फ़िल्म रिव्‍यू : आम आदमी की ज़िन्दगी की कहानी है 'दम लगाके हईशा'

मुंबई : फ़िल्म 'दम लगाके हईशा' की कहानी है हरिद्वार के एक लड़के प्रेम की जो अंग्रेजी की वजह से पढ़ाई में फ़ेल है। पिता की ऑडियो कैसेट की दूकान में गाने ट्रान्सफर करता रहता है इसलिए वो कुमार शानू का बड़ा फैन है। उसके माता-पिता एक टीचर की पढ़ाई पढ़ रही संध्या से उसकी शादी कर देते हैं ताकि बहु को टीचर की नौकरी मिलने के बाद घर के हालात सुधर जाएं लेकिन लड़की मोटी है इसलिए प्रेम अपनी पत्नी से प्यार नहीं करता।

फ़िल्म 'दम लगाके हईशा' बहुत ही सुंदरता और ईमादारी से बनाई गई है। एक मोटी लड़की को पति का प्यार हासिल करने की जद्दोजेहद, एक युवा लड़के को मोटी पत्नी के साथ दोस्तों के बीच या बाजार में साथ लेकर चलने की कशमकश, एक परिवार को जोड़े रखने की कोशिश को बहुत ही अच्छे से परदे पर पेश किया गया है।

फ़िल्म देखते समय एक छोटा शहर, वहां की भाषा, वहां की उलझनें, वहां की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी परदे पर एक दम रियल लगती है। प्रेम के किरदार को आयुष्मान ने अच्छे से निभाया है। प्रेम के पिता की भूमिका में संजय शर्मा ने जान डाली है मगर मुझे चौंका दिया मोटी लड़की संध्या का किरदार निभाने वाली भूमि पेडणेकर ने क्योंकि भूमि न सिर्फ अच्छी लगी हैं इस किरदार में बल्कि उन्होंने इसमें जान डाली है।

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फ़िल्म का दूसरा भाग थोड़ा हल्का है मगर इस फ़िल्म में सच्चाई लगती है। कहानी को बहुत ही हल्‍के-फुल्के अंदाज़ में पेश किया गया है जो आपको मनोरंजन देता है। आम आदमी की ज़िन्दगी की कहानी है जिससे आम आदमी अपने आपको जोड़ सकता है। इसलिए इस फ़िल्म के लिए मेरी रेटिंग है 3.5 स्टार।