देश की व्यापार की संपूर्ण स्थिति में सुधार के संकेतों का उल्लेख करते हुए शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि अब सोने के व्यापार पर पाबंदियां हटाने का उपयुक्त समय आ गया है।
संसद में पेश आर्थिक समीक्षा 2014-15 में कहा गया, वित्तीय अनिवार्यताओं में अधिक वित्त प्रवाह से देश का विदेशी मुद्रा भंडार (जनवरी 2015 के अंत तक 328.7 अरब डॉलर) बढ़ाने में मदद मिली है। इससे उस तरह का खतरा कम करने में मदद मिली है, जिससे पिछले साल गंभीर दबाव बन गया था।
वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान भारत का व्यापार घाटा घटकर 135.8 अरब डॉलर रह गया, जो 2012-13 में 190.3 अरब डॉलर के उच्च स्तर पर पहुंच गया था। ऐसा मुख्य तौर पर आयात वृद्धि दर में गिरावट के कारण हुआ। हालांकि निर्यात वृद्धि भी 4.7 प्रतिशत के साथ नरम ही रही।
आयात की वृद्धि दर में गिरावट का मुख्य रूप से पेट्रोलियम आयात में कम वृद्धि (0.4 प्रतिशत) और सोने एवं चांदी के आयात में गिरावट के कारण रही। एक निश्चित अवधि में विदेशी मुद्रा खर्च और और प्राप्ति के फर्क में मापा जाने वाला चालू खाते का घाटा (कैड) 2012-13 में 88 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद के 4.7 प्रतिशत के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया।
ऐसा मुख्य तौर पर सोना और पेट्रोलियम उत्पादों के उच्च आयात के कारण हुआ। बढ़ते कैड पर नियंत्रण के लिए सोने पर आयात शुल्क बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया था, जबकि आरबीआई ने सोने के आयात पर अंकुश के कई उपाय लागू कर दिए और स्वर्ण आयात पर विभिन्न किस्म की शर्तें लगा दी थीं।