फिल्म रिव्यू : गंभीर और संजीदा मुद्दे उठाती है 'एमएसजी'

मुंबई:

आज रिलीज़ हुई है, ढेरों विवादों से निकलकर रुपहले पर्दे तक पहुंची फिल्म 'एमएसजी : द मैसेंजर' इसका निर्माण किया है डेरा सच्चा सौदा के हकीकत एंटरटेनमेंट ने और मुख्य भूमिका निभाने सहित फिल्म के कई विभागों को संभाला है खुद बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह ने। यहां तक कि फिल्म के निर्देशन से भी जीतू अरोड़ा के अलावा खुद गुरमीत राम रहीम जुड़े रहे हैं।

फिल्म को लेकर सबसे बड़ा सवाल उठा था कि क्या बाबा राम रहीम फिल्म में खुद का प्रचार कर रहे हैं, तो जवाब है कि फिल्म, गुरमीत राम रहीम को ठीक उसी तरह दिखाती है, जैसे उनके अनुयायी उन्हें देखते हैं। हां, लेकिन उन लोगों को यह फिल्म ज़रूर बाबा राम रहीम और डेरा सच्चा सौदा का प्रचार लगेगी, जो उनके शिष्य नहीं हैं।

फिल्म में जिन सामाजिक बुराइयों को दिखाया गया है, वे वाकई मौजूदा हालात में कड़वी सच्चाई हैं। फिल्मकारों और फिल्म के जानकारों को हो सकता है फिल्म तकनीकी तौर पर और बाकी विभागों को देखते हुए मज़ाक लगे, लेकिन फिल्म में दिया गया संदेश संजीदा और ठोस है।

फिल्म काफी हद तक संत राम रहीम की जिंदगी बयां करती है। बाबा फिल्म में लोगों को ड्रग्स और शराब जैसी लत से दूर कर अपना अनुयायी बनाते हैं, जिसके कारण ड्रग और शराब माफिया बाबा के दुश्मन बन जाते हैं। तब बाबा राम रहीम अपनी चमत्कारी शक्तियों से खुद को और अपने शिष्यों को माफिया से बचाते हैं। फिल्म में बाबा राम रहीम के साथ फ्लोरा सईनी और जय श्री भी हैं।

फिल्म देखने से पहले मुझे फिल्म से कोई उम्मीद नहीं थी और न ही बाबा से अच्छे अभिनय की, लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि फिल्म के एक्शन और ड्रामा ने मुझे फिल्म से जोड़े रखा। अगर आप सन्नी देओल, अजय देवगन, रजनीकांत और सलमान खान के एक्शन को पचा सकते हैं तो संत राम रहीम का एक्शन क्यों नहीं। अजय जहां दो बाइक्स, दो कारों और दो घोड़ों पर खड़े होकर एक्शन कर सकते हैं, तो बाबा राम रहीम दो चलती बसों पर क्यों नहीं।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि बाबा अभिनय में कच्चे हैं, लेकिन उनका कनविक्शन, यानि अपने किरदार पर उनका दृढ़ विश्वास देखने लायक है। फिल्म के कुछ गाने पहले ही चर्चा बटोर चुके हैं और अगर भव्यता की बात करूं तो शायद ही बॉलीवुड की किसी फिल्म या गाने में असल में इतनी भीड़ नज़र आई हो, जितनी बाबा की फिल्म में मुझे दिखी। राम रहीम के अभिनय और डांस की कमज़ोरियों को फटाफट बदलते सीन से छिपाने की कोशिश की गई है, यानि गानों की एडिटिंग अच्छी है।

खामियों की बात करें तो स्पेशल इफेक्ट्स की क्वालिटी काफी खराब है। अभिनय के मामले में अभिनेता गौरव गेरा को छोड़कर सभी एक्टर जैसे फिल्म में शोर मचा रहे हैं। डेरा सच्चा सौदा की ओर से जिन समाजिक कामों को करने का दावा किया जाता रहा है, उन सबकी झलक फिल्म में दिखी। मसलन, रक्तदान, वेश्यावृत्ति से लड़कियों को बाहर निकालना, शराब, ड्रग, यहां तक कि ग्लोबल वॉर्मिंग के खिलाफ मुहिम।

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किस श्रेणी में फिल्म को रखा जाए, यह सोचना मेरे लिए मुश्किल काम था, लेकिन फिर लगा, जिन लोगों का विश्वास बाबा राम रहीम और उनके डेरा सच्चा सौदा पर है, वे इसका आनंद उठाएंगे। जो बाबा के अनुयायी नहीं हैं, वे फिल्म हंसते-हंसते देखेंगे। उन्हें यह फिल्म अनजाने में कॉमेडी की तरह हंसा सकती है। हां, लेकिन जिन सामाजिक मुद्दों की बाबा ने अपनी फिल्म में बात की है, वे मज़ाक में लेने वाले मुद्दे नहीं हैं, और उन पर समाज को गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है। मेरी ओर से फिल्म की रेटिंग है - 2.5 स्टार...