खराब मौसम के कारण नेपाल के रास्ते कैलाश-मानसरोवर की यात्रा खतरनाक, जारी हुई एडवाइजरी

खराब मौसम के कारण नेपाल के रास्ते कैलाश-मानसरोवर की यात्रा खतरनाक, जारी हुई एडवाइजरी

फाइल फोटो

काठमांडू:

नेपाल स्थित भारतीय दूतावास ने भारतीय नागरिकों के लिए एक एडवाइजरी जारी की। इसमें कहा गया है कि जो श्रद्धालु कैलाश-मानसरोवर की यात्रा नेपाल के रास्ते करना चाहते हैं, वे इससे परहेज करें क्योंकि मौसम के बहुत खराब रहने की भविष्यवाणी की गई है।
 
दूतावास ने एक बयान में कहा, "चूंकि आने वाले हफ्तों में मौसम की स्थिति और खराब होने वाली है, इसलिए भारतीय नागरिकों को सलाह दी जाती है कि वे कैलाश पर्वत और पवित्र मानसरोवर झील तक जाने के लिए नेपालगंज-सिमिकोट-हिलसा मार्ग से परहेज करें।"
 
नेपालगंज-सिमिकोट-हिलसा मार्ग को कठिन माना जाता है, लेकिन बहुत सारे भारतीय चीन की सीमा के करीब इसी खतरनाक मार्ग को प्राथमिकता देते हैं।
 
बड़ी संख्या में भारतीय नेपालगंज-सिमिकोट-हिलसा मार्ग से होकर कैलाश-मानसरोवर यात्रा के लिए अपने स्तर से व्यवस्था करते हैं।
 
दूतावास ने कहा कि खराब मौसम की वजह से काफी लोग हिलसा और सिमिकोट में ठहरने और खाने की समस्या का सामना करते हैं।
 
मौसम बहुत खराब रहने की वजह से हिलसा से सिमिकोट हेलीकॉप्टर से और सिमिकोट से नेपालगंज विमान से लोगों को निकालकर ले जाना संभव नहीं हो पाता।
 
केवल इसी हफ्ते 500 से अधिक भारतीय हिलसा और सिमिकोट में फंस गए थे और अधिकारियों को उन्हें वहां से निकालने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
 
इन सभी तीर्थ यात्रियों को निजी भारतीय टूर आपरेटर लाए थे और उन्हीं ने उनकी यात्रा एवं रहने खाने का इंतजाम किया था।
 
इनमें से अधिकतर को हिलसा-सिमिकोट इलाके से नेपाली सुरक्षा अधिकारियों की मदद से हवाई मार्ग से निकाला गया।
 
भारतीय दूतावास ने कहा है कि नेपाल सरकार और यात्रा संचालकों की सहायता से तीर्थयात्रियों को हिलसा से सिमिकोट और सिमिकोट से नेपालगंज से समय से बाहर निकालने की हर संभव व्यवस्था की जा रही है।
 
हालांकि, खराब मौसम नियमित हवाई सेवा में बाधा डाल रहा है, इस वजह से हिलसा और सिमिकोट में जो लोग फंसे हैं उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
 
हर साल कैलाश-मानसरोवर यात्रा जून से सितंबर तक होती है। भारतीय विदेश मंत्रालय तीर्थयात्रियों को दो मार्गो से कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर भेजता है। ये हैं उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से होकर जो 25 दिन की यात्रा है और सिक्किम के नाथु ला से होकर जो यात्रा 23 दिन में पूरी होती है।


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