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खास बातें
- बॉलीवुड के 'पहले सुपरस्टार' राजेश खन्ना का जन्म 29 दिसंबर, 1942 को अमृतसर में हुआ था और उनका असली नाम जतिन खन्ना था। उन्होंने 1966 में फिल्म 'आखिरी खत' से अपने करियर की शुरुआत की थी।
मुंबई: सुपरस्टार राजेश खन्ना का लंबी बीमारी के बाद मुंबई स्थित उनके आवास पर निधन हो गया है। उनके निधन की खबर आते ही उनके घर के बाहर फैन्स का जमावड़ा लगना शुरू हो गया, जिसकी वजह से उनके बंगले की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। उनका अंतिम संस्कार कल किया जाएगा।
70 के दशक के सुपरस्टार पिछले कुछ महीनों से बीमार चल रहे थे और दो दिन पहले ही वह अस्पताल में रहकर घर लौटे थे। उन्हें कमजोरी के कारण अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। उनसे अलग रह रही उनकी पत्नी डिंपल कपाड़िया सहित पूरा परिवार उनके साथ था। इससे पहले 20 जून को खबर आई थी कि खन्ना ने भोजन करना बंद कर दिया जिसके बाद उनकी हालत खराब होती चली गई।
स्कूली जीवन से ही स्टेज और अभिनय के शौकीन रहे राजेश खन्ना का जन्म अविभाजित भारत में पंजाब राज्य के अमृतसर में वर्ष 1942 की 29 दिसंबर को हुआ था, और उनका असली नाम जतिन खन्ना था। उन्होंने वर्ष 1966 में 'आखिरी खत' नामक फिल्म से अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत की थी, और इसके बाद 'राज', 'बहारों के सपने', 'औरत के रूप' जैसी कई फिल्में उन्होंने कीं, लेकिन उन्हें असली कामयाबी वर्ष 1969 में आई 'आराधना' से मिली, जिसके बाद वह सचमुच सुपरस्टार हो गए, और एक के बाद एक 14 सुपरहिट फिल्में दीं।
वर्ष 1971 में भी राजेश ने 'कटी पतंग', 'आनन्द', 'आन मिलो सजना', 'महबूब की मेहंदी', 'हाथी मेरे साथी', 'अंदाज' आदि फिल्मों से कामयाबी का परचम लहराए रखा, और इसके बाद के वक्त में भी उनकी 'दो रास्ते', 'दुश्मन', 'बावर्ची', 'मेरे जीवनसाथी', 'जोरू का गुलाम', 'अनुराग', 'दाग', 'नमकहराम', और 'हमशक्ल' फिल्में बेहद कामयाब रहीं। इसी दौर में राजेश को तीन बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला, जबकि वह कुल 14 बार इस श्रेणी में नामांकन पाने में कामयाब रहे थे। उन्हें पहली बार वर्ष 1971 में उन्हें फिल्म 'सच्चा झूठा' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। दूसरी बार वर्ष 1972 में आनन्द के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता चुना गया, जबकि तीसरी बार वर्ष 1975 में फिल्म आविष्कार के लिए वह पुरस्कृत हुए।
वर्ष 1980 के बाद राजेश खन्ना का दौर खत्म होने लगा, और आखिरकार वह भी अपने कई समकालीन साथियों की तरह राजनीति में उतर आए और वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली सीट से कांग्रेस की टिकट पर सांसद चुने गए। वर्ष 1994 में उन्होंने एक बार फिर फिल्म 'खुदाई' से पर्दे पर वापसी की कोशिश की, और 'आ अब लौट चलें', 'क्या दिल ने कहा', 'जाना', और 'वफा' जैसी फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।