बढ़ते प्रदूषण से लड़ने के लिए बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाना है ज़रूरी

बढ़ते प्रदूषण से लड़ने के लिए बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाना है ज़रूरी

नई दिल्ली:

मौजूदा समय में विशेष तौर पर राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण के प्रकोप और बच्चों को उससे होने वाले खतरों की आशंकाओं के बीच विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि प्रदूषित जल और खान-पान भी भारतीय बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को खत्म कर रहा है। कई गंभीर रोगों के प्रति उन्हें संवदेनशील बना रहा है। हालांकि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने से बच्चे प्रदूषण से बच सकते हैं।

अमेरिका के नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफर्मेशन (एनसीबीआई) ने भारत के शहरी इलाकों में रहने वाले स्कूली बच्चों की सेहत और पोषण विषय पर शोध किया था, जिसमें यह पता चला है कि तरह-तरह के संक्रमणों की चपेट में आकर हर तीन बच्चों में से एक बच्चे को स्कूल की छुट्टी करनी पड़ती है। शोध के मुताबिक भूजल बेहद प्रदूषित हो चुका है और इसमें खतरनाक रसायन और भारी धातु मौजूद हैं, जो बच्चों के तंत्रिका तंत्र, गुर्दों, पाचन तंत्र समेत उनकी संपूर्ण रोग प्रतिरोधक क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।

फॉर्टिस अस्पताल में नैनोनेटोलॉजी के विभागाध्यक्ष और अतिरिक्त निदेशक डॉ. विवेक जैन कहते हैं कि “वायु और भूजल प्रदूषण के अलावा हमारा खान-पान भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को नुकसान पहुंचाता है। ऐसी स्थिति में बच्चे ज़्यादा संवेदनशील हो जाते हैं। उन्हें सांस की परेशानी, यकृत और गुर्दों संबंधी समस्याएं होने लगती हैं”। उन्होंने ‘इंटरनैशनल जरनल ऑफ बेसिक ऐंड अप्लाइड साइंसेस’ के अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि हम रोजमर्रा में जितनी भी साग-सब्जियां खाते हैं, उनमें धातु तत्वों का असंतुलन रोग प्रतिरोधक क्षमता को नुकसान पहुंचा सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषणजनित रोगों से बचने के लिए रोगप्रतिरोधक क्षमता अच्छी होना ज़रूरी है। इसके लिए बच्चों के आहार पर ध्यान देना ज़रूरी है। चूंकि बच्चों की रोगप्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह विकसित नहीं हुई होती है, इसलिए वे रोगों की चपेट में आसानी से आ जाते हैं।

अपोलो क्रेडल अस्पताल में नियोनेटोलॉजी विभाग में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. अवनीत कौर कहती हैं कि “वायु प्रदूषण में बेहद खतरनाक तरीके से वृद्धि हो रही है। इससे श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंच रहा है। रोगप्रतिरोधक प्रणाली में बदलाव आ रहा है और हृदय-धमनियों को क्षति पहुंच रही है। इससे बच्चे खासतौर से प्रभावित होते हैं। हालांकि रोगप्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो तो इससे बचा जा सकता है”। ‘सेव दी चिल्ड्रन’ की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि भारत के शहरी इलाकों में रहने वाला हर चौथा बच्चा औसतन हर महीने बीमार पड़ता है। इसकी वजह बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना बताया गया है।

सेहत के मामले में बच्चे तो संवेदनशील होते ही हैं, लेकिन प्रदूषण वयस्कों की सेहत पर भी वार कर रहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में तो प्रदूषण की स्थिति और भी भयावह है। दिल्ली को केंद्र में रखते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा किए गए एक शोध में पता चला है कि यहां रहने वाले हर पांच में से एक वयस्क और हर चार में से एक बच्चे को उपरी श्वसन तंत्र में संक्रमण की समस्या होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक बच्चों की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाने के लिए उन्हें विटामिन ए, विटामिन सी और आयरन पर्याप्त मात्रा में देने चाहिए।

अधिकांश माताएं मानती हैं कि बच्चों को अधिकाधिक मात्रा में दूध का सेवन करवाने से उनकी रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाएगी लेकिन भारतीय खाद्य संरक्षण एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की एक रिपोर्ट उनकी सोच को गलत साबित कर रही है। इसके अनुसार बाजार में बिकने वाले 65 से 90 फीसदी दूध मिलावटी हो सकता है। दूध के बजाय बच्चे को पनीर, दही जैसे दूध से बने उत्पादों का अधिक इस्तेमाल करना चाहिए।

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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