यह ख़बर 06 जनवरी, 2011 को प्रकाशित हुई थी

'नो वन...' : अच्छी... पर बेहतरीन नहीं

खास बातें

  • फिल्म नो वन किल्ड जेसिका….जेसिका लाल हत्याकांड पर है….एक सच्ची घटना...
मुंबई:

फिल्म नो वन किल्ड जेसिका….जेसिका लाल हत्याकांड पर है….एक सच्ची घटना। लिहाजा किरदार भी वैसे ही जो जेसिका लाल केस में दिखे। 1999 में दिल्ली के एक रेस्टोरेंट में मनु शर्मा के हाथों मारी गई मॉडल जेसिका की बहन का नाम सबरीना ही है। मगर तत्कालीन केबिनेट मिनिस्टर विनोद शर्मा के बेटे मनु का नाम मनीष किया गया। मनु का केस लड़ने वाले राम जेठमलानी से मिलते-जुलते वकील का नाम…श्याम तोलानी। श्यान मुंशी की तरह गवाही से पलटने वाले छुटभैये एक्टर…और रेस्टोरेंट की मालकिन बीना रमानी जैसे कैरेक्टर भी हैं यहां। निचली अदालत में बच निकला हत्यारा… हाईकोर्ट की सुनवाई के बाद पहुंचा सलाखों के पीछे। फिल्म बताती है कि कैसे पुलिस फोरेंसिक एक्सपर्ट्स और गवाहों को खरीदकर ताकतवर लोग कमज़ोरों को न्याय के लिए तरसा देते हैं। लेकिन छोटी-बड़ी खबर का लालच छोड़कर मीडिया जनता को साथ ले तो अन्याय का रावण ध्वस्त किया जा सकता है।  इंटरवल तक फिल्म विद्या बालन की है। न्याय के लिए दर-दर ठोकर खाती सबरीना की जिद गुस्से और हताशा को विद्या ने खूब निभाया। लेकिन रानी मुखर्जी के किरदार में गड़बड़ी है। ये पत्रकार चाहे जब गाली देती है….जहां ज़रूरत नहीं है वहां भी। इंटरवेल के बाद फिल्म तेजी से़ घूमती है और लाउड होते हुए भी रानी की बोल्डनेस और कॉन्फिडेंस जोश जगाते हैं। दिल्ली के मिजाज़ से मैच करता अमित त्रिवेदी का अच्छा म्यूज़िक। पहले आमिर जैसी फिल्म बना चुके डायरेक्टर राजकुमार गुप्ता ने इस बार ऐसा सब्जेक्ट चुना जिसे देश का बच्चा-बच्चा जानता है। लिहाजा कहानी दर्शकों के लिए नई नहीं है। लेकिन अखरने वाली बात ये है कि फिल्म देखते वक्त…जेसिका पर हुआ अन्याय गुस्सा नहीं दिलाता ना ही उससे सहानुभूति जुड़ती है। इससे ज्यादा ड्रामा तो रीयल लाईफ में हुआ था। बावजूद इसके फिल्म सिलसिलेवार ढंग से…बड़ी गंभीरता से….जेसिका लाल मामले को पेश करती है। नो वन किल्ड जेसिका के लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार।


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