए तैयार हूं... क्या वह तैयार हैं?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ रवीश कुमार

पटना:

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, पीएम नरेंद्र मोदी के पास बिहार में कारपेट बॉम्बिंग के लिए समय है, लेकिन देश के 300 सूखे ज़िलों के लिए समय नहीं है। नीतीश ने गोहत्या के मुद्दे को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा है।

पीएम मोदी से बहस के सवाल पर नीतीश कुमार ने कहा, मैं बहस के लिए तैयार हूं। मैं सबसे पहले विकास के मुद्दे पर बहस करना चाहूंगा। उन्हें भी बहस करने दीजिए। मध्य प्रदेश 'बीमारू' राज्यों की सूची से कैसे बाहर आया। क्या वह बहस करेंगे। वह समाज को बांटने के एजेंडे पर चलना चाहते हैं।

एनडीटीवी से बात करते हुए नीतीश कुमार ने कहा है कि बीजेपी पहले विकास की बात करती थी और अब गोहत्या के मुद्दे को भुना रही है। नीतीश ने कहा कि बीजेपी नेता जानबूझ कर एक मुद्दे को उछाल कर लोगों को अपने जाल में फंसाना चाहते हैं जबकि बिहार में 1955 से ही गोहत्या पर प्रतिबंध लगा हुआ है।

नीतीश ने यह भी कहा कि बीजेपी के पास अब कोई मुद्दा नहीं रह गया है इसलिए वह बीफ बैन को मुद्दा बना रही है। आजम खान के यूएन को चिट्ठी लिखने के बयान पर बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा कि मुद्दे का देश के कानून के मुताबिक हल निकाला जाए।

VIDEO: देखें, नीतीश कुमार के साथ रवीश कुमार का इंटरव्‍यू...


दिनभर कैंपेन ट्रेल में हम आपके साथ रहे, मेरा पहला सवाल यह है कि आपने रैली में तमाम मुद्दों को छुआ, मगर गोमांस का मुद्दा जिसे बीजेपी हाईलाइट कर रही है, उनका हर प्रवक्ता इस पर बयान दे रहा है, सुशील मोदी ने कहा था हमारी सरकार आई तो हम गोमांस पर प्रतिबंध लगाएंगे, पर आपने इस पुरे मुद्दे को छोड़ दिया, क्यों?

ये मसला ही नहीं है यहां, वो इस मुद्दे को यूपी से इम्पोर्ट करना चाह रहे हैं। उनके पास कोई मुद्दा नहीं बचा तो जबरन मुद्दा बनाना चाहते हैं। जैसे मैच फिक्स्ड होता है वैसे यह भी फिक्स है। किसी भी समझदार नागरिक को पता चलेगा कि ये तो जबरन का मुद्दा उठाया जा रहा है। देखिए, बिहार में इन लोगों ने पूरी कोशिश की है कि किसी तरह से सांप्रदायिक तौर पर polarization किया जाए, लेकिन ये फसाद करने में कामयाब हो नहीं पाए। इन्होंने छोटे-छोटे झंझट करवाने की तकनीक अपना ली है, जैसे यहां हड्डी फेंक दो, मूर्ति को नुकसान पहुंचाओ। यह एक पुराना तरीका है, हम शुरू से इस बात पर सावधान रहे हैं, पुलिस प्रशासन भी इस पर सचेत रहा है। उनको बैठे–बिठाये यह भारी मुद्दा लगता है।
 
उनके सारे प्रवक्ता इस मुद्दे को उठा रहे हैं। लालू जी के बयान के बाद से उन्हें लगने लगा है कि एक बड़ा मुद्दा हाथ  लग गया है, लेकिन आप इस मुद्दे पर क्यों चुप हैं? वे तो बोल रहे हैं कि उनकी सरकार आएगी तो इस पर प्रतिबंध लगा देंगे?
 
