रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने इस बात पर जोर दिया कि बैंकों की बैलेंसशीट साफसुथरी होने पर आगे वे अधिक कर्ज सहायता देने में समर्थ होंगे और कहा कि इसके लिए इनका ‘गहरा ऑपरेशन’ करना बहुत जरूरी है।
राजन ने चिकित्सा शास्त्र की शब्दावली में कहा, 'शल्य क्रिया के लिए जैसे पहले बेहोशी की दवा सुंघानी पड़ती हैं और बैंकों में एनपीए (वसूल नहीं हो रहे कर्जों) को स्वीकार करना एक बेहोशी की दवा है।
रिजर्व बैंक के बही खाते को मार्च, 2017 तक साफसुथरा करने के निर्देश को लेकर बेचैन बैंकों को ढाढस बंधाने का प्रयास करते हुए राजन ने कहा कि फिलहाल बैंकों की परिसंपत्ति की गुणवत्ता की समीक्षा (एक्यूआर) दुबारा नहीं की जाएगी। एनपीए की घोषणा के बदले पूंजी खर्च के ऊंचे प्रावधान से खास कर सरकारी बैंकों का मुनाफा प्रभावित हुआ है और उनके शेयरों में जोरदार गिरावट आई है जिससे निवेशकों की पूंजी घटी है।
राजन ने उद्योग मंडल सीआईआई द्वारा आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए बैंकरों से कहा, ‘‘हम एक्यूआर बार बार नहीं करना चाहते।’’ उन्होंने इस तथ्य को स्वीकार किया कि एक्यूआर से से बैंकों की स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ा है और उनका लाभ और शेयरों के भाव प्रभावित हुए हैं। एक्यूआर के तहत रिजर्व बैंक ने बैंकों से कर्ज चुकाने में चूक करने वाले बड़े कर्जदारों की पहचान भी करने को कहा है।
राजन ने इस बात को भी स्वीकार किया सरकारी बैंकों के नतीजे अच्छे नजर नहीं आते।
जनवरी मध्य यानी 15 जनवरी से सेंसेक्स में करीब 6 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसी दौरान बैंकों ने अपने तीसरी तिमाही के नतीजे घोषित करने शुरू किए हैं। इस अवधि में बैंकेक्स करीब आठ प्रतिशत टूटा है। यदि गिरावट का यह सिलसिला जारी रहता है तो मध्यम आकार के निजी क्षेत्र के बैंक कोटक महिंद्रा का बाजार पूंजीकरण जल्द सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई से अधिक हो जाएगा। आज कारोबार बंद होने के समय कोटक महिंद्रा बैंक का बाजार पूंजीकरण 1,15,296.24 करोड़ रुपये पर था। वहीं एसबीआई का बाजार पूंजीकरण घटकर 1,17,375.5 करोड़ रुपये पर आ गया। विश्व अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता के समय रिजर्व बैंक ने पिछले अप्रैल में एक्यूआर प्रक्रिया शुरू की थी। उन्होंने कहा कि उस समय उसे पता नहीं था कि बाजार में इतनी गिरावट आएगी जैसी अब आ चुकी है।
राजन ने कहा, ‘‘उस समय हम जानते थे कि वैश्विक अर्थव्यवस्था कमजोर रहेगी, लेकिन यह अंदाजा नहीं था कि बाजार इतना टूटेगा जैसा आज हुआ। कुल मिलाकर इससे हमारी यह मान्यता प्रबल हुई है कि हम उस समय कार्रवाई करनी चाहिए जब इसकी जरूरत होती है।’’ बैंकिंग प्रणाली में ज्यादातर बैंकों की संपत्ति पर दबाव बढ़ा है।