'लाल रंग' से इस फ़िल्म का मतलब है खून जो लाल होता है। फिल्म की कहानी ख़ून का गैरकानूनी धंधा करने वाले शंकर पर आधारित है जिसकी भूमिका रणदीप हुड्डा निभा रहे हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह ख़ून का गैरकानूनी धंधा चलता है और इसमें अस्पताल तक के कर्मचारी मिले हुए होते हैं। किस तरह ख़ून ब्लड बैंक में बदल जाता है, ब्लड डोनेशन कैंप से किस तरह चोरी होती है, किस तरह खून के पैकेट पर तारीख़ बदलकर उसे फ्रेश बताकर बेचा जाता है और किस तरह गरीबों को चंद रूपये देकर उनके खून चूस लिए जाते हैं।
रणदीप हुड्डा का बेहतरीन अभिनय
फ़िल्म का विषय अच्छा है और यह हरियाणा के करनाल शहर की कहानी है जिसमें शंकर की भूमिका में हरियाणा के ही रहने वाले रणदीप हुड्डा ने जान डाल दी है। फ़िल्म में पिया बाजपाई और अक्षय ओबेरॉय ने अपने किरदारों को ठीक से निभाया है। रणदीप की महबूबा का किरदार निभाने वाली मिनाक्षी दीक्षित के हिस्से कम सीन आए हैं लेकिन जितने भी दृश्य हैं वह जज़्बाती करने वाले हैं। फ़िल्म के निर्देशक सैयद अहमद अफज़ल ने इस गोरख धंधे को पर्दे पर अच्छे तरीके से पेश किया है।
इस गंभीर मुद्दे पर बनी फ़िल्म में मनोरंजन की भी कमी नहीं है। बहुत ही हल्के फुल्के अंदाज़ से बनाई गई फ़िल्म जिसमें कुछ किरदारों के नाम और संवाद कई जगह आपको हंसाएंगे। फिल्म की सबसे कमज़ोर कड़ी है इसका संगीत जो बेहद कमज़ोर है, फिल्म का क्लाइमेक्स भी थोड़ा फिल्मी हो गया। यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर कहां तक जायेगी उसके बारे में कुछ भी कहना सही नहीं होगा लेकिन यह कहा जा सकता है कि एक गंभीर विषय पर बनी फ़िल्म 'लाल रंग' आपको बोर नहीं होने देगी। इस फ़िल्म को एक बार जरूर देखें ताकि आप ऐसे गोरख धंधा करने वालों के बारे में जान सकें जिनका बेचा हुआ ख़ून कई बार इन्फेक्टेड भी हो सकता है, जो कई बड़ी बीमारियों को जन्म दे सकता है। इस फ़िल्म को मिलेत हैं - 2.5 स्टार