बैंक कर्मचारियों के संगठन नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स (एनओबीडल्यू) ने सरकार से निजी क्षेत्र में नए बैंक लाइसेंस जारी करने की नीति की वापस लेने तथा विभिन्न सरकारी बैंकों को मिलने का विचार छोड़ने की मांग की है।
संगठन ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्तियां फिल चालू करने तथा बैंक कर्मचारियों की अन्य लंबित मांगों को लेकर चालू बजट सत्र में 22 अप्रैल को संसद के समक्ष धरना देने की घोषणा की है।
एनओबीडब्ल्यू के महासचिव अश्वनी राणा ने गुरुवार को कहा, ‘‘हम सरकार से स्थायी प्रकृति के बैंकिंग कार्यों और सामान्य बैंकिंग सेवाओं को बाहर से नहीं कराने की सरकार से मांग करते रहे हैं। लेकिन सरकार, बैंकर और रिजर्व बैंक काम की आउटसोर्सिंग कराने की कोशिश कर रहे हैं।’’
उन्होंने एक बयान में कहा कि संगठन नई बैंक लाइसेंसिंग नीति के खिलाफ है। हाल ही में कोबरापोस्ट के स्टिंग आपरेशन में हुए खुलासे से साफ है कि निजी क्षेत्र के ये बैंक केवाईसी नियमों का सख्ती से पालन नहीं कर रहे हैं और बैंकिंग उद्योग में कई तरह की धोखाधड़ी हो रही है। ‘‘ऐसे में हमारी मांग है कि सरकार को नई लाइसेंसिंग नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए।’’
राणा ने कहा, ‘‘हम सरकार द्वारा बैंकों के विलय के प्रस्ताव के खिलाफ हैं क्योंकि ये न ही देश के हित में हैं और न ही कर्मचारियों के हित में। इसके अलावा, बैंकों में अंशकालिक कर्मचारियों को नियमित करने की हमारी मांग है।’’
उन्होंने कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्तियों की व्यवस्था फिर शीघ्र चालू करने की मांग की। राणा ने कहा ऐसी भर्ती 2004 में खत्म कर दी गई थी पर फरवरी 2009 में परस्पर सहमति से एक नयी नीति तैयार की गई तथा भरोसा दिया गया था कि सरकार से मंजूर करवा कर इसे लागू किया जाएगा।