वे लोग मुद्दा उठाना चाहते हैं, हम इसमें उनकी कोई सहायता नहीं करेंगे। हम जानते हैं कि ये कोई मुद्दा नहीं है, क्योंकि बिहार में तो पहले से ही प्रतिबंध है। गोहत्या पर प्रतिबंध तो 1955 से है, कोई नई बात नहीं है। मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन कोई जाकर 1955 का कानून तो देखता ही नहीं है। वो देख लेंगे तो उन्हें पता चलेगा कि उनका पूरा बयान कितना हास्यास्पद है। ऐसी कोई घटना यहां हुई ही नहीं है, इसे तो पोलराइज़ किया जा रहा है, दूसरी तरफ कोई इसे यूएन में ले जाने को कह रहा है, हमारे देश का मुद्दा, इसका समाधान तो हमारे देश के कानून के हिसाब से होगा न, संयुक्त राष्ट्र में क्या ताकत है। यूपी के लोग जिस तरह की बात कर रहे हैं, दोनों तरफ से उनका यह कहना है कि कोई ऐसा करेगा तो यही हश्र होगा। दूसरी तरफ एसपी की तरफ से लोग बात कर रहे हैं, दरअसल, यूपी में आगे के चुनाव को देखकर ऐसी बातें की जा रही हैं, ये उप्र की घटना है, यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ है और न ही संभावना है।
 
फिर भी आप बोलते हैं रैली में... अखबारों के ज़रिये लोगों तक बात पहुंच रही है?
बोलना न बोलना आदमी अपनी बात कहेगा न, हमारे पास कहने को इतने मुद्दे हैं। ये मुद्दा तो बस लोगों का ध्यान भटकाने के लिए उठाया जा रहा है। खासकर वे लोग आरक्षण के सवाल पर फंस गए हैं, 2014 के लोकसभा चुनाव में इन्होंने जितने वादे किए सब जुमले साबित हुए हैं।
 
लोगों का कहना है कि उनके एक वक्तव्य को आपने भी बड़ा मुद्दा बनाया, तो बीजेपी को भी हक़ है कि लालू प्रसाद यादव के बयान को वह भी मुद्दा बनाए।
यह कोई आरएसएस प्रमुख का बयान नहीं है। आरएसएस के मुखपत्र Organiser में उनका आधिकारिक इंटरव्यू है। बीजेपी की सफाई को कोई मतलब ही नहीं है। प्रधानमंत्री ने तो इस पर कुछ कहा नहीं, कह भी नहीं सकते। और बीजेपी वालों का आरएसएस के सामने क्या वजूद है।
 
उनकी तो 40 रैलियां होने वाली हैं, हो सकता है उसी में कह दें।
अब कहने का क्या मतलब रह जाएगा। राम जेठमलानी ने मंडल कमीशन के पक्ष में वकालत की थी। आज से 2 दिन पहले ही उन्होंने पटना में आकर कह दिया, सारी बातें कह दी। देखिये वो एक ऐसा गंभीर मुद्दा है तो उससे बचने के लिए दूसरे मुद्दे को उछाला जा रहा है।
 
 मैं देख रहा हूं कि लालूजी अपनी बात आक्रामकता के साथ कह रहे हैं, लेकिन आप शालीनता और मर्यादा नहीं तोड़ रहे, लेकिन लालू जी की बातों को बीजेपी टारगेट कर रही है। उससे आपको परेशानी हो रही है, आप चुप होकर क्यों निकल रहे हैं?
 
नीतीश : ऐसा नहीं है, हम पूरी बात कह रहे हैं और आपने सभी सभाओं में सुना होगा, जो बिहार के मुद्दे हैं, उस पर हम स्पष्ट राय दे रहे हैं। जहां तक भाषा का सवाल है तो ये मेरे संस्कार नहीं है। ये जिस तरह से पले बढ़े होंगे, ये जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हैं, ये उनको ही मुबारक हो। देश के प्रधानमंत्री पद पर बैठा आदमी, एक राज्य के मुख्यमंत्री के बारे में कहता है कि इसका डीएनए गड़बड़ है। इस तरह की भाषा का क्या कोई दूसरा उपयोग करेगा। इन लोगों के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने लालूजी के बारे में क्या कहा, ऐसी भाषा का उपयोग तो वही कर सकते हैं।
 
