कहां से आए थे, कहां चले गए नागा साधु, आखिर क्या है इनकी यात्रा का रहस्य

कहां से आए थे, कहां चले गए नागा साधु, आखिर क्या है इनकी यात्रा का रहस्य

सभी फोटो साभार: simhasthujjain.in

भारत में चार स्थानों पर 12 वर्षों के अन्तराल पर कुंभ आयोजित होता है। ये स्थान हैं: प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी कहे जाने वाले उज्जैन में यह महापर्व 21 मई को संपन्न हुआ।
 
हर कुंभ की एक ख़ास पहचान हैं नागा साधु। लेकिन कुंभ में इनका आना और जाना हमेशा से कुतूहल का विषय रहा है। उज्जैन सिंहस्थ में भी यही हुआ।
 
आखरी शाही स्नान के बाद गायब हो गए नागा साधु...
इस बार भी सिंहस्थ कुंभ के आखरी शाही स्नान के बाद रात से नागा साधु ही उज्जैन से रवाना हो गए। लगातार 30 दिनों तक सिंहस्थ की पहचान बने इन नागा साधुओं का इस तरह एकाएक गायब होना लोगों को हैरत में डाल गया।


आश्चर्यजनक यह कि सिंहस्थ में इन नागा साधूओं को न तो लोगों ने आते देखा था और न ही जाते। आखिर नागा साधु कैसे आए और अचानक क्यों गायब हो गए, यह रहस्य लोगों को आश्चर्य में डाल गया।
 
कहां से आए और कहां चले गए...
कुंभ मेलों में 13 अखाड़ों के नागा और वैरागी साधु शिरकत करते हैं। इस बार उज्जैन सिंहस्थ कुंभ में हजारों नागा साधु आए और चले भी गए, लेकिन किसी ने न तो उन्हें आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
 
वे कैसे और कहां से आए और ऐसे क्यों गायब हो गए, इसकी चर्चा आज भी हर कोई कर रहा है।
 


जंगल के रास्ते यात्रा करते हैं नागा साधु...
कहते हैं कि नागा साधु घने जंगल के रास्ते से यात्रा करते हैं। माना जाता है कि ये देर रात में अपनी यात्रा शुरू करते हैं, जब लोग नींद की आगोश में होते हैं।
 
इंसानों से इनका अधिक आमना-सामना न हो इसलिए ये यात्रा के दौरान किसी गांव या नगर में नहीं बल्कि जंगल और वीरान रास्तों में ही डेरा डालते हैं। यही कारण बताया जाता है कि ये आते या जाते हुए ये किसी को नजर नहीं आते हैं।
 
यात्रा के दौरान नहीं सोते हैं नागा साधु...
कहते हैं कि ये यात्रा में केवल कंदमूल, जड़ी-बूटियों, फल-पत्तियों का ही सेवन करते हैं, जो ये जंगल से ही प्राप्त कर लेते हैं।
 
माना जाता है कि अपनी यात्रा के दौरान नागा साधु सोते भी नहीं हैं, जब तक जरुरी न हो। और, यदि सोते भी हैं, वो भी जमीन पर, बिना किसी प्रकार के कृत्रिम बिस्तर के।
 
 
हर अखाड़े में होता है एक कोतवाल...
साधुओं की अखाड़ों की परंपरा के अनुसार, हर अखाड़े में एक कोतवाल होता है, जो नागा साधुओं और अखाड़ों के बीच की मध्यस्थ का काम करता है। जब दीक्षा पूरी होने के बाद नागा साधु अखाड़ा छोड़ साधना करने जंगल, पहाड़ों या कंदराओं में चले जाते हैं, तब ये कोतवाल ही नागाओं और अखाड़ों को सूचनाएं पहुंचाते हैं।
 
जब कभी कुंभ और अर्धकुंभ जैसे महापर्व आयोजित होता है तो ये नागा साधु, कोतवाल की सूचना पर पर वहां रहस्मय तरीके से पहुंच जाते हैं।
 
अपना स्थान बदलते रहते हैं नागा साधू...
उससे पहले अखाड़ों के ज्यादातर नागा साधु प्रायः हिमालय की दुर्गम चोटियों, उत्तराखंड, बनारस, गुजरात आदि स्थानों पर रहते हैं और रिहायशी इलाकों से दूर यहां की गुफाओं और कन्दराओं में साधनारत होते हैं।
 
सामान्यतः नागा सन्यासी अपनी पहचान छिपा कर रखना पसंद करते हैं और एक गुफा या स्थान पर कुछ साल रहने के बाद अपनी जगह बदल देते हैं।

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