यह ख़बर 05 अप्रैल, 2013 को प्रकाशित हुई थी

विवादों में घिरी फिल्म 'साड्डा हक' पर बैन

खास बातें

  • खालिस्तान आंदोलन के दौरान कथित तौर पर वास्तविक जीवन की घटनाओं पर आधारित पंजाबी फिल्म 'साड्डा हक' पर पंजाब सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है। शाम को दिल्ली सरकार ने भी एक फैसला लेते हुए इस फिल्म पर बैन लगा दिया।
चंडीगढ़:

खालिस्तान आंदोलन के दौरान कथित तौर पर वास्तविक जीवन की घटनाओं पर आधारित पंजाबी फिल्म 'साड्डा हक' (हमारा अधिकार) पर गुरुवार रात पंजाब सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। यह फिल्म शुक्रवार को राज्य के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली थी। दिल्ली सरकार ने भी शुक्रवार की शाम एक फैसला लेते हुए इस फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया।

एक सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए अगले आदेश तक फिल्म पर प्रतिबंध जारी रहेगा।

अभिनेता-निर्माता कुलजिंदर सिद्धू के मुताबिक, यह फिल्म पंजाब में आतंकवाद के दौर पर आधारित है, जिसमें यह दिखाने की कोशिश की गई है कि राज्य के युवा किस तरह आतंकवाद के रास्ते पर बढ़े। फिल्म का मुख्य किरदार हॉकी खिलाड़ी के बारे में है, जो आतंकवादी बन गया। इसे सिद्धू ने निभाया है।

'साड्डा हक' के प्रचार के लिए यू-ट्यूब पर जारी हुआ वीडियो गंभीर विवादों में आ गया था। इस वीडियो में सिखों के 10वें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी और शहीद भगत सिंह के साथ आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले और बलवंत सिंह राजोआना को दिखाया गया है। इस गीत 'बागी' में विद्रोहियों को महिमामंडित किया गया है, वहीं इस फिल्म के निर्माताओं ने दलील दी कि गाना सिर्फ विद्रोहियों के बारे में बात करता है, लेकिन उनकी एक-दूसरे से तुलना नहीं करता, और न ही उन्हें एक-दूसरे से जोड़ता है।

फिल्म के निर्माता कुलजिंदर सिद्धू ने कहा था, गुरु गोविंद सिंह जी अपने समय में विद्रोही थे, लेकिन अगर हम आज के समय की बात करें तो राजोआना भी विद्रोही है। यह जैजी बी का गाया हुआ गाना है, जो फिल्म को प्रमोट करने के लिए तैयार किया गया है और हम जैजी बी से सहमत हैं। हमारा कहना है कि सिख समुदाय में गुरुओं के वक्त से लेकर आज तक विद्रोही हुए हैं। जब भी उन्हें लगता है, व्यवस्था में कुछ खामी है, वे व्यवस्था के विरुद्ध चले जाते हैं और इसीलिए विद्रोही कहलाते हैं।

गौरतलब है कि बलवंत सिंह राजोआना 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के आरोप में फांसी की सजा पा चुका है। फिलहाल वह पटियाला की जेल में है। जरनैल सिंह भिंडरावाले विद्रोही नेता था, जो 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में अपने हथियारबंद समर्थकों के साथ छिप गया था और भारतीय सेना से तब तक लड़ता रहा, जब तक मारा नहीं गया। यह फिल्म पहले भी सेंसर बोर्ड में अटकी थी, जिसे एसजीपीसी के अनुरोध के बाद पास किया गया था।

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(इनपुट भाषा से भी)