लालू यादव ने भी तो 'नरभक्षी' कहा है, 'दुर्योधन' कहा है, 'धृतराष्ट्र' कहा है...
लालूजी ने जो कहा और उन्होंने जो कहा मैं तो बस यही कहना चाहता हूं कि भाषा की मर्यादा की बात है तो मैं तो अपने रास्ते पर ही चलूंगा।

आपको नहीं लगता की बीजेपी ने जैसे सीमा लांघी है वैसे लालूजी ने भी लांघ दी है?
इसके विवाद में हम जाना नहीं चाहते, लेकिन पहले बीजेपी की तरफ से कहा गया था।
 
जब लालू यादव ने अगड़ा-पिछड़ा वाली बात कही थी तब गिरिराज सिंह का कुछ ऐसा ही बयान आया था?
किस-किस का नाम ले रहे हैं आप, वो तो सबको पाकिस्तान भेज रहे थे लोकसभा चुनाव में, कितनों को भेज सके। ये सब polarization के लिए काम कर रहे हैं और अब इन्हें समझ आ गया है कि वे जो तथाकथित विकास की बात कर रहे थे, उससे कुछ हासिल नहीं होना है, क्योंकि ये हमसे मुकाबला कर रहे हैं।
 
वो आप पर भी टारगेट कर रहे हैं...
हम पर टारगेट कर रहे हैं का क्या मतलब है
 
आपको वो पैसा दे देंगे, एक रुपया भी देंगे तो आप लौटा देंगे, ऐसा प्रधानमंत्री ने कहा है?
ये प्रधानमंत्री के स्तर की बात है? वित्तमंत्री ने जब हमें दिए जाने वाले पैकेज की जानकारी पूरी दुनिया को दे दी, तब उसके तीन हफ्ते बाद हमको पत्र लिखा गया। हमने पत्र का जवाब भी दिया। फिर मेरे पत्र के जवाब में वित्तमंत्री का जवाब आया... ये जितनी योजनाएं हैं, वे केंद्र सरकार के मंत्रालय द्वारा लागू की जाएंगी। जब केंद्र सरकार द्वारा लागू की जाने वाली योजनाएं हैं तो राज्य सरकार को पैसा कैसे देंगे। ऊपर से ये बोलना कि ये तो अहंकारी है पैसा लौटा देंगे तो ये क्या बात हुई? राज्य सरकार को पैसा देने का प्रश्न नहीं है, राज्य को पैसा देने की बात है।
 
आपने ऐसे कभी पैसा लौटाया है, क्योंकि अखबारों में हम पढ़ रहे थे कि बीजेपी के मंत्रियों का आरोप है कि आपने पैसों की मांग देरी से की है, एक किसी विभाग ने कहा था कि आपने 89 की देरी की है?
हमको नहीं मालूम है, पूरे देश में सूखे की स्थिति है। 300 से ज्यादा जिले सूखाग्रस्त है, उनको है चिंता। यह सब बिहार में टहल रहे हैं, कोई सुनने वाला तो है नहीं इसलिए आखिर ये प्रधानमंत्री की 40 सभा लगा दी। इससे पता चलता है कि इनमें कोई दम नहीं है। कोई मुद्दा ही नहीं बचा है इसलिए ये लोग समाज को पोलराइज़ करना चाहते हैं।
 
बीजेपी का कहना है कि 40 सभाएं होंगी तो महागठबंधन उड़ जाएगा
अच्छा, ये तो काउंटिंग के दिन पता चलेगा
 
आपको लगता है कि जीतेंगे...?
 अरे, इनका अता-पता नहीं रहेगा... देख नहीं रहे हैं, यह तो इनके डेस्परेशन (Desperation) का परिचायक है...
 
...पर बिहार में जो मॉडल देख रहा हूं...?
 अच्छा-भला बिहार में इलेक्शन हो रहा था विकास के मुद्दे पर, ये बीजेपी के लोग कह रहे थे... अब आ गए किस चीज़ पे...? गाय की रक्षा करने वाले, गाय का मांस खाने वाले... अरे, आप बताएं, यह तो बिहार का मुद्दा ही नहीं है, यहां तो गोहत्या पर पहले से प्रतिबंध है...

