बैंकों का कर्ज लेकर नहीं लौटाने वाले केवल 57 व्यक्तियों पर ही 85,000 करोड़ रुपये का बकाया है. उच्चतम न्यायालय ने 500 करोड़ रुपये से अधिक कर्ज लेने वाले और उसे नहीं लौटाने वालों के बारे में रिजर्व बैंक की रिपोर्ट देखने के बाद यह कहा. साथ ही उसने केंद्रीय बैंक से पूछा कि आखिर क्यों ने ऐसे लोगों के नाम सार्वजनिक कर दिये जाएं.
मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘आखिर ये लोग कौन हैं जिन्होंने कर्ज लिया और उसे लौटा नहीं रहे हैं? आखिर कर्ज लेकर उसे नहीं लौटाने वाले व्यक्तियों के नाम लोगों को क्यों नहीं पता चलने चाहिए?’ पीठ के अन्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ तथा न्यायधीश एल नागेश्वर राव हैं.
न्यायालय ने कहा कि अगर सीमा 500 करोड़ रुपये से कम कर दी जाए तो फंसे कर्ज की यह राशि एक लाख करोड़ रुपये से उपर निकल जायेगी. पीठ ने कहा कि अगर लोग आरटीआई के जरिये सवाल पूछते हैं, तो उन्हें जानना चाहिए कि आखिर कर्ज नहीं लौटाने वाले कौन हैं. उसने रिजर्व बैंक से पूछा कि आखिर ऐसे लोगों के बारे में सूचना क्यों रोकी जानी चाहिए.
न्यायालय ने कहा, ‘लोगों को यह जानना चाहिए कि आखिर एक व्यक्ति ने कितना कर्ज लिया और उसे कितना लौटाना है. इस तरह की राशि के बारे में लोगों को जानकारी मिलनी चाहिए. आखिर सूचना को क्यों छिपाया जाए.’ रिजर्व बैंक की तरफ से पेश अधिवक्ता ने इस सुझाव का विरोध किया और कहा कि कर्ज नहीं लौटा पाने वाले सभी कर्जदार जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहे हैं. केंद्रीय बैंक के अनुसार वह बैंकों के हितों में काम कर रहा है और कानून के मुताबिक कर्ज नहीं लौटाने वाले लोगों के नाम सार्वजनिक नहीं किये जा सकते.
इस पर पीठ ने कहा, ‘रिजर्व बैंक को देश हित में काम करना चाहिए न कि केवल बैंकों के हित में.' र-सरकारी संगठन सेंटर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की तरफ से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बकाया कर्ज राशि के खुलासे का समर्थन किया और दिसंबर 2015 के शीर्ष अदालत के एक फैसले का जिक्र किया जिसमें दावा किया गया है कि रिजर्व बैंक को सभी सूचना उपलब्ध करानी है. पीठ ने कहा कि वह कर्ज नहीं लौटाने वालों के नामों के खुलासे संबंधी पहलुओं पर 28 अक्तूबर को सुनवाई करेगी.
इससे पहले, न्यायालय ने नहीं लौटाये जा रहे कर्ज की बढ़ती राशि पर चिंता जताते हुए कहा था, ‘लोग हजारों करोड़ रपये ले रहे हैं और अपनी कंपनियों को दिवालिया दिखाकर भाग जा रहे हैं लेकिन वहीं 20,000 रपये या 15,000 रपये कर्ज लेने वाले गरीब किसान परेशान होते हैं.’