धार्मिक महत्व के साथ ही स्वच्छता एवं पर्यावरण की दृष्टि से खास है छठ महापर्व

धार्मिक महत्व के साथ ही स्वच्छता एवं पर्यावरण की दृष्टि से खास है छठ महापर्व

नई दिल्ली:

दीपावली के ठीक छह दिन बाद मनाए जाने वाले छठ महापर्व का विशेष स्थान है जिसे धार्मिक दृष्टि से तो विशिष्ट माना ही जाता है, साथ ही इसे साफ सफाई एवं पर्यावरण की नजर से भी महत्वूपर्ण माना जाता है जिसे देश के साथ विदेशों में कई जगहों पर पारंपरिक श्रद्धा एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में 'मन की बात' कार्यक्रम में कहा था कि भारत के पूर्वी इलाके में छठ-पूजा का त्योहार, एक बहुत बड़ा त्योहार होता है. एक प्रकार से महापर्व है, चार दिन तक चलता है, इसकी एक विशेषता है - समाज को एक बड़ा गहरा संदेश देता है. भगवान सूर्य हमें जो देते हैं, उससे हमें सब कुछ प्राप्त होता है. प्रत्यक्ष और परोक्ष.

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य षष्ठी का व्रत करने का विधान है. हालांकि यह नहाय खाय के साथ ही शुरू हो जाता है जिसमें साफ सफाई का खास ध्यान रखा जाता है. व्रती नहाय-खाय के साथ ही महापर्व की तैयारियों में जुट गये . छठ बाजार से भी लोगों ने सूप, दउरा, आम की लकड़ी और फल एवं अन्य सामान खरीदे और आज सूर्यदेव को सांध्य अघ्र्य की पूरी तैयारी की . कल सुबह सूर्योदय के समय व्रती पानी में खड़े होकर सूर्य उपासना करेंगे.

छठ पूजा के बारे में कई लोक कथाएं प्रचलित हैं. इसमें एक कथा में कहा गया है कि भगवान राम जब लंका विजय करने के बाद अयोध्या आए थे तब उन्होंने अपने कूल देवता सूर्य की उपासना की थी . देवी सीता के साथ उन्होंने पष्टी तिथि को डूबते हुए सूर्य को अध्र्य दिया और सप्तमी को उगते हुए सूर्य की अराधना की. एक अन्य कथा सूर्य पुत्र कर्ण से भी जुड़ी है जो अंग देश के राजा थे और नियमित रूप से सूर्य की उपासना करते थे.

छठ के व्रत के संबंध में प्रचलित कथाओं में एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा. तब उनकी मनोकामना पूरी हुई तथा पांडवों को राजपाट वापस मिला.


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