यह ख़बर 04 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हुई थी

'ओ साथी रे... तेरे बिना भी क्या जीना...'

किशोर कुमार को श्रद्धांजलि देता गूगल डूडल

विशेष नोट : अपने पसंदीदा पार्श्वगायक किशोर कुमार की याद में यह आलेख दरअसल सालों पहले लिखा था, और आज गूगल द्वारा उन्हें याद किए जाने पर मुझे भी लगा कि इसे फिर आप लोगों के सामने ले आना चाहिए... दुनिया में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले सर्च इंजन गूगल ने भी आज अपना गूगल डूडल गायक, संगीत निर्देशक, गीतकार, अभिनेता, निर्माता-निर्देशक किशोर कुमार की याद में समर्पित किया है। इस गूगल डूडल में अक्षर 'एल' के स्थान पर किशोर कुमार की तस्वीर लगाई है, और चार कोनों में छोटे-छोटे प्रतीक चित्र लगाकर उनके अभिनेता, फिल्मकार, लेखक तथा संगीतकार-गायक रूप को याद किया है...

वैसे, इस आलेख के लिए बहुत-से शीर्षक दिमाग में घुमड़ रहे थे, परंतु अंततः सिर्फ उनके गाए एक गीत की पहली पंक्ति लिखकर छोड़ देने से बेहतर कुछ नहीं लगा... अब तक सोचे शीर्षकों में से मेरे पसंदीदा आपके लिए प्रस्तुत हैं - 'आए तुम याद मुझे, गाने लगी हर धड़कन...', 'चलते-चलते, मेरे ये गीत याद रखना...', 'ओ साथी रे... तेरे बिना भी क्या जीना...' खैर, अब पढ़ते हैं - अपने चहेते गायक के बारे में...

आज किशोर कुमार होते तो 85 साल के हो गए होते... गायक, संगीत निर्देशक, गीतकार, अभिनेता, निर्माता-निर्देशक किशोर कुमार अब हमारे बीच नहीं हैं, और लगता है कि उनके जाने से बन गया खालीपन आने वाले कई सालों तक भरा नहीं जा सकेगा...

किसी भी फिल्म के निर्माण में सभी विधाओं का महत्व होता है, लेकिन बॉलीवुड फिल्मों के संगीत पक्ष की महत्ता हमेशा से बहुत अधिक रही है, सो, फिल्म निर्माण के हर पहलू से जुड़े रहे होने के बावजूद किशोर ख़ुद को गायक कहलाना ही पसंद करते थे... हालांकि किशोर के समय में मोहम्मद रफी और मुकेश जैसे नाम भी मौजूद थे, लेकिन भारतीय फिल्म संगीत में उनाका नाम अलग ही चमकता रहा...

मध्य प्रदेश के छोटे-से कस्बे खंडवा में 4 अगस्त, 1929 को प्रसिद्ध बैरिस्टर कुंजबिहारी लाल गांगुली के घर में आभास कुमार गांगुली के रूप में जन्मे किशोर बचपन से ही संगीत प्रेमी थे... किशोरावस्था में ही किशोर अपने बड़े भाई कुमुद कुमार गांगुली के पास मुंबई चले आए, जो उस वक्त बॉम्बे टॉकीज़ में लैब एसिस्टेंट के तौर पर तो काम कर ही रहे थे, अशोक कुमार के नाम से ख़ुद को अभिनेता के रूप में भी स्थापित कर चुके थे...

भाई की मदद से जल्द ही किशोर का परिचय कई फिल्मी हस्तियों से हो गया, लेकिन वह निर्देशक शाहिद लतीफ़ थे, जिन्होंने पहली बार किशोर की योग्यता को पहचाना और अपनी फिल्म 'ज़िद्दी' में खेमचंद्र प्रकाश के संगीत निर्देशन में गाने का मौका दिया... कुंदनलाल सहगल के अंदाज़ में गाया गया और देव आनंद पर फिल्माया गया यह गीत 'मरने की दुआएं क्यों मांगूं...' 1948 में शूट किया गया, और ज़ोरदार हिट रहा... इसके बाद देव आनंद के लगभग सभी गीतों में आवाज़ किशोर की ही रही...