 ...पर उनका एक मॉडल दिख रहा है कि डेवलपमेंट प्लस सांप्रदायिकता का, आप भी विकास की बात करते हैं, लेकिन लालू जी की सारी बातों से जातिवाद का टोन आता है...
 
नहीं, नहीं... जातिवाद टोन की शुरुआत बीजेपी ने की है... इन्होंने कहा है 'ओबीसी पीएम'... 2014 के चुनाव में कहा था 'पिछड़ा प्रधानमंत्री', कहीं कहा 'अतिपिछड़ा' है, और अभी हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि बीजेपी ने देश को पहला 'ओबीसी पीएम' दिया है, तो क्या लोग जवाब नहीं देंगे, लोग बताएंगे नहीं कि देश के पहले 'ओबीसी पीएम' एचडी देवेगौड़ा थे, और क्या पीएम ओबीसी होता है, अपर कास्ट होता है, हिन्दू होता है, मुस्लिम होता है...?
 
लेकिन बिहार के चुनाव में जब आपकी पहली रैली हुई, तब लालू यादव ने एक कम्युनिटी को पूरा टारगेट कर दिया था...
 
नहीं, वह तो बीजेपी के लोग पहले कर रहे हैं... वे बार-बार यदुवंशियों की बात कर रहे हैं, तो क्या लालू जी बैठे रहेंगे, जवाब नहीं देंगे... हमारे जैसा सब कोई है...
 
जो जवाब आप नहीं दे रहे हैं, वह लालू जी दे रहे हैं...?
 
नहीं, हम तो उनको नोटिस ही नहीं ले रहे हैं... जानते हैं, उनके पास कोई मुद्दे ही नहीं हैं, और हम उनको विकास के मुद्दे पर पकड़े, और पकड़े रहेंगे, लेकिन अभी फिर प्रधानमंत्री ने कहा कि इनको इसलिए पैसा नहीं दे रहे हैं कि कहीं लौटा न दें, इसलिए यह साबित हो गया कि पैसा नहीं दे रहे हैं, और अब आए वित्तमंत्री के पत्र से ही पता लग गया कि वह राज्य सरकार के खजाने में नहीं दे रहे हैं, वह तो केंद्र सरकार के मंत्रालय द्वारा लागू होना है... तो ये पैसा नहीं दे रहे हैं, और केंद्र सरकार के माध्यम से काम होना है... तो अब ये जितनी रैलियां करेंगे, उतनी गलती करेंगे, उलझते जाएंगे...
 
गलतियां आपकी तरफ से भी हुई हैं, वह गोरक्षा वाली...?
 हम लोग कोई ऐसे ही बात नहीं कर रहे हैं... ये कौन गोरक्षक बने हैं, भाई...
 
अगड़ा-पिछड़ा का...?
 अरे, यहां गाय का पूरा रक्षा है, आपको पता है, यहां दूध के उत्पादन में...
 
क्या हुआ है...?
मेरे कार्यकाल में चार गुणा बढ़ा है... ये क्या बताएंगे, इनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है... हमारा जो सुधा ब्रांड है, बहुत दिन से अमूल चल रहा है, लेकिन आज सुधा ब्रांड भी चमक रहा है... देखिए, यह सब बकवास है, और इस सब पर समय बर्बाद करने से कुछ नहीं होगा... पहले बताएं, देश के विकास का इनका क्या नज़रिया है... इनके वादे क्या हैं...?
 
इनके मंत्री कह रहे हैं कि बिजली नहीं दे रहे हैं... बिजली का उत्पादन ज़ीरो है... पीयूष गोयल ने कहा है...
 कितने दिन से बिहार को जानते हैं पीयूष गोयल... उनका काम तो कुछ और था...
 
जेपी नड्डा ने कहा है, आपके यहां डॉक्टर की कमी है, 40 फीसदी कमी है...
 
