यह ख़बर 25 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

बीमा क्षेत्र में एफडीआई बढ़ाने से कितना होगा फायदा?

नई दिल्ली:

नमस्कार... मैं रवीश कुमार। इंश्योरेंस इज़ दि सब्जेक्ट मैटर ऑफ अगड़म बगड़म... हर बीमा विज्ञापन के आखिर में ये कानूनी चेतावनी ऐसे पढ़ी जाती है जैसे सड़क दुघर्टना से बच भी गए, तो इस चेतावनी से नहीं बच पाएंगे। बीमा आम पब्लिक के लिए नहीं बल्कि न्यूज़ एंकरों के लिए भी जटिल विषय है।

भारत में बीमा कंपनियों का इतिहास अब से चार साल बाद 2018 में 200 साल पूरा करने जा रहा है। हम 2018 को शत प्रतिशत बीमा युक्त भारत का लक्ष्य ले सकते हैं। ये आइडिया देशहित में देश को दे रहा हूं। शायद जनधन के बाद ज़रूरत ही न हो।

तो 196 साल पहले 1818 में भारत में बीमा व्यापार का आगमन होता है। जब कोलकाता में ओरियंट लाइफ इंश्योरेंस कंपनी कायम होती है और 1834 तक फेल हो जाती है। 1870 में ब्रिटिश इंश्योरेंस एक्ट बनता है। 19वीं सदी के आखिरी तीन दशकों में बॉम्बे रेसिडेंसी में तीन बीमा कंपनियां वजूद में आती हैं। बॉम्बे म्यूचुअल ओरियंटल और एम्पायर ऑफ इंडिया। तब भारत में विदेशी बीमा कंपनियां ही कारोबार करती थीं। जैसे अल्बर्ट लाइफ अश्योरेंस, रायल इंश्योरेंस लिवलपुर और लंदन ग्लोब इंश्योरेंस।

इस दौरान कई कानून बनते हैं, लेकिन 1938 का इश्योरेंस एक्ट भारत में बीमा कानूनों की बुनियाद के रूप में वजूद में आता है। 1950 में बीमा व्यवसाय का राष्ट्रीयकरण कर लिया जाता है। 1990 के दशक में नेशनलाइज़्ड के बाद ये सेक्टर ग्लोबलाइज्ड होने लगता है।

ये ऐतिहासिक जानकारी मैंने बीमा कंपनियों की नियामक संस्था आईआरडीए की साइट से ली है। जो हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषा में है, लेकिन इतिहास सिर्फ अंग्रेजी में है। आईआरडीए की साइट के अनुसार भारत में इस वक्त 28 जनरल इंश्योरेंस कंपनियां हैं। इनमें भारतीय कृषि बीमा आयोग भी है, 24 जीवन बीमा कंपनियां हैं।

भारत में बीमा सेक्टर के 65 फीसदी हिस्से पर एलआईसी का कब्जा है। इस बाज़ार में एलआईसी कैसे टिकी हुई है और इतनी विश्वसनीय कंपनी बनी हुई है, ये बीमा सेक्टर के प्रोफेसर जानते होंगे। कहीं इसलिए तो नहीं कि बीमा धारक एलआईसी को ज्यादा सुरक्षित समझते हैं।

आईआरडीए की साइट से पता चला है कि यह सेक्टर 15−20 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है। क्या ये रफ्तार कम है या कोई ऐसा भी सेक्टर है जो इससे ज्यादा रफ्तार से बढ़ रहा है। भारत की जीडीपी में बीमा सेक्टर का योगदान 7 प्रतिशत है।

कहा जा रहा है कि बीमा सेक्टर में 80 से एक लाख करोड़ रुपये तक का निवेश आ सकता है और नौकरियां भी खूब बढ़ेंगी। अब दलील दी जा रही है कि बीमा कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा तो प्रीमियम कम होगा और ज्यादा से ज्यादा लोग लाभ ले सकेंगे। अभी भी कंपटीशन तो होगा ही है तो क्या इससे आपने प्रीमियम कम होते देखा है।

2008 से बीमा कानून संशोधन विधेयक इस समिति से उस समिति के चक्कर लगा रहा है। केंद्र सरकार जो बिल लेकर आई है उसके अनुसार, भारतीय कंपनियां कारोबार के लिए ज्यादा विदेशी निवेश चाहती हैं। कई जीवनबीमा कंपनियां सिर्फ 7−8 साल पुरानी हैं। नई होने की वजह से कमाई नहीं कर सकी हैं। उनकी मांग ज्यादा विदेशी निवेश की है, ताकि कारोबार बढ़ाकर फायदा कमा सकें।

विदेशी कंपनियां जनरल इंश्योरेंस के सेक्टर में भी उतरना चाहती हैं जिसके आधे से ज्यादा पर इस वक्त जनरल इंश्योरेंस का कब्जा है। इस विधेयक के पास होने के बाद देसी बीमा कंपनियां भी बाज़ार से पूंजी जुटा सकेंगी। स्वास्थ्य बीमा को एक अलग सेक्टर के रूप में विकसित किया गया है।

इस बिल का विरोध सब कर चुके हैं। बीजेपी विपक्ष में रहते हुए कर चुकी है और कांग्रेस विपक्ष में आने के बाद कर रही है। लेफ्ट स्थाई रूप से विरोधी है। बीजेपी के भीतर आरएसएस का भारतीय मजदूर संघ भी विरोध कर दिया है। मगर भारतीय मज़दूर संघ का इतना भी प्रभाव नहीं है कि वह मोदी सरकार को इस बिल के खिलाफ कर दे।

2011 की स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट में ऑल इंडिया इंश्योरेंस इम्प्लाय असोशियेशन ने कहा था कि अगर शेयर बाज़ार के ज़रिये भारतीय बीमा कंपनियां पूंजी जुटाएंगी तो विदेशी निवेशकों को पिछले दरवाज़े से घुसने का मौका मिल जाएगा। दी ऑल इंडिया एलआईसी इम्प्लायज़ फेडेरेशन ने कहा था कि यह दलील लैटिन अमरीकी सरकारों ने दी थी कि विदेशी निवेश आने से बीमा कंपनियों का प्रबंधन बेहतर हो जाएगा, उत्पादकता बढ़ जाएगी और नई तकनीक से लैस हो जाएंगे मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

यह सब करने के लिए एफडीआई ही ज़रूरी नहीं है। भारतीय जीवन बीमा निगम अपने स्तर पर इन पैमानों पर खरा उतरता है। दावों के निपटान में एलआईसी दुनिया में बेहतर मानी जाती है। नेशनल फेडेरेशन ऑफ इंश्योरेंस फील्ड वर्कर ऑफ इंडिया ने कहा था कि वैश्विक मंदी के समय कई बीमा कंपनियां बर्बाद हो गईं थीं।

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28 नवंबर को संसद की सलेक्ट कमेटी को रिपोर्ट देनी थी, लेकिन कमेटी के अध्यक्ष बीजेपी सांसद चंदन मित्रा ने 12 दिसंबर तक का समय मांगा है। इस प्रस्ताव को पेश करते वक्त कमेटी के एक सदस्य सीपीएम पी राजीव ने कहा कि कमेटी के सदस्यों को पता ही नहीं था कि डेट बढ़ने वाली है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि कमेटी में कुछ नए सदस्य बने हैं, इसलिए इसे कुछ वक्त तो चाहिए। (प्राइम टाइम इंट्रो)