शेयर बाजारों में आगामी सप्ताह निवेशकों की नजर मौजूदा कारोबारी साल की पहली तिमाही में कंपनियों के परिणामों और प्रमुख आर्थिक आंकड़ों पर रहेगी।
सोमवार 15 जुलाई को बाजार पर औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े का असर रहेगा, जो शुक्रवार 12 जुलाई को शेयर बाजार के बंद होने के बाद जारी हुए। बाजार अगले सप्ताह उपभोक्ता महंगाई दर, थोक मूल्य पर आधारित महंगाई दर के प्रभाव में रहेगा।
पहली तिमाही के परिणाम आने शुरू हो गए हैं। सोमवार को टीटीके प्रेस्टिज, मंगलवार को अशोक लीलैंड, बुधवार को एचडीएफसी बैंक, गुरुवार को एक्सिस बैंक, आईडीबीआई बैंक, टीसीएस, शुक्रवार को एचडीएफसी, आरआईएल और यूको बैंक अपने परिणामों की घोषणा करेंगे।
निवेशकों की नजर कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत पर भी रहेगी। अमेरिकी वायदा बाजार में कच्चे तेल की कीमत 11 जुलाई को 15 महीने के शिखर पर प्रति बैरल 107 डॉलर से अधिक थी। रुपये की कमजोरी और तेल के महंगा होने से भारत के चालू खाता घाटा पर उलटा असर हो सकता है, क्योंकि भारत अपनी जरूरत के 80 फीसदी तेल का आयात करता है।
आने वाले कुछ सप्ताहों में बाजार में शेयरों की व्यापक आपूर्ति के कारण शेयर बाजारों के सूचकांकों के ऊपर की ओर बढ़ने की उम्मीद कम है। शेयर बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के दिशा-निर्देश के मुताबिक सूचीबद्ध कंपनियों में प्रमोटर की हिस्सेदारी घटानी होगी और आम निवेशकों को एक निश्चित अनुपात में हिस्सेदारी देनी होगी।
निजी सूचीबद्ध कंपनियों के लिए कंपनी में प्रमोटर की हिस्सेदारी की ऊपरी सीमा 75 फीसदी और सरकारी सूचीबद्ध कंपनियों में प्रमोटरों की हिस्सेदारी की ऊपरी सीमा 90 फीसदी तय की गई है।
सेबी के आदेश के मुताबिक निजी कंपनियों के संस्थापकों को अपनी हिस्सेदारी घटाकर अधिकतम 75 फीसदी के दायरे में लाने के लिए समय सीमा 30 जून निर्धारित थी, जबकि सरकारी कंपनियों को 8 अगस्त तक सेबी के आदेश पालन करना होगा।
वर्ष 2014 में सरकारी कंपनियों के विनिवेश के सरकारी लक्ष्य से भी शेयरों की बिकवाली को हवा मिलेगी। सरकार ने सार्वजनिक कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी के विनिवेश से वर्तमान कारोबारी वर्ष में 40 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। सरकार ने निजी कंपनियों में भी अपनी हिस्सेदारी के विनिवेश से 14 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है।
लोकसभा चुनाव से जुड़ी खबरों के चलते अगले साल मई तक शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव बने रहने के आसार हैं। माना जा रहा है कि अगली सरकार कई पार्टियों की मिली-जुली हो सकती है। सुधार की प्रक्रिया के अवरुद्ध होने की आशंका है। इसका असर वित्तीय घाटा प्रबंधन पर नकारात्मक रूप से पड़ सकता है। और वैश्विक रेटिंग एजेंसियां भारत की रेटिंग घटा सकती हैं।
बाजार में इस वक्त काफी गिरावट चल रहा है, इसे देखते हुए निवेशक बॉटमअप की रणनीति अपना सकते हैं। यानी वे सस्ते शेयर खरीद सकते हैं। छोटे निवेशकों को इस दौरान सेक्टर कॉल लेने के बजाय खास-खास शेयरों पर ध्यान देना चाहिए।