सावधि जमा योजना यानी फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) पर 9.50 फीसदी की सालाना ब्याज दर निश्चित तौर पर आकर्षित करेगी, खासतौर से ऐसी स्थिति में जब कमर्शल बैंक एफडी पर 7 से 7.5 फीसदी की ब्याज दर दे रहे हों. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यानी एसबीआई (SBI)तीन साल की एफडी पर सालाना के हिसाब से 7 फीसदी की ब्याज दर दे रहा है. वहीं दूसरी ओर कोऑपरेटिव बैंक और म्यूनिसिपल कोऑपरेटिव बैंक इसी मच्योरिटी टर्म पर 8.50-9.50 फीसदी की दर से ब्याज दे रहे हैं.
इसका अर्थ यह हुआ कि यदि कोई व्यक्ति पांच साल के लिए 10 लाख रुपए की एफडी कोऑपरेटिव या म्यूनिसिपल कोपरेटिव बैंक में करता है तो वह अपेक्षाकृत बहुत अधिक यानी अन्य एफडी पर ब्याज की कमाई से 1 लाख रुपए अधिक ब्याज कमा सकता है. यही वजह है कि रिटायर होने वाले ज्यादातर लोग जो कि रेग्युलर मासिक इनकम चाहते हैं और इसके लिए बड़ी रकम निवेश में डालते हैं, वे पारंपरिक एफडी के मुकाबले कोऑपरेटिव बैंक के एफडी के प्रति ज्यादा आकर्षित होते हैं.
कई कोऑपरेटिव बैंक्स हालांकि असफल भी हुए हैं. कोऑपरेटिव बैंकों के मुकाबले कर्मशल बैंक अधिक नियम-कानूनों से बंधे होते हैं और संभवत: उनमें कस्टमर्स के हित अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित होते हैं. कर्मशल बैंक के मुकाबले कोऑपरेटिव बैंकों की वित्तीय स्थिति उतनी आसानी से उपलब्ध नहीं होती है. डील फोर लोन्स (Deal4Loans) के संस्थापक ऋषि मेहरा कहते हैं- अतीत में कई कोऑपरेटिव बैंक धराशायी हो गए हैं, ऐसे में बस कुछ 1.5-2 फीसदी अधिक ब्याज दर के लिए जोखिम लेना सही नहीं है. उनके मुताबिक, कोऑपरेटिव बैंक जिस एरिया में ऑपरेट करते हैं, वहां के स्थानीय किसानों और लघु उद्यम करने वालों को लोन देते हैं, ऐसे में वे इसलिए भी असफलता संबंधी जोखिम अधिक होता है क्योंकि लोन एक ही सेक्टर में दिए जा रहे हैं.
हालांकि निवेशक की निवेश की गई रकम का 1 लाख रुपया डिपॉजिट इंश्योरेंस स्कीम के तहत कोऑपरेटिव बैंकों में भी बीमित होता है, ठीक वैसे ही जैसे कि राष्ट्रीयकृत बैंकों के मामले में होता है. इसलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि जितना भी पैसा निवेश करना है उसे विभिन्न बैंकों में करें, न कि एकसाथ किसी एक ही बैंक में करें. यदि आपको दो लाख रुपए निवेश करने हैं तो इसे दो कोऑपरेटिव बैंकों में डाल दें.
इसके अलावा एक और बात है. कभी कभी बैंक के फेल होने की दिशा में सरकार पैसा निकालने की सीमा तय कर देती है. मेहरा के मुताबिक, ऐसे में सरकार उस कोऑपरेटिव बैंक को संभलने के लिए वक्त देना चाहती है लेकिन यही बात कस्मटर्म के लिए झंझट बन जाती है.