यह ख़बर 24 अक्टूबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

मशहूर गायक मन्ना डे नहीं रहे, बेंगलुरु में ली आखिरी सांस

बेंगलुरु:

प्रख्यात पार्श्व गायक मन्ना डे का लंबी बीमारी के बाद यहां शहर के एक अस्पताल में आज तड़के निधन हो गया। अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि 94 वर्षीय मन्ना डे को पांच माह पहले सांस संबंधी समस्याओं की वजह से नारायण हृदयालय में भर्ती कराया गया था। उन्होंने आज तड़के 3 : 50 मिनट पर अंतिम सांस ली।

उनके परिवार के सदस्यों ने बताया कि अंतिम समय में मन्ना डे के पास उनकी पुत्री शुमिता देव और उनके दामाद ज्ञानरंजन देव मौजूद थे। मन्ना डे की दो बेटियां हैं। एक बेटी अमेरिका में रहती है।

उनके दामाद ने बताया, उनके निधन से हम सब बेहद दुखी हैं। अंतिम समय में उन्हें कोई तकलीफ नहीं हुई। उनका अंतिम संस्कार आज दिन में किया जाएगा।
 
देव ने बताया कि मन्ना डे के पार्थिव शरीर को यहां स्थित रविन्द्र कलाक्षेत्र में रखा जाएगा ताकि लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे सकें। कोलकाता में वर्ष 1919 में जन्मे मन्ना डे ने मुंबई में 50 साल से अधिक समय बिताया था। प्रतिष्ठित दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित मन्ना डे पिछले कई वर्षों से बेंगलुरु में रह रहे थे। उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया है।

श्रोताओं को हिन्दी और बांग्ला सहित अनेक भाषाओं में 3,500 से अधिक गीतों की सौगात देने वाले मन्ना डे की आवाज कई पीढ़ियों की पसंदीदा रही। उन्होंने न केवल रागों पर आधारित गीत गाए बल्कि कव्वाली और तेज संगीत वाले गीतों को भी अपनी आवाज से सजाया।

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मन्ना डे के गाए कुछ गीतों... ‘‘पूछो न कैसे मैने..’’ (मेरी सूरत तेरी आंखें), ‘‘ऐ मेरी ज़ोहरा ज़बीं..’’ (वक़्त), ‘‘जि़ंदगी कैसी है पहेली..’’ (आनन्द), ‘‘ये दोस्ती..’’ (शोले), ‘‘इक चतुर नार..’’ (पड़ोसन) और ‘‘लागा चुनरी में दाग..’’ (दिल ही तो है) का जादू आज भी उनके चाहने वालों के सर चढ़ कर बोलता है।