नोटबंदी और डिजिटल अर्थव्यवस्था के नाम पर भले ही केन्द्र सरकार भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का दावा कर रही हो, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की अर्थव्यवस्था लगातार पिछड़ती जा रही है. समावेशी विकास में विश्व आर्थिक मंच ने जहां भारत को पाकिस्तान से भी नीचे 60वें स्थान पर रखा है, वहीं वैश्विक सलाहकार संस्था ने कहा है कि तीन साल पहले भारत में निवेश को लेकर जितना उत्साह था उसमें अब कमी आई है.
विश्व आर्थिक मंच यानी इंक्लूसिव ग्रोथ एंड डेवलपमेंट (डब्ल्यूईएफ) रिपोर्ट की ताजा समावेशी विकास सूची (आईडीआई) में भारत को नेपाल और पाकिस्तान से भी नीचे 60वां स्थान मिला है. डब्ल्यूईएफ ने दुनिया की अग्रणी 79 विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की यह सूची जारी की.
डब्ल्यूईएफ की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश देशों ने आर्थिक विकास के मौके गंवाए, साथ ही वे आर्थिक असमानता पाटने में भी नाकाम रहे. इसलिए हुआ, क्योंकि विकासशील देशों को अपनी-अपनी आर्थिक विकास की नीतियों और उसका निर्धारण करने वाले मानकों में बड़ा सुधार करना है.
डब्ल्यूईएफ की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) प्रति व्यक्ति के मामले में शीर्ष-10 देशों में शामिल है, इसके बावजूद मात्र 3.38 अंक हासिल कर 79 विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की आईडीआई सूची में 60वां स्थान हासिल कर सका. रिपोर्ट कहती है कि भारत में गरीबी घटी है, वह भी काफी ऊंची दर से.
डब्ल्यूईएफ ने आईडीआई सूची 12 परफॉर्मेस सूचकांकों के आधार पर तैयार की है और इसका मूल्यांकन तीन अहम मानकों विकास एवं वृद्धि दर, समावेशन एवं पीढ़ीगत मूल्य और सततता के आधार पर किया गया है.
उधर, वैश्विक सलाहकार संस्था (पीडब्ल्यूसी) के ताजा सालाना वैश्विक सीईओ सर्वेक्षण के मुताबिक वृद्धि के लिहाज से दुनिया के शीर्ष दो बाजारों में 43 प्रतिशत सीईओ ने पहले स्थान पर अमेरिका जबकि 33 प्रतिशत सीईओ ने चीन को दूसरा स्थान दिया है. भारत को इसमें छठा स्थान दिया गया है.
सर्वेक्षण में कहा गया है कि कुछ समय से मुख्य कार्यकारी अधिकारियों में भारत के प्रति उत्साह में कमी आई है. शायद इसकी वजह भारत में ढांचागत सुधारों की धीमी गति होना है. इसके अलावा हाल ही में वहां मुद्रा में बदलाव को लेकर भी कुछ अल्पकालिक समस्याएं खड़ी होने से ऐसा हुआ है.
इस बीच अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी भारत की मौजूदा वित्त-वर्ष में विकास दर कम रहने की संभावना व्यक्त की है. आईएमएफ के अनुसार, इस वर्ष भारत की विकास दर में नोटबंदी के कारण एक फीसदी तक की कमी आ सकती है.
(इनपुट भाषा से भी)