यह ख़बर 19 सितंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

चेहरे पर मुस्कान लाने में कामयाब रही 'खूबसूरत'

मुंबई:

इस फिल्मी फ्राइडे रिलीज हुई है ऋषिकेश मुखर्जी की 1980 में आई 'खूबसूरत' की रीमेक, जिसमें रेखा की भूमिका में नजर आई हैं सोनम कपूर।

सोनम के अलावा फिल्म में पाकिस्तानी एक्टर फवाद खान, रत्ना पाठक शाह, किरण खेर और आमिर रजा हुसैन अहम भूमिका में हैं। सोनम की 'खूबसूरत' की कहानी रेखा की खूबसूरत से थोड़ी अलग है। फिल्म में सोनम डॉक्टर मिली चक्रवर्ती के किरदार में हैं, जो एक फिजियोथिरेपिस्ट बनी हैं और बड़े-बड़े क्रिकेटरों का इलाज करती हैं, पर फिर उन्हें राजस्थान के एक राजा शेखर यानी आमिर रज़ा हुसैन का इलाज करने के लिए उनके महल बुलाया जाता है।

इस महल के कायदे कानून थोड़े सख्त हैं। वहीं राजा साहब को अपना इलाज कराने में कोई दिलचस्पी नहीं है। राजा साहब की पत्नी यानी रानी निर्मला देवी के किरदार में हैं रत्ना पाठक शाह, जो बहुत सख्त मिजाज की हैं।

फिल्म में उनके बेटे बने हैं, विक्रांत यानी फवाद खान। इनके महल में जब बिंदास डॉक्टर मिली चक्रवर्ती पहुंचती है तो लगता है जैसे पूरब और पश्चिम का आमना-सामना हो गया हो। अब आगे मिली का क्या होगा, कैसे वह महल के सख्त कायदे कानून से जूझती है, यह तो आपको फिल्म देखकर ही पता चलेगा।

अब बात फिल्म की खामियों और खूबियों की। 'खूबसूरत' एक लाइट−हार्टेड फिल्म है। फिल्म के कई सीन्स आपके चेहरे पर मुस्कुराहट लाएंगे। खासतौर पर वे सीन्स, जो सोनम और किरण खेर के बीच फिल्माए गए हैं। सोनम फिल्म में एनर्जी से भरपूर हैं। अपने चुलबुले किरदार को उन्होंने बहुत अच्छे ढंग से निभाया है, मगर इस किरदार की तुलना रेखा के किरदार से करना ठीक नहीं होगा।

वहीं फवाद खान एक सहज अभिनेता हैं। पर्दे पर उन्होंने ईमानदारी से काम किया है। वहीं किरण खेर इस फिल्म में एक पंजाबी मां की भूमिका में हैं। अभिनय शानदार है, पर वही सवाल कब तक इसी किरदार में दिखती रहेंगी किरण।

संगीतकार स्नेहा खनवलकर के गाने फिल्म के नाम की तरह ही खूबसूरत हैं। खास बात यह रही कि फिल्म के डायरेक्टर शशांक घोष ने गानों को फिल्म की रफ्तार के आड़े नहीं आने दिया।

खामियों की अगर बात करें तो कहानी में कुछ और एलिमेंट्स यानी तत्व के साथ कुछ नए मोड़ होने चाहिए थे। 1980 की 'खूबसूरत' की रीमेक बताकर 'खूबसूरत' को रिलीज करना शायद एक गलत फैसला था, क्योंकि इस ऐलान के बाद तुलना करना तो लाज़मी है और तुलना करते ही फिल्म कमजोर दिखने लगती है।

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मुझे लगता है कि फिल्म के लेखन में थोड़ी और मेहनत की जरूरत थी, पर 'खूबसूरत' निर्देशक शशांक घोष की एक ठीक-ठाक कोशिश रही। मेरी ओर से फिल्म को तीन स्टार।