यह ख़बर 06 अक्टूबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

‘कॉर्पोरेट कल्चर’ के खिलाफ हिंदुस्तानी स्वाभिमान की लड़ाई है ‘बुलेट राजा’

खास बातें

  • अमरेश ने कहा, 'फिल्म की कहानी उदारवादी आर्थिक नीतियों से मोहभंग के दौर में समाज के कुछ वर्गों द्वारा आयातीत विदेशी संस्कृति के खिलाफ हिन्दी उर्दू क्षेत्र के लोगों के जज्बे, गुस्से और विक्षोभ को दर्शाता है।'
नई दिल्ली:

नवंबर महीने के अंत में रिलीज होने जा रही फिल्म ‘बुलेट राजा’ के पटकथा लेखक अमरेश मिश्र के अनुसार यह फिल्म कार्पोरेट कंपनियों की एकरूपता पैदा करने जैसी तमाम संस्कृति के खिलाफ ठेठ भारतीय आत्मसम्मान, स्वाभिमान और पौरुष के बगावत की कहानी है।

अमरेश मिश्र ने राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के निर्देशक तिग्मांशु धूलिया के साथ मिलकर फिल्म ‘बुलेट राजा’ की कहानी लिखी है। तिग्मांशु और अमरेश अच्छे दोस्त भी हैं।

इस फिल्म का प्रस्ताव लेकर वह तिग्मांशु से पहली दफा 2006 में मिले थे और तब इस फिल्म का नाम ‘दिन दहाड़े’ रखा था जिसे बाद में बदलकर कर ‘बुलेट राजा’ किया गया। इस फिल्म का निर्देशन तिग्मांशु धूलिया ने किया है।

फिल्म की पटकथा तैयार करने की पृष्ठभूमि के बाबत अमरेश ने कहा, ‘‘फिल्म की कहानी उदारवादी आर्थिक नीतियों से मोहभंग के दौर में समाज के कुछ वर्गों द्वारा आयातीत विदेशी संस्कृति के खिलाफ हिन्दी उर्दू क्षेत्र के लोगों के जज्बे, गुस्से और विक्षोभ को दर्शाता है। फिल्म में यह दर्शाया गया है कि कैसे फिल्म के दो चरित्र (सैफ अली खान और जिमी शेरगिल) इस संस्कृति के खिलाफ अपने गुस्से के इजहार के लिए अपराध का रास्ता अख्तियार कर लेते हैं।’’

लेखक, फिल्म समीक्षक और सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता अमरेश ने कहा, ‘‘यह विशुद्ध रूप से मुख्यधारा की फिल्म है जिसका ढांचा पाश्चात्य फिल्मों का है। इसमें हिंसा का तारतम्य है जिसकी तुलना अमेरिकी फिल्म निर्देशक जार्ज रॉय हिल की ‘बुच केसेडी एंड सन डांस किड’ फिल्म से की जा सकती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कॉर्पोरेट कल्चर में अपेक्षा की जाती है कि लोगों के बीच व्यवहार में एकरूपता हो, उनके काम करने के तरीके में एकरूपता हो। गहराई में जाकर देखें तो यह लोगों को अपने से ही बेगाना बनाता है। इसमें अपेक्षा की जाती है कि ब्राह्मण टीका न लगाए, मुसलमान पांच वक्त की नमाज न पढ़े और इस संस्कृति की ‘मदर कंट्री’ (केन्द्र) अमेरिका है।’’

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अमरेश ने कहा, ‘गहराई में जाकर देखें तो देश में 1857 का विद्रोह भी उस समय के साम्राज्यवादियों द्वारा भारतीय समाज पर थोपी जा रही संस्कृति के खिलाफ था। कुल मिलाकर इस पूरी पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर इस फिल्म को तैयार किया गया है जो अपने स्वरूप में तो शुद्ध मुख्यधारा की फिल्म है, लेकिन अपनी विषयवस्तु में कई गंभीर पहलुओं को छूते हुए आगे बढ़ती है।’