वर्ल्ड कप डायरी : कहीं मीडिया तो कहीं खिलाड़ी लांघ रहे दहलीज़

नई दिल्ली:

पाकिस्तान ने वर्ल्ड कप में पहली बार दक्षिण अफ़्रीका को हराया और साबित कर दिया कि उनका दांव ख़त्म समझने वाले लोग
ग़लत हैं। दक्षिण अफ़्रीका को इस बार भी वर्ल्ड कप के सबसे मज़बूत दावेदारों में एक माना जा रहा है। ऐसे में पाकिस्तान
की दक्षिण अफ़्रीका के ऊपर जीत उनकी ताक़त और उनकी काबिलियत का अंदाज़ा करवाती है। लेकिन जीत का जश्न मनाने के बजाए जब पत्रकार अटकलों के आधार पर या बगैर सबूत के ऐसे सवाल पूछते हैं जो उनकी हद से बाहर के नज़र आते हैं तो ज़ायका ज़रूर बिगड़ जाता है।

पाकिस्तान की जीत के बाद एक पाकिस्तानी पत्रकार ने कोच वकार यूनुस से सवाल पूछा कि उन्होंने मैन ऑफ़ द मैच बने सरफ़राज़ अहमद (49 गेंदों पर 49 रन और छह कैच) को पहले चार मैचों में क्यों नहीं खिलाया? उनके मुताबिक कहीं ये पाकिस्तान क्रिकेट में जारी लाहौर-कराची की राजनीति तो नहीं है? मामला आगे बढ़ गया और कोच सरफ़राज़ नवाज़ यह कहकर प्रेस कॉन्फ़्रेंस से बाहर चले गए कि उनके पास ऐसे बेवकूफ़ी भरे सलावों के लिए जवाब नहीं हैं।

टीम और पत्रकारों के बीच की यह झड़प वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में टीम की लय तो बिगाड़ ही सकती है, फ़ैन्स का ज़ायका भी बिगाड़ती हैं और खिलाड़ी, कोच और पत्रकारों को भी सवालों के घेरे में डालती हैं।

कुछ ऐसी ही हालत भारत-वेस्ट इंडीज़ मैच से पहले विराट कोहली और एक भारतीय पत्रकार के बीच मसले को लेकर गर्म हो गया। आख़िरकार टीम मैनेजमेंट और बीसीसीआई को मामले में दख़ल देना पड़ा, तब जाकर मामला शांत हुआ और फ़ोकस फिर से क्रिकेट हो गया।

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जब पत्रकार, खिलाड़ी, कोच या अधिकारी खुद को खेल से बड़ा समझने लगते हैं तो अहं का टकराव अवश्यंभावी हो जाता है। ख़ासकर एशियाई क्रिकेट के लिए यह कमाल की बात है कि इस वक्त भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश - ये चारों टीमें क्वार्टरफ़ाइनल की रेस में बरक़रार हैं। इन चारों देशों के स्टेकहोल्डर्स यानी फ़ैन्स, क्रिकेटर, टीम मैनेजमेंट और अधिकारी इन खेलों का लुत्फ़ उठायें और इसे आगे बढ़ाने में जो सकारात्मक योगदान दे सकते हैं, ज़रूर दें।