यह ख़बर 12 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

'बदलापुर बॉयज' : मंजिल को छूने का जुनून

मुंबई:

फिल्म 'बदलापुर बॉयज' की कहानी उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव बदलापुर की है, जहां सूखे की वजह से किसानों का हाल बेहाल है।

ऐसे में एक किसान वहां नहर बनवाने के वास्ते अपनी आवाज मुख्यमंत्री तक पहुंचाने के लिए आत्मदाह कर लेता है। बदले में उसे पागल कहा जाता है। लेकिन उसका बेटा हार नहीं मानता और कबड्डी के माध्यम से अपनी आवाज मुख्यमंत्री तक पहुंचाता है।

फिल्म 'बदलापुर बॉयज' का विषय दिल को छूने वाला है। इसमें दर्शाया गया है कि किस तरह देश का गरीब किसान अपनी आवाज भी अपनी सरकार और नेताओं तक नहीं पहुंचा पाता। इस कारण वे अपने ऊपर ही जुल्म कर डालते हैं और आत्महत्या की तरफ कदम बढ़ा लेते हैं।

इस फिल्म के पोस्टर या प्रोमो को देखकर एहसास होता है कि यह कबड्डी पर आधारित फिल्म है, मगर ऐसा नहीं है। यह फिल्म सिर्फ कबड्डी को नहीं दिखाती, बल्कि कबड्डी के परिवेश में एक गरीब किसान के बेटे की जद्दोजहद और उसकी कोशिशों का ताना-बाना बुना गया है।

फिल्म में ज्यादातर चेहरे नए हैं, मगर उनका अभिनय अपने-अपने किरदार में सूट करता है। कबड्डी के कोच के रोल में अन्नू कपूर जमे हैं। फिल्म में कुछ कमियां भी हैं। ड्रामेबाजी है, और बिना मतलब के गाने भी, जो कहीं ना कहीं इसके विषय को भटकाते नजर आते हैं।

'बदलापुर बॉयज' में विषय ईमानदार है, मगर फिल्म उतनी मजबूत नहीं बन पाई। फिर भी यह दिल को छूती है, क्योंकि इसमें गांव का प्यार, गांव में लगने वाले मेले, कबड्डी की लड़ाई, जलन और सबसे खास बात अपनी मंजिल को छूने का जुनून नजर आता है।

फिल्म की पटकथा भले ही कमजोर हो, मगर फिल्म में एक डायलॉग है, "किया गया प्रयास बड़ा है या छोटा... सफल है या असफल...यह लिए गए संकल्प और दृढ निश्चय से ही तय होता है।

मैं भी कह सकता हूं कि निर्देशक शैलेश वर्मा का इस विषय पर फिल्म बनाने का संकल्प ही बड़ा है। इसलिए मेरी तरफ से इस फिल्म को 2.5 स्टार्स...

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