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उच्चतम न्यायालय ने सहारा की याचिका खारिज की

न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की खंडपीठ ने सहारा समूह की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका पर बुधवार को चैंबर में विचार करने के बाद उसे खारिज कर दिया। इसी पीठ ने गत 31 अगस्त को सहारा समूह को निवेशकों का धन वापस करने का आदेश दिया था।
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NDTV Profit हिंदी05:59 PM IST, 10 Jan 2013NDTV Profit हिंदी
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उच्चतम न्यायालय ने निवेशकों को 24 हजार करोड़ रुपए लौटाने के फैसले पर सहारा समूह की पुनर्विचार याचिका खारिज की।

न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की खंडपीठ ने सहारा समूह की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका पर बुधवार को चैंबर में विचार करने के बाद उसे खारिज कर दिया। इसी पीठ ने गत 31 अगस्त को सहारा समूह को निवेशकों का धन वापस करने का आदेश दिया था।

न्यायाधीशों ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हमारे सामने पेश सारे रिकॉर्ड पर सावधानी से गौर किया गया है। इन पुनर्विचार याचिकाओं पर विचार नहीं किया जा रहा है और इसलिए इन्हें खारिज किया जा रहा है।’’ न्यायालय ने कहा कि कंपनियों द्वारा पेश सभी दलीलों पर पहले फैसले के समय ही विचार किया जा चुका था। इन पर फिर से गौर करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘इस मामले में हम दोनों द्वारा व्यक्त राय में किसी प्रकार का विचलन नहीं है। इसके विपरीत, आवेदक द्वारा कानूनी और तथ्यात्मक रुप से प्रस्तुत सभी दलीलों पर हर संभव पहलू और दृष्टिकोण से गौर किया गया, और उनका निस्तारण किया गया और जवाब दिया गया।’’ सहारा की पुनर्विचार याचिका खारिज किया जाना इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि इन कंपनियों ने निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए और समय दिए जाने की एक नई अर्जी भी पेश कर रखी है।

न्यायमूर्ति राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति खेहड की खंडपीठ ने 31 अगस्त को फैसला सुनाया था लेकिन 5 दिसंबर को प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस फैसले में सुधार करते हुए सहारा समूह की कंपनियों को निवेशकों का धन लौटाने के लिए नौ सप्ताह का और समय दे दिया था।

न्यायमूर्ति कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सेबी और निवेशकों के संगठन के विरोध के बावजूद सहारा समूह को यह मोहलत दे दी थी।

सेबी ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि किसी अन्य पीठ के निर्णय में इस तरह से सुधार करना उचित नहीं है और सहारा समूह की अर्जी पर न्यायमूर्ति राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति खेहड़ की पीठ को ही विचार करना चाहिए।

सहारा समूह ने मंगलवार को भी प्रधान न्यायाधीश के समक्ष इस मामले का उल्लेख किया था।

न्यायमूर्ति राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति खेहड़ की खंडपीठ ने 31 अगस्त के निर्णय में सहारा समूह की इन कंपनियों द्वारा निवेशकों से धन जुटाने के लिए नियम कानूनों का उल्लंघन करने के कारण उसके खिलाफ तीखी टिप्पणियां की थीं। न्यायालय ने कहा था कि इस तरह के आर्थिक अपराधों से सख्ती से निबटना चाहिए।

न्यायालय ने कहा था कि यदि सहारा इंडिया रियल इस्टेट कार्पोरेशन और सहारा हाउसिंग इंवेस्टमेन्ट कार्पोरेशन निवेशकों का धन लौटाने में विफल रही है तो सेबी उसकी संपत्तियों को कुर्क करने के साथ ही बैंक खाते भी जब्त कर सकती है।

न्यायालय ने सेबी की कार्रवाई की निगरानी के लिए शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीएन अग्रवाल को नियुक्त किया था।

सहारा इंडिया रियल इस्टेट कापरेरेशन ने 8 मार्च 2008 तक 19,400.87 करोड़ और सहारा हाउसिंग इंवेस्टमेन्ट कापरेरेशन 6380.50 करोड़ रुपए जुटाए थे लेकिन 31 अगस्त तक इस मद में 24,029.73 करोड़ रुपये कुल राशि थी। सहारा समूह को अब 24,029.73 करोड़ मूल धन और करीब 14 हजार करोड़ रुपये के ब्याज की रकम के साथ करीब 38 हजार करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ सकता है।

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