भारतीय उद्योग जगत में अधिकांश को आशंका है कि ऊंची ब्याज दरें, प्रतिकूल व्यापक आर्थिक हालात और सुधार प्रक्रिया को बढ़ावा देने में सरकार की अक्षमता के कारण जुलाई-सितम्बर की अवधि के दौरान उनकी कारोबारी गतिविधियों में स्थिरता या फिर गिरावट आ सकती है।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा कराए गए एक कारोबारी दृष्टिकोण सर्वेक्षण के अनुसार, वित्त वर्ष 2012-13 की प्रथम तिमाही में अधिकांश व्यापारिक घरानों के सकल बिक्री, नए आर्डर्स, उत्पादन मूल्य, आविष्कार स्तर और रोजगार में स्थिरता देखी गई है।
मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कारोबारी विश्वास में और गिरावट आई, जो इस बात का संकेत है कि हालात और बदतर होने वाले हैं।
जुलाई-सितम्बर, 2012 के लिए सीआईआई का कारोबारी विश्वास सूचकांक 3.7 प्रतिशत गिरकर 51.3 पर आ गया, जबकि अप्रैल-जून, 2012 में यह बढ़कर 55 पर आ गया था। इसके पहले की तिमाही में यह 52.9 पर था।
सीआईआई के निदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने एक बयान में कहा है, "सूचकांक में गिरावट निम्न कारोबारी भावनाओं को जाहिर कर रहा है। यह स्थिति पिछले कुछ तिमाहियों से बनी हुई है।"
सर्वेक्षण में कहा गया है कि सुधारों में आई स्थिरता अधिकांश कम्पनियों की शीर्ष चिंता है। उसके बाद उपभोक्ता मांग में गिरावट और ऊंची ब्याज दर भी कम्पनियों के लिए चिंता के विषय हैं।
बढ़ती उत्पादन लागत कम्पनियों के लिए लगातार एक प्रमुख चिंता बनी रहने वाली है। अधिकांश कम्पनियों ने पूर्व की तिमाही की तुलना में अप्रैल-जून की तिमाही में कच्चे माल की लागत में, बिजली व ईंधन लागत में और मजदूरी व वेतन लागत में वृद्धि दर्ज की है।
निराशाजनक घरेलू नीतिगत परिदृश्य को जाहिर करते हुए निवेशक भावनाएं काफी कमजोर हो गई हैं।