देश में क्या है, देश के बाकी राज्यों में जितने डॉक्टर की ज़रूरत है, पूरे हैं न...? अरे, ये लोग यहां पर आ गए हैं, और कहां-कहां से कुछ भी पकड़कर, इनका एक थिंकटैंक है, जिसने कहां-कहां से फिगर उठाकर बिहार की गलत छवि पेश करने की कोशिश की है, प्वाइंट-वाइज़ रीबटल दे दिए गए हैं... उसी प्रकार 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' की बात आई, बता दिया, इनको एक्सपोज़ कर दिया कि साहेब, आपने राज्य सरकार से आंकड़े मांगे, भेजे गए... स्वतंत्र एजेंसी ने आकर कहा, 'अच्छे हैं' और उन्होंने भेजा रिपोर्ट कमेंट के लिए, और कहा एनेक्श्यर (Annexure) लगा हुआ है, जो लगा नहीं था... मांगते रहे लोग, और एकतरफा रैंकिंग कर दिया...
 
अच्छा, रैंकिंग में भी कोई गड़बड़ी हुई है...?
अच्छा, यह बताएं, 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' के लिए जो रैंकिंग दी गई थी, वह कॉम्पेटिटिव एन्वायर्नमेंट क्रिएट करने के लिए दी गई, या किसी राज्य को नीचा दिखाने के लिए... यही देश चलाने का तरीका है क्या...?
 
यह आपका नज़रिया हो सकता है, लेकिन उन्होंने बताया 1 से 10...
 बताया 1 से 10, लेकिन देश 140 से लुढ़ककर 142 पर आ गया इनके राज में तो...
 
अच्छा, यह कांग्रेस और लालू के बीच में क्या चल रहा है...?
पहले ज़रा यह पूरा होने दिया जाए... ये किसी भी चीज़ को इस प्रकार से यूज़ करते हैं कि बिहार को नीचा दिखाए, और जब हम उन्हें आईना दिखाते हैं कि आप यह बताएं कि राज्य सरकार ने जो आंकड़े भेजे, क्या उनका आपने प्रयोग किया अन्य राज्यों में... तो इस प्रकार नीचा दिखाने के लिए ये लोग यही सारा प्रयास कर रहे हैं...
 
पीयूष गोयल ने गलत बात कही...?
 बकवास करते हैं ये लोग, फालतू बात करते हैं ये लोग...
 
बिहार में बिजली का उत्पादन ज़ीरो है, उद्योग नहीं है...
क्या बात करते हैं यो लोग...? बिजली लोगों को मिल रही है, बिजली में इम्प्रूवमेंट है... उसमें बिहार के काम की प्रशंसा की गई है... आखिरकार हमारा बरौनी थरमल प्लांट चालू नहीं हुआ है, कौन जिम्मेदार है... उनका भेल (BHEL) रिस्पॉन्सिबल है उसके लिए...
 
आप कह रहे हैं, सेंटर ज़िम्मेदार है...?
बिल्कुल... उनकी एजेंसी को काम दिया गया है... 14 बार उन्होंने टारगेट बढ़ाया है, तारीख बदली है... देखिए, इन लोगों को कभी भी कोई भी किसी एक मुद्दे पर स्वतंत्र विश्लेषण करेगा तो एक तो यह साबित होगा कि इनका रवैया भेदभावपूर्ण है, और नंबर दो, यह असत्य बोलते हैं... और आंकड़ों का अपने मतलब से इस्तेमाल करते हैं...
 
आप भी करते हैं वैसे...?
नहीं... हम करें तो बताएं वे... हम कौन-से आंकड़े करते हैं... हमने तो उनकी एक-एक बात का जवाब दिया...
 
लालू यादव और कांग्रेस के बीच क्या चल रहा है...?
 बिल्कुल ठीक है...
 
ऐसा लगता है कि कांग्रेस से लालू चिढ़े हुए हैं...?
 नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है...देखिए, इस महागठबंधन में तीन दल हैं... बहुत अच्छा को-ऑर्डिनेशन है... सब लोग एक-दूसरे के क्षेत्र में जा रहे हैं... जैसे मेरी मीटिंग देखिए... पहले चरण में 2-3 क्षेत्र बचे हैं...
 