अभिनेता बनने का किशोर का असली सपना वर्ष 1951 में पूरा हुआ, जब उन्हें फिल्म 'मुक़द्दर' में एक छोटी-सी भूमिका मिली, लेकिन उन्होंने उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाबी हासिल की... 'छम-छमा-छम' में पहली बार उन्हें नायक की भूमिका मिली, और उसके बाद लगातार वह काम करते गए... उनकी पसंद की गई कुछ फिल्मों में 'आशा', 'बाप रे बाप', 'भाई भाई', 'नई दिल्ली', 'मेमसाब', 'नौकरी', 'हाफ टिकट', 'रंगोली', 'मिस्टर एक्स इन बॉम्बे', 'गंगा की लहरें', 'चाचा जिंदाबाद', 'चलती का नाम गाड़ी', 'झुमरू', 'प्यार किए जा', 'पड़ोसन', 'इल्ज़ाम', 'शरारत', 'नया अंदाज़', 'साधु और शैतान' और 'दिल्ली का ठग' शामिल हैं...

किशोर न सिर्फ़ पर्दे पर बहुत-सी अभिनेत्रियों के नायक बने, बल्कि वह असली जिंदगी में भी चार नायिकाओं के नायक रहे... उनका पहला विवाह रूमा देवी से हुआ, जिनसे उन्हें अमित कुमार के रूप में बड़ा बेटा मिला... कुछ विवादों के बाद दोनों के बीच तलाक हो गया, और उसके बाद किशोर ने आज तक की सबसे खूबसूरत अभिनेत्री कही जाने वाली अभिनेत्री मधुबाला से ब्याह रचाया... यह विवाह भी ज़्यादा नहीं चला, और मधुबाला भगवान को प्यारी हो गई... उसके बाद किशोर ने एक और अभिनेत्री योगिता बाली से शादी की, लेकिन जल्द ही उनमें भी अलगाव हो गया... आख़िर में किशोर ने लीना चंद्रावरकर से शादी की, जिनसे उन्हें छोटा बेटा सुमित कुमार मिला... लेकिन विडम्बना यह रही कि जब सुमित चार साल का था, 13 अक्टूबर, 1987 को किशोर को दिल का दौरा पड़ा, जो घातक साबित हुआ... और वह भी उस दिन, जब बड़े भाई अशोक कुमार अपना जन्मदिन मना रहे थे...

इस हरफनमौला कलाकार ने हमारे फिल्मोद्योग को बहुत कुछ दिया है... न सिर्फ़ अपनी शीरीं आवाज़ से, बल्कि किशोर ने कई फिल्मों का निर्माण-निर्देशन भी किया, अभिनेता वह थे ही, संगीत निर्देशक भी रहे और गीतकार भी... उनकी बनाई फिल्में व्यावसायिक रूप से सफल रही हों या नहीं, संगीत को हमेशा पसंद किया गया... उनके निर्माण-निर्देशन में बनी कुछ फिल्में हैं - 'दूर का राही', 'दूर गगन कि छांव में', 'झुमरू', 'चलती का नाम गाड़ी', 'बढ़ती का नाम दाढ़ी', 'दूर वादियों में कहीं', 'लुकु चोरी' (बांग्ला)... जिस समय उनका देहावसान हुआ, वह 'ममता की छांव में' बनाने में व्यस्त थे...

किशोर हमेशा दिल से गाने वाले गायक के रूप में मशहूर रहे हैं... अपनी फिल्म 'झुमरू' में उन्होंने भारतीय श्रोताओं को यॉडलिंग से परिचित कराया, और आज भी उनके अंदाज़ में लय और ताल के साथ तालमेल बिठाते हुए कोई गायक उतनी प्रवीणता के साथ यॉडलिंग का इस्तेमाल नहीं कर पाया... यॉडलिंग के साथ गाए उनके गीतों में 'ज़िंदगी एक सफर...' (अंदाज़), 'मैं हूं झुमरू...' (झुमरू) और 'मैं सितारों का तराना...' (चलती का नाम गाड़ी) आदि काफी मशहूर हुए...

