यह ख़बर 15 अप्रैल, 2011 को प्रकाशित हुई थी

दिल को नहीं छू पाए ये तीन भाई

खास बातें

  • '3 थे भाई' में निर्देशक मृगदीप सिंह लांबा ने ओमपुरी, श्रेयस तलपडे और दीपक दोबरियाल जैसे मंझे हुए कलाकारों का टैलेंट वेस्ट कर दिया।
New Delhi:

राकेश मेहरा प्रोड्यूसर बन गए हैं। शुक्रवार को रिलीज़ हुई उनकी फिल्म ' 3 थे भाई' जिसमें ओम पुरी, श्रेयस तलपडे और दीपक दोबरियाल जैसे मंझे हुए कलाकार हैं। फिल्म '3 थे भाई'  ऐसे भाइयों पर है जो एक-दूसरे से नफ़रत करते हैं। पहला भाई चिक्सी जो छोटी-मोटी दुकान चलाता है। दूसरा भाई हैप्पी कर्ज का मारा डेंटिस्ट और तीसरा मामूली एक्टर जिस पर हॉलीवुड का नशा हावी है। अलग-अलग रहने वाले ये भाई अपनी जिंदगी से त्रस्त हैं लेकिन एक दिन तीनों भाइयों को पता चलता है कि उनके स्वर्गीय दादाजी करोड़ों की जायदाद छोड़ गए हैं। वसीयत के मुताबिक जिसे पाने की एक ही शर्त है। तीन साल तक एक बर्फीली पहाड़ी पर जाकर दादाजी की बरसी मनाना वह भी साथ मिलकर। बस यहीं कहानी आकर खत्म हो जाती है। इसके बाद पूरी फिल्म में तीनों भाई लड़ते झगड़ते नज़र आते हैं। एक- दूसरे पर झपटने कूदने गिराने और खरी खोटी की ये मैराथन खत्म ही नहीं होती। लगता है जैसे लाइव आर्टिस्ट को लेकर टॉम एंड जैरी जैसी कार्टून फिल्म बनाने की कोशिश की गई लेकिन मुझे संदेह है कि इसे देखकर बच्चे भी हंसेंगे। बंद कमरे में शूट किए लंबे-लंबे सीन्स देखकर लगता है जैसे फिल्म नहीं कोई नाटक खेला जा रहा हो। ओमपुरी, श्रेयस तलपडे और दीपक दोबरियाल जैसे मंझे हुए कलाकारों के टैलेंट को डायरेक्टर मृगदीप सिंह लांबा ने वेस्ट कर दिया। बहुत अच्छा कॉन्सेप्ट था। तीन भाइयों की कहानी में काफी इमोशनल अपील हो सकती थी। खासकर जब दलेर मेहंदी की आवाज़ में अच्छा टाइटल सांग पहले ही आ चुका था। दीपक दोबरियाल और रागिनी खन्ना की छोटी-सी लव स्टोरी ज़रूर दिल को छूती है। काश इसे बढ़ाया जाता। श्रेयस तलपडे से कुछ अच्छे डायलॉग्स बुलवाए गए। कुछ सीन्स देखकर मुस्कुराहट भी तैर जाती है। अफसोस कि तीन थे भाई राकेश मेहरा जैसे फिल्मकार ने प्रोड्यूस की। फिर भी मन में एक ही संतोष है कि चलो ये सिर्फ तीन ही भाई थे ज्यादा होते तो हमारा क्या होता। फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 1.5 स्टार।


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