लालू-सोनिया और राहुल-लालू...?
 न... न... वह मीटिंग तो साथ-साथ नहीं हो सकती... वह तो इम्प्रैक्टिकल है, क्योंकि हम लोग प्रतिदिन 4-5-6 मीटिंग अलग-अलग कर रहे हैं... अगर सब एक साथ इकट्ठे हो जाएंगे, तो... हम लोग रैली नहीं, मीटिंग करते हैं... विधानसभा क्षेत्र में जाते हैं... मैडम सोनिया भी विधानसभा क्षेत्र में गईं... मोदी जी की तरह पूरे संसाधनों को लगाकर रैली तो नहीं कर रहे हैं न...? हम लोगों की सभा होती है... प्रतिदिन जितनी सभा होती हैं, मतलब उतने विधानसभा क्षेत्र कवर कर रहे हैं हम... और सबको कवर करना है... जैसे हम ही सभी क्षेत्र कवर करने की कोशिश करते हैं... लालू जी भी यही कर रहे हैं... कांग्रेस के लोग भी सिर्फ अपने नहीं, दूसरे के क्षेत्र में भी जा रहे हैं... मीरा कुमार आ रही हैं... गुलाम नबी आज़ाद आए... सब घूम रहे हैं... तो यह जो है, कैम्पेन का तरीका है हमारा...

 तो आप लोगों के बीच लड़ाई नहीं है...?
न... न... वे तो अख़बार है... यूं ही कुछ भी समाचार छापते रहते हैं...

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

 
इस सवाल का आप पिछले एक साल से जवाब दे रहे हैं फिर भी मैं जानना चाहता हूं कि लालू यादव के साथ हाथ मिलाने से आपका जो विकास का मॉडल है, क्या वह कमजोर पड़ा?
नहीं
 
मैं देखता हूं कि बीजेपी का हमला पूरे जंगलराज पर फोकस रहता है कि आपकी सरकार आई तो जंगलराज लौट आएगा।
यह बीजेपी का प्रचार है। बिहार चुनाव पर देश की निगाह टिकी हुई है। बीजेपी का काम करने का तरीका है, जो उनकी नीतियां हैं या जिस प्रकार से वह देश को चलाना चाह रहे हैं, सब देखा जा रहा है। जो लोग भाजपा की राजनीति को सही नहीं समझते, वे सब इकट्ठा नहीं होंगे तो फिर इस देशभर के लोगों को अच्छा नहीं लगेगा। यह लड़ाई सिर्फ बिहार की नहीं है। बिहार में भी एकजुटता से बहुत मजबूती आई है। ये आवश्यकता थी और इसलिए हम लोगों ने हाथ मिलाया। हम लोग मजबूती से एक साथ खड़े हैं। वहीं बीजेपी के गठबंधन में अनेक प्रकार के झगड़े उभरकर सामने आए हैं। हम लोगों में जबरदस्त एकजुटता है और ये सही है कि हम किसी भी मायने में डिफेंसिव नहीं है।
 
और ये एक...
बीजेपी के पास कोई मुद्दा नहीं है। वह कहते रहते हैं कि यहां जंगलराज है, उनको हम हरेक सभा में अपराध के आंकड़े सामने लाकर सच्चाई बता देते हैं, भले ही उनका प्रभाव है और अखबारों पर वे छपते रहेंगे।
 
ऐसा आपको क्यों लगता है कि मीडिया में उनका ज्यादा प्रभाव है?
ये दिखता नहीं है क्या...? बुलेटिन की तरह सब दिख रहा है, अब इसमें क्या कहना...? हम लोगों को भी पता है कि उनकी बात किस ढंग से दिखाई जाएगी।
 
वे भी आपके ऊपर ऐसे ही आरोप लगाते हैं...

 अरे ये फालतू की बात है। हम लोग काहे के लिए ऐसा करेंगे.. हम लोग किस खेत की मूली हैं। हमको क्या सब कुछ मालूम नहीं है?
 
