फिल्म रिव्यू : सिर्फ फिल्म या कहानी नहीं, सच्चाई है 'सरबजीत'

फिल्म रिव्यू : सिर्फ फिल्म या कहानी नहीं, सच्चाई है 'सरबजीत'

मुंबई:

इस सप्ताह रिलीज़ हुई है 'सरबजीत', जो पंजाब के उसी सरबजीत की कहानी है, जिन पर पाकिस्तान ने आतंकवादी और भारतीय जासूस होने का आरोप लगाया था और जो काफी वक्त तक सुर्खियों में रहे... फिल्म को लिखा है उत्कर्षिनी वशिष्ठ और राजेश बेरी ने और इसका निर्देशन किया है उमंग कुमार ने, जो इससे पहले 'मैरी कॉम' का निर्देशन कर चुके है...

इस फिल्म में सरबजीत के किरदार में हैं रणदीप हुड्डा, उनकी बहन दलबीर कौर की भूमिका में दिखी हैं ऐश्वर्या राय, और उनकी पत्नी का किरदार निभाया है ऋचा चड्ढा ने... इनके अलावा सरबजीत के पाकिस्तानी वकील के किरदार अदा किया है दर्शन कुमार ने...

फिल्म की कहानी सरबजीत के खुशहाल परिवार के साथ शुरू होती है और फिर एक दिन वह शराब के नशे में बॉर्डर पार करके पाकिस्तान पहुंच जाता है, जहां उसे भारतीय जासूस और आतंकवादी कहकर गिरफ्तार कर लिया जाता है, और 13 साल तक पाकिस्तानी जेल में यातनाएं सहने के बाद एक हमले के चलते वह पाकिस्तान में ही दम तोड़ देता है।

तो यह थी फिल्म की कहानी, लेकिन इसकी ख़ामियां और खूबियां बताने से पहले मैं अपने कुछ और विचार रखना चाहंगा... इस तरह की फिल्मों के लेखक और निर्देशक के लिए बड़ी चुनौती यह होती है कि वे फिल्म का क्या सुर या ट्रीटमेंट रखें, फिल्म को वास्तविक बनाएं, खालिस बॉलीवुड फिल्म बनाएं या फिल्म का सुर इन दोनों के बीच का रखें और यही फैसला तय करता है कि फिल्म का ऊंट किस करवट बैठेगा या फिल्म बॉक्स ऑफिस के कांटे के किस ओर गिरेगी।

इसके अलावा एक और ज़रूरी बात... 'सरबजीत' जैसी फिल्मों के लिए एक मुश्किल और होती है कि निर्देशक फिल्म को किसके नज़रिये से आगे लेकर जाए - मसलन, सरबजीत के नज़रिये से, दलबीर कौर के नज़रिये से, या हमारे नज़रिये से, जो बाहर बैठकर अख़बार और टेलीविज़न के ज़रिये अपनी समझ के मुताबिक अपनी कहानी बुनते हैं...

और मेरे हिसाब से यही है इस फिल्म की सबसे बड़ी ख़ामी, और निर्देशक उमंग कुमार से यही फैसला लेने में कुछ चूक हुई... उनके पास कहने को बहुत कुछ था, लेकिन उसे कैसे, कितना और किसके नज़रिये से फैलाना है, उस पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत थी, जिसके न दिए जाने की वजह से स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले में हिचकोले महसूस हुए...

दूसरी बात, हिन्दी सिनेमा अब 2016 में है '80 या '90 के दशक में नहीं... उमंग कुमार को यह याद रखते हुए फिल्म का ट्रीटमेंट थोड़ा आज के वक्त के हिसाब से रखना चाहिए था... फिल्म की कहानी अपने बहाव के साथ आगे बढ़ रही है, जहां दर्शक सरबजीत के दुख को महसूस कर रहा है, लेकिन तभी आप फ्लैशबैक में चले जाते हैं, जहां एक रोमांटिक सीन और गाना है... यह बहुत अटपटा लगता है... हालांकि रचनात्मकता का कोई व्याकरण नहीं होता, लेकिन उसमें कोई दबाव भी महसूस नहीं करना चाहिए... खैर, यही थीं फिल्म की ख़ामियां...

अब बात करते हैं फिल्म की खूबियों की... पहली बात यह है कि सरबजीत की कहानी अपने आप में मार्मिक है, जहां एक परिवार और सरबजीत का मर्म है, एक बहन का प्यार और भाई के लिए संघर्ष है, दो देशों की एक दूसरे के प्रति सोच है और वहां के कुछ लोगों में इंसानियत है, तो कुछ में नफरत... एक बेहतरीन फिल्म की कहानी के सारे पहलू इसमें है... फिल्म में दलबीर कौर की हिम्मत की छवि ऐश्वर्या राय बड़ी खूबसूरती के साथ पर्दे पर उतारती हैं, वहीं रणदीप हुड्डा पाकिस्तानी जेल में यातना सह रहे और अपने परिवार के लिए तड़पते कैदी के रूप में दर्शकों पर छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं... यह बात अलग है कि उसमें उनकी मदद बेहतरीन गेटअप ने भी की है... ऋचा अपने किरदार के साथ न्याय करती हैं...

फिल्म के कुछ डायलॉग आप को 'वाह' कहने पर मजबूर करेंगे, लेकिन कुछ सीन्स में आप नज़रें बचाकर आंखें साफ करने का बहाना करते भी नज़र आएंगे, ताकि कोई आपकी आंखों का पानी न देख सके... ऐश्वर्या और रणदीप आपकी भावनाओं को झकझोर जाते हैं... 'सरबजीत' सिर्फ फिल्म या कहानी नहीं, सच्चाई है, इसलिए इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है - 3.5 स्टार...


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