दाल की कमी और महंगाई से निपटने के लिए सरकार दोतरफा योजना पर अमल करने की तैयारी में है। एक तरफ वह दुनिया के बड़े दाल उत्पादक देशों से दाल के आयात का करार कर रही है और दूसरी तरफ भारत में जमाखोरों पर नकेल कसने की तैयारी में है।
दाल को थोक और खुदरा दामों में अंतर बढ़ रहा
खाद्य मंत्रालय ने इसके लिए अगले हफ्ते खुफिया और वित्त महकमों से जुड़ी एजेंसियों की एक अहम बैठक बुलाई है। जमाखोरी और कालाबाज़ारी से निपटने के लिए बुलाई गई इस अहम बैठक में इनकम टैक्स, कस्टम, डिपार्टमेन्ट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेन्स और पुलिस के बड़े अधिकारियों को बुलाया गया है। यह बैठक ऐसे वक्त पर बुलाई गई है जब देश के कई बड़े शहरों में दालों के थोक और खुदरा दामों में फासला बढ़ता जा रहा है। खाद्य मंत्रालय के पास कई महत्वपूर्ण दाल उत्पादक राज्यों से जमाखोरी की शिकायतें भी आई हैं।
मांग और आपूर्ति में बढ़ रहा फासला
दरअसल दाल का संकट 2015-16 में बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2015-16 में दाल की पैदावार 1 करोड़ 70 लाख टन थी जबकि मांग 2 करोड़ 46 लाख टन की थी। यानी 76 लाख टन दाल की कमी है। इस कमी की भरपाई करने के लिए अब तक सरकार और दाल कारोबारी 58 लाख टन दाल का आयात कर चुके हैं। जाहिर है, मांग और पूर्ति का यह फासला पाटा नहीं गया तो महंगाई को लेकर सरकार की दाल आसानी से नहीं गलने वाली।
मोजांबिक से दाल खरीदने का करार
दाल के संकट से निपटने के लिए गुरुवार को प्रधानमंत्री की मौजूदगी में भारत ने मोजांबिक के साथ दाल खरीदने का एक अहम करार किया। अगले एक साल में वहां से एक लाख टन दाल आएगी, जबकि उसके बाद के चार साल तक 2-2 लाख टन दाल खरीद की बात हो रही है। इसका ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, "मोजांबिक से दाल खरीदने के फैसले से वहां भी रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और वहां की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा।"
यह सरकार की नई रणनीति का हिस्सा है। फिलहाल कई अफ्रीकी और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ भारत सरकार ने सीधे दाल का आयात करने के लिए बातचीत शुरू कर दी है।