इस तरह के गीतों के चलते किशोर को 'मस्त' गायक ही माना जाने लगा था, लेकिन उसी दौर में राहुल देव बर्मन (पंचम डा) ने अपनी फिल्म 'अमर प्रेम' में 'चिंगारी...' गाने का मौका दिया, और किशोर ने साबित करके दिखाया कि वह न सिर्फ़ मस्ती-भरे गाने गा सकते हैं, इसी आवाज़ से दर्द भरे गीतों में इतना दर्द भर सकते हैं कि आंसू छलक आएं... अब किशोर ने दर्द-भरे गीतों में भी लोकप्रियता हासिल की और 'ज़िंदगी का सफर...' (सफर), 'दिल ऐसा...' (अमानुष), 'ज़िंदगी के सफर में...' (आप की कसम), 'जब दर्द नहीं था...' (अनुरोध), 'बड़ी सूनी-सूनी...' (मिली), 'ओ साथी रे...' (मुक़द्दर का सिकंदर), 'मेरे नैना...' (महबूबा) उनके गाए कुछ ऐसे गीत हैं, जो कभी पुराने नहीं हो पाएंगे...

किशोर की आवाज़ की एक विशेषता यह भी थी, कि उसमें उम्र कभी नहीं झलकती थी... वह अंत तक 'आज की आवाज़' बने रहे... यह बात इस तथ्य से भी सिद्ध हो जाती है कि उन्होंने बाप-बेटे की कई जोड़ियों को आवाज़ दी... जब सुनील दत्त नायक थे, किशोर उनके लिए गाते थे, और जब संजय दत्त नायक बना, उनके लिए भी किशोर को ही चुना गया... धर्मेन्द्र-सन्नी देओल, शशि कपूर-कुणाल कपूर, देव आनंद-सुनील आनंद आदि कुछ और ऐसे उदाहरण हैं... 1948 में 'ज़िद्दी' से शुरू होकर 1987 में अपनी मृत्यु से केवल एक दिन पहले फिल्म 'वक्त की आवाज़' के मिथुन चक्रवर्ती पर फिल्माए गीत 'गुरु गुरु...' तक के सफर में किशोर बहुत-से सुपरस्टारों की आवाज़ बने रहे, जिनमें राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं...

इन दो के अलावा किशोर ने न सिर्फ संजीव कुमार, बड़े भाई अशोक कुमार, ट्रेजेडी किंग कहे जाने वाले दिलीप कुमार, सुनील दत्त, धर्मेन्द्र, महमूद, प्राण, शशि कपूर, ऋषि कपूर जैसे अभिनेताओं को आवाज़ दी, बल्कि अनिल कपूर, संजय दत्त, चंकी पांडे और सन्नी देओल जैसे कदरन नए अभिनेताओं के गीत भी गाए... यही नहीं, किशोर का एक पुराना रिकॉर्ड किया गीत 'आशिक की है बारात...' वर्ष 1994 में उनकी मृत्यु के सात साल बाद प्रकाश मेहरा की एक टीवी चैनल के लिए बनाई गई फिल्म 'मिस्टर श्रीमती' में एक बिल्कुल नए अभिनेता ऋतुराज और जावेद जाफरी पर फिल्माया गया... इस गीत के साथ किशोर संभवतः दुनिया के पहले ऐसे गायक हैं, जिनकी मौत के इतने साल बाद उनका कोई गीत किसी फिल्म में इस्तेमाल किया गया हो...

वह पैदायशी कलाकार थे... यह तथ्य उस समय साबित हो जाता है, जब आप उनके संगीतबद्ध किए गीतों को सुनते हैं... ख़ुद की बनाई और निर्देशित की हुई फिल्म 'दूर का राही' के गीत 'बेकरार दिल तू गाए जा...' का संगीत और फिल्मांकन ही यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि किशोर की योग्यता को सही अभिव्यक्ति कभी-कभार ही मिल पाई... ऐसी सफलता किसी के भी दिमाग पर सवार हो सकती थी, लेकिन किशोर शायद दुनिया के एकमात्र ऐसे पार्श्वगायक हैं, जिन्होंने अभिनय के दौरान ख़ुद के लिए किसी और गायक को इस्तेमाल किया हो... 'रागिनी' में 'मन मोरा बावरा...' और 'शरारत' में 'अजब है दास्तां तेरी यह ज़िंदगी...' किशोर के ऐसे गीत हैं, जिन्हें मोहम्मद रफी ने गाया...

