यह ख़बर 14 जनवरी, 2013 को प्रकाशित हुई थी

टीम इंडिया में नंबर 'सात' का संकट

खास बातें

  • मौजूदा समय में भारतीय क्रिकेट टीम का प्रदर्शन औसत से बेहतर नहीं हो पा रहा है। टीम एक समस्या का हल तलाशती है तो दूसरी समस्या के चलते हार जाती है। बल्लेबाज़ बेहतर करते हैं तो गेंदबाज़ टीम को डूबो देते हैं। गेंदबाज़ बेहतर करते हैं तो बल्लेबाज़ी बिखर जाती है।

मौजूदा समय में भारतीय क्रिकेट टीम का प्रदर्शन औसत से बेहतर नहीं हो पा रहा है। टीम एक समस्या का हल तलाशती है तो दूसरी समस्या के चलते हार जाती है। बल्लेबाज़ बेहतर करते हैं तो गेंदबाज़ टीम को डूबो देते हैं। गेंदबाज़ बेहतर करते हैं तो बल्लेबाज़ी बिखर जाती है।

कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी लगातार सवालों के घेरे में हैं। कभी 'कैप्टन कूल' के नाम से मशहूर धोनी क्लब स्तर के कप्तान नजर आ रहे हैं।

कहते हैं कि जब प्रदर्शन लगातार खराब हो तो आत्मविश्वास डगमगाने लगता है। टीम इंडिया भी इस वक्त डगमगाती हुई नाव बन चुकी है।

इन तमाम मुश्किलों के बीच ही है नंबर सात का संकट। अमूमन वनडे में नंबर सात पर वह खिलाड़ी फिट होता है जो ऑलराउंडर हो जरूरत के हिसाब से बल्ले और गेंद दोनों से उपयोगी भूमिका निभा सके।

मौजूदा टीम के पास ऐसा कोई उपयोगी खिलाड़ी नहीं दिख रहा है। फिलहाल, रविंद्र जडेजा इस स्थान पर खेल रहे हैं। इंग्लैंड के खिलाफ राजकोट में रविंद्र जडेजा अगर थोड़ा दमखम दिखाते तो मैच का नतीजा भारत के पक्ष में हो सकता था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के आउट होने के बाद जडेजा को विकेट पर टिकना था लेकिन वह जल्दी ही पवेलियन लौट गए।

टीम इंडिया में वापसी के बाद जडेजा का प्रदर्शन औसत रहा है। बीते तीन वनडे मैचों में जडेजा ने 727 और 13 का स्कोर बनाया है।

जडेजा का ये प्रदर्शन तब है जब टीम इंडिया में उनकी वापसी दो−दो तिहरा शतक जमाने के बाद हुई। उन्होंने महज 10 दिन के अंदर दो−दो तिहरे शतक जमाए हैं।

इतना ही नहीं, घरेलू क्रिकेट में सबसे ज़्यादा तीन तिहरे शतक लगाने का करनामा भी जडेजा के नाम है लेकिन इंटरनेशनल मुकाबलों में वह अपने बल्ले से कुछ भी ख़ास नहीं कर पा रहे हैं।

गेंदबाज़ी में जडेजा जरूर अच्छा कर रहे हैं। वे विपक्षी टीम पर अंकुश लगाने वाले गेंदबाजी कर रहे हैं और जरूरत पड़ने पर विकेट भी झटक रहे हैं। उनकी फील्डिंग भी लाजवाब है। वे टीम के सबसे फिट खिलाड़ियों में शामिल हैं। लेकिन बल्लेबाज़ी में वे टीम की रणनीति में फिट नहीं बैठ रहे हैं।

वनडे टीम में नंबर सात की जगह भरने वाला कोई जोरदार खिलाड़ी दिख नहीं रहा है। एक इरफान पठान दावेदार जरूर हैं। लेकिन अभी वो पूरी तरह से फ़िट नहीं हैं। उनमें तेजी से रन बनाने की काबिलियत जरूर है। लेकिन अपने हिस्से की पूरी गेंदबाज़ी करने के बाद वह बल्लेबाज़ी में भी कामयाब होंगे। ये दावे से नहीं कहा जा सकता।

इरफ़ान के भाई यूसुफ़ पठान को भी इस स्थान के लिए जोरदार दावेदार माना गया था लेकिन उन्होंने मिले मौकों पर निराश ही किया।

भारतीय क्रिकेट का यह संकट कितना बड़ा है कि इन तीन खिलाड़ियों के अलावा ऑलराउंडर के तौर पर टीम में शामिल होने के लिए किसी दूसरे क्रिकेटर का नाम नहीं उभरा है जिसमें ऑलराउंड प्रतिभा मौजूद हो।

युवराज सिंह की ऑलराउंड काबिलियत और महेंद्र सिंह धोनी की विकेटकीपिंग−बल्लेबाज़ी की ऑलराउंड भूमिका के बीच में टीम इंडिया के मैनेजमेंट ने ऑलराउंडर तलाशने के काम को ताक पर रख दिया है।

ले-देकर एक चेहरा पूर्व ऑलराउंडर रॉजर बिन्नी के बेटे स्टुअर्ट बिन्नी नजर आता है। कर्नाटक की टीम की ओर बीते कुछ सालों में उनका प्रदर्शन जोरदार जरूर रहा है लेकिन अब उनकी उम्र 29 साल की हो चुकी है। लिहाजा 2015 की वर्ल्ड कप तैयारियों के लिए वे भी फ़िट नहीं हैं।

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जिस देश ने ऑलराउंडर के बूते ही 1983 में क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीता था वहां ऑलराउंडरों का ऐसा आकाल किसी को नजर नहीं आ रहा। कम से कम देश में क्रिकेट चलाने वालों को तो एकदम नहीं।