बॉम्बे हाईकोर्ट ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी को मिली हुई 'जेड' श्रेणी की सीआरपीएफ की सुरक्षा को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी।
न्यायालय ने कहा कि केंद्र को किसी व्यक्ति या संगठन पर खतरे का विश्लेषण करने और उसे सुरक्षा प्रदान करने का शासकीय अधिकार है।
मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह और न्यायमूर्ति एमएस संकलेचा की खंडपीठ ने दो सामाजिक कार्यकर्ताओं नितिन देशपांडे और विक्रांत कर्णिक की जनहित याचिका खारिज कर दी। इस याचिका में उन्होंने अंबानी को सीआरपीएफ का सुरक्षा घेरा दिए जाने के केंद्र सरकार का 21 अप्रैल का आदेश रद्द करने का अनुरोध किया था।
अदालत ने कहा, सीआरपीएफ अधिनियम या नियमों में ऐसा कुछ नहीं है, जो किसी व्यक्ति या संस्था को सुरक्षा प्रदान करने में केंद्र सरकार को शासकीय अधिकार नहीं देता हो। सुरक्षा की मांग के बारे में पड़ताल करना और फैसला लेना अधिकारियों पर निर्भर करता है।
अदालत ने उच्चतम न्यायालय के 1955 के एक फैसले को आधार बनाया, जिसमें कहा गया है कि केंद्र शासकीय फैसले ले सकता है और उसे संसद द्वारा कोई कानून बनाने या उसमें संशोधन का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत के आदेश का हवाला देते हुए कहा, केंद्र सरकार के शासकीय अधिकार संसद के विधायी अधिकारों के साथ अस्तित्व में होते हैं।