यह ख़बर 12 अप्रैल, 2014 को प्रकाशित हुई थी

दादासाहब फाल्के पुरस्कार के लिए चुने गए गुलजार

नई दिल्ली:

‘तुझसे नाराज नहीं’ और ‘तेरे बिना जिंदगी से’ जैसे अनगिनत यादगार गीत लिखने वाले और ‘आंधी’ तथा ‘मौसम’ जैसी फिल्मों का निर्देशन करने वाले गुलजार साहब का नाम आज प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया, जो भारत में फिल्मी हस्तियों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है।

‘मेरे अपने’, ‘कोशिश’, ‘खुशबू’, ‘अंगूर’, ‘लिबास’ और ‘माचिस’ जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके 79 वर्षीय गुलजार यह सम्मान पाने वाले 45वीं शख्सियत होंगे।

सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी बयान के अनुसार प्रतिष्ठित कलाकारों की सात सदस्यीय ज्यूरी ने एकमत से इस पुरस्कार के लिए गुलजार के नाम की सिफारिश की।

आजादी के पहले के भारत में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में 1934 में जन्मे गुलजार का नाम संपूर्ण सिंह कालरा है। उनका परिवार विभाजन के दौरान अमृतसर आ गया, लेकिन गुलजार बंबई गए और गैराज मैकेनिक के तौर पर काम शुरू कर दिया। इस दौरान उन्होंने खाली वक्त में कविताएं लिखना जारी रखा। उनके फिल्मी करियर की शुरुआत 1956 में बिमल रॉय की ‘बंदिनी’ से हुई जिसमें उन्होंने गीत लिखे।

गुलजार साहब ने हिंदी फिल्मों के अनेक संगीतकारों के साथ काम किया है। फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ के गीत ‘जय हो’ के लिए उन्हें संगीतकार ए आर रहमान के साथ ऑस्कर जारी पुरस्कार प्रदान किया गया था।

गुलजार साहब छोटे पर्दे पर भी बेहतरीन काम के लिए जाने जाते हैं। उन्हें ‘मिर्जा गालिब’ और ‘तहरीर मुंशी प्रेमचंद की’ जैसे टीवी धारावाहिक बनाने का श्रेय जाता है। वह दूरदर्शन के भी अनेक धारावाहिकों के लिए गीत लिख चुके हैं, जिनमें ‘हैलो जिंदगी’, ‘पोटली बाबा की’ और ‘जंगल बुक’ शामिल हैं।

वर्ष 2002 में गुलजार को साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजा गया, तो 2004 में उन्हें पद्म भूषण सम्मान दिया गया। उन्होंने कई राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और 20 फिल्मफेयर सम्मान जीते हैं। साल 2010 में उन्होंने ‘जय हो’ गीत के लिए ग्रेमी सम्मान भी प्राप्त किया था।

गुलजार साहब की कविताओं के तीन संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें ‘चांद पुखराज का’, ‘रात पश्मीने की’ और ‘पंद्रह पांच पचहत्तर’ (15-05-75) हैं। उनकी लघुकथाएं ‘रावी-पार’ और ‘धुआं’ नाम से छप चुकी हैं।

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उन्होंने अभिनेत्री राखी से शादी की थी। दोनों की पुत्री मेघना गुलजार भी अपनी पहचान बना चुकी हैं। जब मेघना केवल एक साल की थीं तभी दोनों अलग हो गये लेकिन कभी एक दूसरे को तलाक नहीं दिया। मेघना को उनके पिता ने पाला पोसा और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से फिल्मों में स्नातक करने के बाद उन्होंने भी फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। वह 2004 में अपने पिता की जीवनी लिख चुकी हैं।