सहारा समूह द्वारा न्यायिक आदेश के बावजूद निवेशकों का 20 हजार करोड़ रुपये नहीं लौटाने के कारण उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को और सख्ती करते हुए इसके मुखिया सुब्रत राय को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का निर्देश दिया। न्यायालय ने इसके साथ ही बाजार नियामक सेबी को कंपनियों की संपत्तियों को बेचने की भी अनुमति दे दी है।
शीर्ष अदालत ने सुब्रत राय के साथ ही सहारा इंडिया रियल इस्टेट कार्प लि और सहारा इंडिया हाउसिंग इन्वेस्टमेन्ट कार्प लि के निदेशक रवि शंकर दुबे, अशोक राय चौधरी और वंदना भार्गव को भी 26 फरवरी को न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की खंडपीठ ने सेबी को सहारा समूह की उन संपत्तियों को बेचने का निर्देश दिया जिनके स्वामित्व के बिक्री विलेख निवेशकों का बीस हजार करोड़ रुपया वसूलने के लिये उसे सौंपे जा चुके हैं।
न्यायाधीशों ने कहा, 'उन संपत्तियों को आप बेच सकते हैं। हम आपको उन्हें बेचने और इससे धन प्राप्त करने की अनुमति देते हैं। यदि यह संपत्ति किसी तरह की विवादित हों तो आज कंपनी के खिलाफ आपराधिक मामला दायर कर सकते हैं। इस मामले को अंतिम निष्कर्ष तक लाना ही होगा।'
न्यायाधीशों ने पिछले डेढ़ साल से सहारा समूह द्वारा न्यायिक आदेशों की अवहेलना किए जाने पर भी सवाल उठाया। न्यायालय ने कहा कि सेबी इन संपत्तियों को नीलाम करके धन प्राप्त कर सकती है।
सेबी के वकील ने कहा कि कंपनी को खुद ही इन संपत्तियों को बेचने और इससे मिलने वाला धन जमा कराना चाहिए। इस पर न्यायाधीशों ने कहा, 'इस संपत्ति को बेचने में क्या परेशानी है। नीलामी कीजिए और धन प्राप्त कीजिए। संपत्ति की कीमत को भूल जाइए।'
न्यायाधीशों ने कहा, 'हम महसूस करते हैं कि वे (सहारा के लोग) ऐसा नहीं करेंगे और हम उन पर विश्वास नहीं करते हैं इसलिए आप ही कीजिए।' न्यायालय ने अपने आदेश में संपत्तियों को बेचने के मसले का जिक्र नहीं किया।
शीर्ष अदालत ने 31 दिसंबर, 2012 को अपने फैसले में सेबी को संपत्तियां जब्त करने और धन वसूल करने का निर्देश दिया था।
न्यायालय ने पिछले साल 21 नवंबर को स्पष्ट संकेत दे दिया था कि उसके निर्देशों की अवहेलना के मामले में कार्रवाई करने में न्यायालय असहाय नहीं है। न्यायालय ने सुब्रत राय के विदेश जाने पर रोक लगाने के साथ ही समूह को अपनी संपत्ति बेचने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था।
न्यायालय ने समूह के इस बचाव पर भी सवाल उठाये कि कंपनी पहले ही निवेशकों का धन लौटा चुकी है। न्यायालय ने कहा कि बचाव की इस दलील को पहले ही तीन न्यायाधीशों की बेंच ठुकरा चुकी है और बार बार इसे उठाने की जरूरत नहीं है।
समूह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने कहा क वह पूर्ववर्ती आदेशों का अवलोकन करने बाद सुनवाई की अगली तारीख पर अपना पक्ष रखेंगे।
शीर्ष अदालत ने 31 अगस्त, 2012 को सहारा समूह को नवंबर के अंत तक निवेशकों का 24 हजार करोड़ रुपये लौटाने का निर्देश दिया था। यह समय सीमा बढ़ाई गई थी और कंपनी को 5120 करोड़ रुपये 5 दिसंबर, 2012 तक जमा करने तथा दस हजार करोड़ जनवरी, 2013 के प्रथम सप्ताह में और शेष राशि फरवरी के पहले सप्ताह में जमा करने का निर्देश दिया गया था। सहारा समूह ने 5120 करोड़ रुपये 5 दिसंबर को जमा करा दिए थे, लेकिन अब उस पर आरोप है कि उसने शेष रकम जमा नहीं कराई।