अपने अलावा भी किशोर ने लगभग सभी संगीत निर्देशकों के लिए गाने गाए हैं, और अधिकतर लोकप्रिय हुए... ओंकार प्रसाद नय्यर के लिए 'रूप तेरा ऐसा...' (एक बार मुस्कुरा दो), लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए 'यह जीवन है...' (पिया का घर), मदन मोहन के लिए 'सिमटी-सी शरमाई-सी...' (परवाना), शंकर-जयकिशन के लिए 'गीत गाता हूं मैं...' (लाल पत्थर), रवींद्र जैन के लिए 'घुंघरू की तरह...' (चोर मचाए शोर), सी रामचंद्र के लिए 'चरणदास को...' (पहली झलक), हेमंत कुमार के लिए 'वो शाम कुछ अजीब थी...' (खामोशी) और बप्पी लाहिरी के लिए 'पग घुंघरू बांध...' (नमकहलाल) कुछ अधिक ही याद किए जाते हैं...

संघर्ष और सफलता-असफलता का जो दौर 1948 में 'ज़िद्दी' से शुरू हुआ था, वह 'आराधना' फिल्म के साथ 1969 में थम गया... उसके बाद से अपने अन्तिम समय तक किशोर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा... इस नए दौर में जो किशोर को हासिल हुआ, वह अकल्पनीय था... कुंदनलाल सहगल और मोहम्मद रफी के बाद वह ऐसे तीसरे गायक थे, जिनके दौर में किसी और गायक के लिए लगभग कोई स्थान नहीं बचा था... इसे साबित करने के लिए यह तथ्य काफ़ी है कि वह एकमात्र ऐसे पुरूष पार्श्वगायक हैं, जिन्हें सबसे लोकप्रिय कहा जाने वाला फिल्मफेयर पुरस्कार आठ बार मिला... पहली बार 1969 में 'आराधना' के 'रूप तेरा मस्ताना...' के लिए फिल्मफेयर ट्राफी उठाने वाले किशोर ने 1975 में 'दिल ऐसा किसी ने...' (अमानुष), 1978 में 'खइके पान...' (डॉन), 1980 में 'हज़ार राहें...' (थोड़ी-सी बेवफाई), 1982 में 'पग घुंघरू...' (नमकहलाल), 1983 में 'अगर तुम न होते...' (अगर तुम न होते), 1984 में 'मंजिलें अपनी जगह हैं...' (शराबी) और 1985 में 'सागर किनारे...' (सागर) के लिए भी फिल्मफेयर पुरस्कार हासिल किया...

किशोर पूरी तरह एक भारतीय गायक रहे... उन्होंने न सिर्फ़ हिन्दी में गाया, बल्कि बांगला, पंजाबी, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगू और कई अन्य भाषाओं के गीतों को भी आवाज़ दी... अपने करियर के दौरान किशोर ने सैकड़ों चेहरों के लिए लगभग 35,000 फिल्मी और गैर-फिल्मी गाने गाए, लगभग 80 फिल्मो में अभिनय किया, 10 फिल्मो का निर्माण किया, और आठ फिल्मों के लिए संगीत निर्देशन का जिम्मा उठाया...

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कैसी भी उम्र के अभिनेता के लिए कैसे भी मूड के गीत को जीवंत बना देने वाले किशोर के बाद आज के नायकों के चेहरों पर सोनू निगम, उदित नारायण, शान, अरिजीत सिंह, मीका सिंह आदि की आवाजें अच्छी भले ही लगती हैं, लेकिन कहीं न कहीं यह एहसास ज़रूर दिलाती हैं कि कहीं न कहीं कुछ खो गया है... 'दूर का राही', 'दूर गगन की छांव में' चला गया है, लेकिन मेरा हिन्दुस्तानी दिल हमेशा कहेगा... 'गाता रहे मेरा दिल...'