नई दिल्ली: अमेरिकन जरनल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रीशन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, खाना जैसे व्हाइट ब्रेड और व्हाइट राइस में शुद्ध कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा होती है। इसके सेवन से पोस्टमेनोपौज़ महिलाओं (मासिक धर्म के बाद वाली महिलाएं) के अंदर डिप्रेशन की समस्या सामने आ रही है। शुद्ध कार्बोहाइड्रेट में भारी मात्रा में ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है। ऐसा खाना बहुत जल्दी शुगर में बदलता है, जिसे रक्त प्रवाह काफी तेज़ी से सोखता है। इसकी वजह से इंसुलिन के लेवल में भी बढ़ोतरी होती है।
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शोधकर्ताओं ने पाया कि रोज़ के आहार में फाइबर, साबुत अनाज़, सब्जियां और ताज़ा फल शामिल करने से डिप्रेशन को कम किया जा सकता है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर (सीयूएमसी), न्यूयॉर्क के जेम्स गैंगविस्च और उनके साथियों ने 1994 और 1998 में यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ व्यमन हेल्थ इनिशिएटिव ऑबज़र्वेशनल स्टडी में 70,000 पोस्टमेनोपौज़ प्रतियोगी महिलाओं के डाटा को देखा। इसमें उन्होंने पाया कि कार्बोहाइड्रेट की ज़्यादा मात्रा लेने से ब्ल्ड शुगर लेवल बढ़ाता है। तरह-तरह का खाना खाने से इसके लेवल में बदलाव भी आता है।
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कार्बोहाइड्रेट जितना शुद्ध होगा, उतना ही ज़्यादा उसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स स्केल होगा, जिसे खाने के बाद 0 से 100 के बीच में खून में मौजूद शुगर की मात्रा से नापा जा सकता है। खोज से पता चला है कि खाने में शुद्ध कार्बोहाइड्रेट की ज़्यादा मात्रा का लेना पोस्टमेनोपौज़ वाली महिलाओं के अंदर मूड में बदलाव, थकान और डिप्रेशन समेत कई लक्षण पैदा करता है।