विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के लिए एक तरह से मूल्यवृद्धि को प्रमुख वजह मानते हुए वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि यह सामान्य ज्ञान की बात है कि ऊंची महंगाई का खामियाजा सत्ता में बैठी पार्टी को ही भुगतना पड़ता है।
उन्होंने हालांकि, मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए कृषि उत्पादों के समर्थन मूल्य में कमी या यूपीए के प्रमुख कार्यक्रम मनरेगा के तहत मजदूरी में कमी से यह कहते हुए इनकार किया कि यह सिर्फ कहने के लिए अच्छी बात है, लेकिन इससे गरीबों की जरूरतें नजरअंदाज होंगी।
चिदंबरम ने दिल्ली आर्थिक सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में कहा, यह सामान्य ज्ञान की बात है कि मौजूदा सरकार को ही उच्च मुद्रास्फीति का खामियाजा भुगतना पड़ेगा और विशेष तौर पर तब, जबकि महंगाई की दर लंबे समय से ऊंची बनी हुई हो।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी विधानसभा चुनाव में हार के लिए मुद्रास्फीति को एक प्रमुख वजह बताया था। चिदंबरम ने कहा कि मुद्रास्फीति को काबू में रखना सरकार की प्राथमिकता रही है, लेकिन इसके साथ ही फसल कटाई एवं विपणन में बुद्धिमानी और जमाखोरी तथा मुनाफाखोरी से सख्ती से निपटने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, इस संबंध में बने कानून (कृषि उत्पाद विपणन अधिनियम और आवश्यक वस्तु अधिनियम) पूरी तरह से राज्य सरकार के दायरे में आते हैं। इन कानूनों पर अधिसूचना जारी करना और अमल करना राज्य सरकारों का काम है, लेकिन राज्य सरकारें इन कानूनों पर कार्रवाई करने के प्रति अनिच्छुक हैं।
उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि इस मामले में राज्य सरकारों की अकर्मण्यता को उजागर करना जरूरी है, हालांकि, यह भी स्वीकार्य है कि केंद्र सरकार को महंगाई पर काबू पाने के हरसंभव प्रयास करना चाहिए। सरकार को प्याज की कीमत 100 रुपये किलो तक पहुंच जाने जैसे मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा। चिदंबरम ने कहा कि ऊंची खाद्युद्रास्फीति का जवाब है खाद्य उत्पादों की आपूर्ति बढ़ाना और जिंस व खाद्य उत्पादों के भंडारण, परिवहन, वितरण और विभिन्न बाजारों विशेष तौर पर शहरी बाजारों में बिक्री के तौर तरीके में उल्लेखनीय परिवर्तन लाना।