हिमाचल में क्रिकेट एसोसिएशन को लेकर फिर आमने सामने कांग्रेस-बीजेपी

हिमाचल के सीएम वीरभद्र सिंह की फाइल फोटो

चंडीगढ़:

हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) को लेकर कांग्रेस-बीजेपी एक बार फिर आमने सामने हैं। प्रदेश सरकार ने गुरुवार को बीजेपी के भारी हंगामे के बीच विधानसभा में नया खेल विधेयक पास करवा लिया। इसके साथ ही एचपीसीए समेत प्रदेश के 42 खेल संघों पर सरकारी नियंत्रण का रास्ता साफ़ हो गया है।

बीजेपी का आरोप है कि नया कानून एचपीसीए पर कब्ज़े की नीयत से लाया गया है। फिलहाल हमीरपुर से बीजेपी सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर एचपीसीए के अध्यक्ष हैं।

नए कानून के तहत सभी खेल संघों को अपनी नियमावली में बदलाव करने होंगे, ताकि लोकतांत्रिक तरीके से हर चार साल में चुनाव कराए जा सकें। अब सरकार खेल समितियों के चुनाव से लेकर बही-खातों पर नज़र रख सकेगी।

हालांकि, सरकारी नियंत्रण से बचने के लिए एचपीसीए के नियमों में फेर बदल करके इसे पहले ही कंपनी बनाया जा चुका है। लेकिन कांग्रेस सरकार का कहना है कि धर्मशाला में स्टेडियम और स्पोर्ट्स रिट्रीट के लिए एचपीसीए को रियायती दरों पर ज़मीन बतौर समिति दी गई थी। लिहाजा अब या तो एचपीसीए ज़मीन लौटाए या फिर वापिस समिति के तौर पर पंजीकरण करवा ले।

विपक्ष के नेता प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि नया कानून ओलिंपिक भावना के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि बीजेपी बिल को सेलेक्ट समिति के पास भेजने की मांग कर रही थी, जिसे सरकार ने नहीं माना।

वहीं मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का कहना है कि अब तक खेल संघों पर एक ही परिवार का कब्ज़ा रहा है, नए कानून से एकाधिकार ख़त्म होगा और कार्यप्रणाली पारदर्शी हो पाएगी। लेकिन एचपीसीए के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने खेल विधेयक को खेल विरोधी बताते हुए इसे काला कानून करार दिया है। उन्होंने कहा कि बीसीसीआई पहले ही साफ़ कर चुके है कि अगर कोई प्रदेश अगर ऐसा कानून पास करता है तो उस कानून के तहत कोई खेल संघ बनता है तो उसे मान्यता नहीं दी जाएगी।

ख़ास बात यह कि कांग्रेस 2005 में भी एचपीसीए से अनुराग ठाकुर को बाहर करने की कोशिश कर चुकी है। तब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ऐसे ही खेल विधेयक लाए थे, जिसे बाद में ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।


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