यह ख़बर 01 जुलाई, 2011 को प्रकाशित हुई थी

'डेल्ही बैली' : कहानी पर भारी हैं गालियां

खास बातें

  • यूथ ऑडियेंस को लुभाने की कोशिश में जब गालियां कहानी और कंटेंट पर हावी होने लगती हैं तो ये कानों को चुभती हैं।
Mumbai:

'डेल्ही बैली' तीन नौजवानों पर है जो दिल्ली के एक टूटे-फूटे मकान में किराए पर रहते हैं। ताशी यानी इमरान ख़ान पत्रकार हैं, नितिन फोटोजनर्लिस्ट और अरूप कार्टूनिस्ट। तीनों एक नंबर के आलसी हैं। इन सबकी जिंदगी तब नर्क बन जाती है जब ताशी की गर्लफ्रेंड सोनिया अनजाने में एक गैंगस्टर से कुछ हीरे ले लेती है और फिर हीरे गलत हाथों में पड़ते चले जाते हैं। आरामपसंद दोस्त पूरे वक्त भागते नज़र आते हैं। बड़ी साधारण-सी कहानी है। सबको पता था कि 'डेल्ही बैली' गालियों से भरी है। इसमें बोल्ड सीन्स और अश्लील डायलॉग्स हैं और टॉयलेट ह्यूमर क्रिएट करने की कोशिश भी की गई है लेकिन यूथ ऑडियेंस को लुभाने की कोशिश में जब गालियां कहानी और कंटेंट पर हावी होने लगती हैं तो ये कानों को चुभती हैं। 'डेल्ही बैली' के ज्यादातर किरदार पत्रकार हैं लेकिन क्या इन्हें नहीं पता कि बुर्के में जूलरी शॉप लूटते वक्त ये सीसीटीवी फुटेज में रिकॉर्ड हो जाएंगे। क्या ये डर उस महिला पत्रकार को भी नहीं जो बुर्के से चेहरा निकालकर लूटपाट कर रही है। इमरान ख़ान, वीर दास, कुणाल रॉय कपूर और विजय राज की अच्छी एक्टिंग। कुछ फनी सिचुएशन्स हंसाती हैं। फिल्म छोटी है तेज़ी से घूमती है और ये बोर नहीं करती। निर्माता आमिर ख़ान ने 'डेल्ही बैली' को युवाओं की फिल्म कहा है लेकिन ज़रूरी नहीं कि युवाओं की फिल्म में सारी गंदगी उड़ेल दी जाए। काश गालियों से ज्यादा ध्यान कहानी पर दिया जाता। 'डेल्ही बैली' देखते वक्त ना मुझे हंसी आई ना रोना आया। सपाट चेहरा लिए लौट आया। कोशिश कीजिए कि 'डेल्ही बैली' परिवार के साथ ना देखें। एक और सलाह तय कर लें कि आपके आसपास के सिनेमाहॉल में दिखाई जा रही 'डेल्ही बैली' अंग्रेज़ी में है या हिन्दी में वर्ना निराशा भी हाथ लग सकती है। 'डेल्ही बैली' के लिए मेरी रेटिंग है 2 स्टार।


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