इस बात से कुछ लोगों को झटका लग सकता है, लेकिन भारत में हॉलमार्क वाले सोने के जेवरात की शुद्धता में भी फर्क होता है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी) ने आज यह बात कही। इसके साथ ही डब्ल्यूजीसी ने दुनिया के सोने के सबसे अधिक खपत वाले देश में गुणवत्ता मानकों में सुधार की जरूरत पर जोर दिया है।
डब्ल्यूजीसी ने कहा कि देश की हॉलमार्किंग प्रणाली में सुधार से सिर्फ स्वर्ण मौद्रिकरण योजना को ही सफलता नहीं मिलेगी, बल्कि इससे देश का सोने का निर्यात भी मौजूदा 8 अरब डॉलर से अगले पांच साल में 40 अरब डालर पर पहुंचाया जा सकेगा।
फिलहाल देश में सोने की हॉलमार्किंग स्वैच्छिक है। यह बहुमूल्य धातु की शुद्धता का प्रमाणन है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) हॉलमार्किंग का प्रशासनिक प्राधिकरण है।
डब्ल्यूजीसी की रिपोर्ट में कहा गया है, 'हालांकि, अभी मात्र 30 प्रतिशत आभूषणों की ही हॉलमार्किंग होती है, लेकिन कुछ हॉलमार्किंग केंद्रों की गुणवत्ता व विश्वसनीयता को लेकर चिंता है। ऐसे में दुरुस्त तरीके से हॉलमार्क आभूषणों का आंकड़ा 30 प्रतिशत से भी कम बैठेगा।'
रिपोर्ट में कहा गया है कि कमजोर गुणवत्ता नियंत्रण और बीआईएस के पास संसाधनों की कमी से हॉलमार्क उत्पादों की शुद्धता में भी अंतर है। रिपोर्ट कहती है कि 2000 में बीआईएस हॉलमार्किंग शुरू होने के बाद कम कैरट वाले सोना 40 प्रतिशत से घटकर 10 से 15 प्रतिशत पर आ गया है, लेकिन चुनौतियां अभी कायम हैं।
डब्ल्यूजीसी इंडिया के प्रबंध निदेशक सोमसुंदरम पी आर ने कहा, 'हॉलमार्किंग जरूरी नहीं है और उपभोक्ताओं की जागरूकता सीमित है। ऐसे में ज्वेलर्स इसे लेकर अधिक उत्साहित नहीं रहते हैं। खास बात यह है कि एक ही दुकान में हॉलमार्क और बिना हॉलमार्क का सोना दोनों बिकते हैं।'