15 अगस्त को जब पीएम नरेंद्र मोदी लाल किले की प्राचीर से भाषण देंगे तो विशेषज्ञों का ध्यान पूरी तरह से इस पर होगा कि वह अपने आर्थिक सुधार के एजेंडे पर क्या बोलते हैं।
संसद के कामकाज का सुषमा स्वराज-ललित मोदी के मुद्दे पर बाधित होने से एफडीआई को आकर्षित करने से जुड़े सुधारों और अर्थव्यवस्था को बेहतर पटरी पर लाने जैसे काम काज बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। इसमें टैक्स रिफॉर्म, जीएसटी जैसे मसलों पर आगे बढ़ना खासतौर से शामिल था।
सूत्रों का कहना है कि विपक्ष चाहता था कि जीएसटी पर किसी भी तरह से आगे न बढ़ा जाए ताकि स्वतंत्रता दिवस की स्पीच में कोई बड़ा ऐलान पीएम न कर पाएं। विशेषज्ञों को आशा है कि पीएम अर्थव्यवस्था को फिर से जिंदा करने की किसी योजना का संकेत देंगे। टाइम्स ऑफ इंडिया में अपने कॉलम में टिप्पणीकार गुरचरन दास लिखते हैं- मई 2014 में जिन स्कीमों के बारे में हमें बताया गया था, उसका विस्तृत रिपोर्ट कार्ड दें।
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सतीश मिश्रा ने कहा- पीएम मोदी ने वादा किया था कि वह इकॉनमी को तुरंत बदल देंगे और जीडीपी ग्रोथ वापस पटरी पर आ जाएगी। अब लोगों को इस पर काफी शक होने लगा है। जो कुछ वह दे सकते थे, उससे कहीं ज्याद उन्होंने वादे कर दिए।
आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने रुके हुए बिलों पर स्पष्टीकरण देने के बात ब्लूमबर्ग टीवी पर पहले ही कह चुके हैं। उनका कहना है कि इससे विदेशों में यह संदेश जाएगा कि भारत इन सब मामलों पर अब भी गतिशील है।
पीएम और उनकी पार्टी बीजेपी देशभर में कैंपेन के जरिए यह हाइलाइट करेगी कि कांग्रेस देश की इकनॉमिक ग्रोथ को जानबूझकर खराब कर रही है। सरकार पार्लियामेंट का स्पेशल सेशन बहस के लिए बुला सकती है और जीएसटी सुधारों पर वोटिंग करवा सकती है। लोक सभा में पास हो चुके जीएसटी रिफॉर्म को राज्य सभा में विपक्ष की मदद की दरकार है जहां सरकार अल्पमत में है।