टाटा समूह में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखने वाली बेहद शक्तिशाली, लेकिन लो-प्रोफाइल चैरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टी वीआर मेहता का कहना है कि साइरस मिस्त्री को टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटाए जाने के पीछे की अहम वजह समूह का लचर वित्तीय प्रदर्शन था.
मेहता 'सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट' के सदस्य हैं, जिसके पास इस विशाल समूह के 60 फीसदी शेयर हैं और इससे समूह के संचालन में इनकी राय काफी अहम हो जाती है.
किसी मौजूदा टाटा ट्रस्टी द्वारा दिए गए पहले एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में मेहता ने एनडीटीवी से कहा कि मिस्त्री की अध्यक्षता के दौरान पूरा समूह केवल दो कंपनियों - टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) और जैगुआर लैंड रोवर (जेएलआर) पर ही आश्रित हो गया था. उन्होंने कहा कि इसके बाद टाटा समूह से जुड़े ट्रस्टों की परोपकारी गतिविधियों को कम कर दिया गया, जो कि उन्हें मंजूर नहीं.
मेहता की ये बातें टाटा सन्स में नेतृत्व के स्तर पर आए उस नाटकीय बदलाव को साफ तौर पर उजागर करती हैं, जो कि अब तक लीक रिकॉर्ड्स और अटकलों के ही दायरे में थी. उन्होंने मिस्त्री के नेतृत्व के दौरान टाटा समूह के चरित्र में आए 'विचलन' की भी आलोचना की, खासकर उस कानूनी लड़ाई में, जो कि टाटा के खिलाफ उसके टेलीकॉम साझेदार डोकोमो ने की थी. इस लड़ाई में कंपनी को शिकस्त झेलनी पड़ी थी और उसे 1.2 अरब डॉलर का भारी-भरकम हरजाना चुकाना पड़ा था. मेहता कहते हैं, 'यह (डोकोमो केस) टाटा के दर्शन और मूल्यों से मेल नहीं खाते. मामले को और बेहतर ढंग से सुलझाया जाना चाहिए था.'
साइरस मिस्त्री के चेयरमैन बनने के बाद से टाटा समूह और ट्रस्ट के बीच अलगाव को भी मेहता रेखांकित करते हैं. वह कहते हैं, 'सत्ता परिवर्तन के बाद, ट्रस्ट के अध्यक्ष (रतन) टाटा बन गए और टाटा संस के प्रमुख मिस्त्री बन गए. यहां कोई लिंक (टाटा सन्स और ट्रस्ट के बीच) नहीं था. टाटा और मिस्त्री अकसर मिलते और बातें करते थे, लेकिन (ट्रस्ट की) चिंताओं पर किसी भी तरह पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया.
वह कहते हैं कि वह 'इस घटनाक्रम से पूरी तरह खुश नहीं हैं. कम से कम इतना तो कहा जा सकता है कि ये बेहद बुरा दिख रहा है. लेकिन यह कहने के साथ ही मैं यह भी जोड़ूंगा कि शायद (मिस्त्री को हटाने के अलावा) कोई विकल्प बचा नहीं रह गया था.