तो आप लोगों को लग रहा है कि मीडिया का कवरेज आपको बराबरी से नहीं मिल रहा है?
बराबरी...? ये आपने क्या चर्चा छेड़ दी..?
 
आपको वहां पर भी बोलते हुए सुना है और यहां पर भी। आपको कहा, जब मैंने कि अखबार में छप रहे हैं.. नहीं, कोई तुलना नहीं कर रहा हूं...?
 कोई तुलना? अरे आप देखिए न.. आप अगर पटना आए हैं तो यहां के अखबार उठाकर देख लीजिए कि किस ढंग से बीजेपी के मामूली लोगों की खबरें प्रमुखता से छापी जा रही हैं और किस ढंग से महागठबंधन की खबरें छापी जा रही हैं।
 
उनके पास कितने कितने बड़े नेता हैं। उनके पास 50 नेता हैं इसीलिए छाप रहे हैं। जबकि, आपके पास 2 नेता हैं, इसीलिए छाप रहे हैं।
 
कितने बड़े-बड़े नेता हैं, क्या हम लोग जानते नहीं हैं..? असल बात क्या है, सब पता है। इन लोगों के साथ भी रहे हैं इसलिए हम लोग सब जानते हैं। कल काहे नहीं कोई इनको नेता मानता था। अरे सब खेल छोड़िए, उस विवाद में हमकों पड़ना नहीं है। जिसकी जो मर्जी हो वो करता रहे, लेकिन यह तय है कि वे किसी भी तर्क या तथ्याधारित चर्चा करने को तैयार नहीं हैं।
 
आपने?
वे भावनाओं को उभारना चाहते हैं। लोगों को डराने के लिए जंगलराज शब्द का प्रयोग कर रहे हैं।
 
तो आप बहस क्यों नहीं कर लेते...?
हम तो बहस करने को तैयार ही हैं। हम सबसे पहले विकास पर बहस करना चाहते हैं। लेकिन पहले वे लोग बहस कर लें, जिन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश बीमारू राज्य से बाहर आ गया। गुजरात का मॉडल भी सामने है जहां कुपोषण शिखर पर है। महिलाओं कुपोषण के शिखर पर हैं। यह कैसा विकास है? मध्य प्रदेश में आधे से ज्यादा छात्र मैट्रिक में फेल हो जाते हैं। किस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था है। अरे कोई मुद्दा उठाइए.. बहस करने को तैयार हैं.. लेकिन क्या ये लोग बहस करेंगे। इनको बहस करने की जरूरत है? अरे एकतरफा अपनी बात रखते हैं। एकतरफा बात रखकर समाज को बांटना चाहते हैं।
 
आप उस तबके को क्यों लुभा रहे हैं, जो लालू यादव को लेकर आपसे दूरी बना रहा है। या जिसके मन में लालू को लेकर खटास है।
 नहीं.. नहीं.. अब हम तो अपनी बात कह रहे हैं। हम तो जानते नहीं कि ये कौन-सा तबका है। काहे उस तबके को लेकर परेशान हैं।
 
उस तबके को डर है कि स्थितियां फिर से बिगड़ जाएंगी...
 तो उनसे हम यहीं कहेंगे कि डरिए मत। बीजेपी के लोग डरा रहे हैं। कलेजे को मजबूत रखिए। ये लोग शुरू में तो बोले कि विकास का मुद्दा होना चाहिए। पर अब देखिए कहां पहुंच गए हैं। जिस राज्य में गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध है, आज से नहीं बल्कि 1955 से है, वहां पर ये लोग गोहत्या का मुद्दा उठा रहे हैं। आप समझ सकते हैं कि इनके पास मुद्दों का अकाल है। विकास के मुद्दे पर ये टिक नहीं सकते हैं। इसलिए इस प्रकार के विवादित मुद्दों को हवा देकर लोगों की भावनाओं को भड़काना चाहते हैं। समाज में ध्रुवीकरण चाहते हैं और इस बहाने पोलराइजेशन करना चाहते हैं।
 
