रिव्यू : 'इश्क़ के परिंदे' अच्छी कहानी, जुड़ाव की कमी


मुंबई : फ़िल्म 'इश्क़ के परिंदे' की कहानी है फैज़ और शीन की। शीन पाकिस्तान के कराची शहर से आई है, भारत के लखनऊ शहर में अपने मामा के पास। और लखनऊ में ही फैज़ और शीन के बीच इश्क़ शुरू हो जाता है।

फ़िल्म 'इश्क़ के परिन्दे' एक म्यूजिकल लव स्टोरी है। लखनऊ के मुस्लिम परिवार के बैकड्रॉप में कहानी रचती-बस्ती है। एक मासूम सी प्रेम कहानी है, जिसमें इश्क़, रोमांस, कशिश, मिलना और बिछड़ना सब कुछ है।

फ़िल्म के निर्देशक शाकिर खान ने इसे सुंदरता से शूट किया है। लखनऊ को परदे पर सफाई से उतारा है। कैमरा वर्क अच्छा है और फ़िल्म देखते समय एहसास होता रहता है कि हम लखनऊ के मुस्लिम परिवार की कहानी देख रहे हैं। फ़िल्म का संगीत बहुत अच्छा तो नहीं कह सकते, लेकिन गाने कहानी को आगे बढ़ाते हैं। फैज़ की भूमिका को ऋषि वर्मा ने और शीन के किरदार को प्रियंका मेहता ने ठीक-ठाक तरीके से निभाया है।

फ़िल्म का पहला हिस्सा अच्छा है मगर दूसरे भाग में ड्रामेबाज़ी थोड़ी ज़्यादा डाल दी गई, जो थोड़ी अटपटी लगती है। ख़ासतौर से क्लाइमेक्स कुछ ज़्यादा ही लंबा हो गया। फ़िल्म में मुझे एक और कमी खली और वो थी इमोशन की कमी। हालांकि इमोशनल सीन हैं फ़िल्म में, मगर वो सीन ठीक से उभर नहीं पाए या फिर यूं कहें की ठीक से कनेक्ट नहीं कर पाए और लव स्टोरी में जज़्बातों का जुड़ाव बेहद ज़रूरी है।

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हां इश्क़ में महबूबा की गलियों के चक्कर और छत से दीदार को तरसती आंखें मज़ेदार हैं। इस फिल्म को मेरी ओर से तीन स्टार।