देश के सभी 640 जिलों में हुई जनगणना के बाद यह बात सामने आई है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 17.9 करोड़ परिवारों में से 75 फीसदी परिवारों में अधिकांश का अधिकतम वेतन 5,000 रुपये (83 डॉलर) से कम है, 40 फीसदी परिवार भूमिहीन हैं और मजदूरी करते हैं।
शुक्रवार को जारी सामाजिक-आर्थिक एवं जातीय जनगणना (एसईसीसी) में इन तथ्यों का खुलासा हुआ, जिसमें यह भी पता चला है कि 25 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास फोन की सुविधा नहीं है। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक, जिन परिवारों के पास खेत है, उनमें से भी अधिकतर सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर हैं। 25 फीसदी के पास सिंचाई सुविधा नहीं है।
सिर्फ 8.29 फीसदी परिवारों में ऐसे व्यक्ति हैं, जिनका वेतन 10 हजार रुपये प्रति माह से अधिक है। शेष 17.18 फीसदी परिवार ऐसे हैं, जिनमें किसी व्यक्ति का वेतन 5,000 रुपये से 10,000 रुपये के बीच है। साथ ही 1,80,657 लोग अब भी सिर पर मैला ढोने का का काम करते हैं, जबकि यह कानूनन जुर्म है।
सरकार ने शुक्रवार को ग्रामीण भारत के लिए सिर्फ अस्थायी आंकड़े जारी किए। जेटली ने एसईसीसी जारी करते हुए कहा, "यह दस्तावेज भारत के घरेलू विकास को दर्शाता है। विभिन्न परिवारों में आए गुणात्मक सुधार से संबंधित यह दस्तावेज केंद्र और राज्यों में सभी नीति-निर्माताओं के लिए महत्वपूर्ण है।" उन्होंने कहा, "मुझे यकीन है कि यह दस्तावेज नीति निर्माण के संदर्भ में समूह विशेष को लक्षित करने में हमें मदद करेगी।"
इस जनगणना में सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को बेहतर तरीके से लक्षित करने के लिए 14 मानदंडों पर परिवार को स्वत:स्फूर्त तरीके से छांटकर बाहर करने और पांच मानदंडों पर परिवार को स्वत:स्फूर्त तरीके से लाभार्थियों में शामिल करने की व्यवस्था की गई है।
14 मानदंडों के आधार पर ऐसे 7.05 फीसदी परिवार लाभार्थियों की सूची से बाहर हो जाएंगे। इनमें प्रमुख तौर पर ऐसे परिवार शामिल हैं, जिनके पास एक वाहन है, किसान क्रेडिट कार्ड है, रेफ्रिजरेटर है और सरकारी कर्मचारी होने के कारण 10 हजार रुपये वेतन है।