वो कहते हैं कि आप इस तरह से जातिवाद बढ़ा रहे हैं...?
अरे क्या बात है! जातिवाद तो वे बढ़ा रहे हैं। रोज जाति की बात कर रहे हैं। भई आप प्रधानमंत्री हैं.. और मुंह से शब्द निकाल रहे हैं यदुवंशी का। फिर जब यदुवंशी जवाब देता है तो इसे जातिवाद कह रहे हैं। आप तो भई जाति निरपेक्ष हैं। जबकि रोज आप लोग प्रधानमंत्री की जाति का उल्लेख कर रहे हैं।
 
उन्होंने कहा था कि पिछड़ा प्रधानमंत्री बनेगा। आपको लगता है कि....
 अरे भई जाति का नाम.. प्रधानमंत्री की जाति के नाम का उल्लेख कर रहे हैं।
 
यहां बिहार के नाम पर गिरिराज ने कहा है कि पिछड़ा मुख्यमंत्री बनेगा...
 सब पर कमेंट मत करवाइए हमसे। आप उन पर भी कमेंट करें।
 
जेपी के जन्मदिन पर बीजेपी कई कार्यक्रम कर रही है। उसकी वैचारिक आलोचना है कि आप कांग्रेस विरोधी नेता रहे हैं और पूरा जीवन आपने इसमें लगाया है। लेकिन अब आप उस धारा में पहुंच गए जहां कांग्रेस की धारा को आपने स्वीकार कर लिया, 'तिलांजलि' शब्द का इस्तेमाल किया।
 
कांग्रेस का स्थान बीजेपी ने लिया है। जिस आधार पर कांग्रेस का विरोध था, अब उसी आधार पर बीजेपी का विरोध कर रहे हैं। बीजेपी के अंदर जिस तरह का अहंकार है, अपने विरोधियों को ये येन केन प्रकारेण समाप्त करना चाहते हैं.. इस प्रवृत्ति से मुक्ति के लिए मुकाबला करना होगा।
 
जेपी को वो लेकर जा रहे हैं?
नहीं... नहीं, जेपी को वो क्या ले कर जाएंगे। नाम भांजने से कुछ नहीं होता है, उनके सिद्धांत को ये मान लेंगे? जेपी ने कहा था जनेउ तोड़ो, तो ये सबको जनेउ पहनाने लगे थे। 74 के आंदोलन की तो बात है और हमने जेल में देखा है कि मानसिकता क्या है।
 
आप कह रहे हैं कि जनेऊ तोड़ने की बात इन्होंने नहीं मानी...
 नहीं मानी। जनेऊ तोड़ने की बात कही तो ये सबको जनेऊ पहनाने लगे थे। जेपी के गांव में जाकर मूर्ति पर माल्यार्पण करते हैं। राज्य सरकार की तरफ से वहां बहुत सारे काम किये जा रहे हैं। अभी चुनाव का समय है तो इनका अद्भुत प्रचार मिल रहा है। ये खांसेंगे तो हेडलाइन्स बनेंगी। ऐसी स्थिति में कहां बहस में पड़ें।
 
आपको नहीं लगता कि इस दौड़ में आप पिछड़ सकते हैं?
 हम कहां पिछड़ेंगे। इस दौड़ में कहां जाएंगे... इस दौड़ से दूर ही रहे हैं हम।
 
आप कितने कॉन्फिडेंट हैं?
हम पूरी तरह से कॉन्फिडेंट हैं और हमको मालूम है।
 
मुझे बोलने के लिए तो नहीं बोल रहे हैं?
 आपको क्या लगता है?
 
मैं तो नहीं बता सकता। और सर्वे में यकीन नहीं करता, न ही यह सवाल पूछता हूं। लेकिन आपसे इसलिए पूछ रहा हूं, क्योंकि आप यहां दावेदार हैं।
 
मैं तो नहीं बता सकता। मैं सर्वे में यकीन नहीं रखता। और ये सवाल
बीजेपी के आने की कोई गुंजाइश नहीं है। यकीन मानिए...
 
8 नवंबर को मिलूंगा आपसे
क्यों नहीं मिलिएगा.. जरूर मिलिएगा।