कुछ माह पूर्व बिहार विधान परिषद की 24 सीटों के लिए खड़े 170 उम्मीदवारों में आधे से ज्यादा आपराधिक और 45 फीसदी से अधिक उम्मीदवार करोड़पति थे। वर्तमान चुनावों की घोषणा के बाद अभी तक 72,000 लिटर शराब, बड़े पैमाने पर हथियार तथा 18.5 करोड़ रुपये की जब्ती हो चुकी है। अभी हाल में आयकर विभाग ने बिहार चुनाव के लिए हवाला से भेजे जा रहे 19 करोड़ रुपये भी पकडे हैं, जो चुनावी भ्रष्टाचार से सत्ता हथियाने के खेल का ट्रेलर ही माना जाएगा।
स्टिंग पर सनसनी फैलाकर चुनाव के आखिरी चरण में मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने का प्रयास करने वाला बीजेपी-नीत गठबंधन क्या भ्रष्ट व्यवस्था के मूल में कार्रवाई कर चुनावी राजनीति को आपराधिक वित्तीय पोषण के मकड़जाल से बाहर निकालने के लिए तैयार है। जेपी के आदर्शों की दुहाई देने वाले मोदीजी ने लोकसभा चुनावों के दौरान न सिर्फ विदेशों से काले धन की वापसी, वरन एक वर्ष के भीतर संसद को आपराधिक तत्वों से मुक्त करने का वादा किया था। न काला धन देश में आया, न संसद अपराधियों से मुक्त हुई। उसके उलट करोड़ों का काला धन और अवैध विदेश मुद्रा रखने वाले बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह केंद्र में मंत्री बन गए और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले पप्पू यादव को एनडीए सरकार द्वारा वाई कैटेगरी की सुरक्षा व्यवस्था प्रदान कर दी गई।
कानून का उल्लंघन करने वालों को 10 वर्ष की सज़ा के अलावा 300 फीसदी जुर्माना लगाने और भारत में उनकी संपत्ति जब्त करने के प्रावधान वाले कड़े कानून के बावजूद विदेशों से काला धन वापस लाने की योजना की विफलता के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली को भी बोलना पड़ा कि काले धन का असली स्रोत विदेश में नहीं, वरन देश में ही है। कुल जमा 4,147 करोड़ रुपये के काले धन की घोषणा वित्त मंत्रालय के सम्मुख की गई है, लेकिन उससे कई गुणा ज्यादा काला धन बिहार के चुनाव में खर्च हो रहा है।
थिंकटैंक सीएमएस के अनुमान के अनुसार भारत के पांच साल के चुनावों में सभी दल लगभग 1.5 लाख करोड़ का काला धन खर्च कर देते हैं। भारत सरकार के आयकर विभाग के आकलन के अनुसार बिहार का वर्तमान चुनाव अभी तक का सबसे महंगा चुनाव है, जहां 22 से 24 अरब रुपये खर्च होने का अनुमान है। बिहार में 6.68 करोड़ मतदाता 243 सीटों के लिए विधायक चुनेंगे, जहां प्रत्याशियों के लिए अधिकतम खर्च की सीमा 28 लाख रुपये ही है, लेकिन स्टिंग के वीडियो में बिहार के बर्खास्त मंत्री बता रहे हैं कि चुनाव जीतने के लिए कम से कम दो करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं, लेकिन यह तो दोनों गठबंधनों के सभी प्रत्याशियों का सच है।
वित्त मंत्रालय द्वारा काले धन की रोकथाम के लिए पैन नंबर के व्यापक प्रयोग को अनिवार्य बनाने की मुहिम के बावजूद बीजेपी सहित सभी राजनीतिक दलों द्वारा 20,000 रुपये से कम की आमदनी के विवरण (कुल आमदनी का लगभग दो-तिहाई) में दान-दाताओं का नाम और पैन विवरण कभी दिया ही नहीं जाता। आयकर कानून के अनुसार 20,000 रुपये से ऊपर भुगतान को चैक या बैंक ड्राफ्ट द्वारा देने की बंदिश के बावजूद इन दलों द्वारा अधिकांश खर्चों की रसीद या प्रमाण भी चुनाव आयोग को नहीं दिया जाता। केंद्रीय सूचना आयोग ने जून, 2013 में दिए गए फैसले से मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को आरटीआई कानून के तहत छह सप्ताह में सूचना अधिकारी नियुक्त करने और चंदे की जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया था, लेकिन उसका पालन आज तक नहीं हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने अगस्त, 2014 में सुनवाई के दौरान कहा था कि भ्रष्टाचार और अपराध का गंभीर रिश्ता लोकतंत्र की जड़ों को खोखला कर रहा है। पहले चरण के मतदान की पूर्व संध्या पर भ्रष्ट नेताओं का स्टिंग राजनीति की शुद्धिकरण की शुरुआत नहीं, चुनावी राजनीति में पांच साल की फसल काटने का दांव है। हरियाणा में रॉबर्ट वाड्रा, राजस्थान में ललित मोदी, महाराष्ट्र में छगन भुजबल के भ्रष्टाचार के विरुद्ध बीजेपी ने वोट मांगे, लेकिन सरकार बनाने के बाद आज तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई और माफिया अफसर यादव सिंह को बिहार के चुनाव की राजनीति की वजह से अभी तक गिरफ्तार ही नहीं किया गया।
एडीआर के अनुमान के अनुसार बिहार के वर्तमान चुनाव में लगभग एक-तिहाई उम्मीदवार आपराधिक और माफिया पृष्ठभूमि से हैं, जो निश्चित तौर पर भावी सरकार में भी प्रभावी रहेंगे। इस स्टिंग के बाद पहले चरण में रिकॉर्ड 57 फीसदी मतदान हुआ है, जिससे बीजेपी-नीत गठबंधन द्वारा बढ़त हासिल करने की संभावना बढ़ गई है, परंतु सरकार बनने पर जेपी के आदर्शों का अनुकरण करने की बात और भ्रष्ट राजनीति बदलने का वादा बिहार की जनता के लिए एक नया जुमला ही साबित होगा।