सेना के 70 कमांडो ने म्यामांर में उग्रवादियों के खिलाफ मिशन को यूं दिया था अंजाम

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

भारतीय सेना के 21 यूनिट के करीब 70 कमांडरों के एक दल ने म्यांमार सीमा के भीतर रात के अंधियारे में लक्ष्य पर किए गए सटीक हमले में मंगलवार को एनएससीएन (के) एवं केवाईकेएल उग्रवादी समूहों के 38 विद्रोहियों को मार गिराया था।

इन कमांडरों को म्यांमार सीमा से लगने वाले भारतीय क्षेत्र में धुव्र हेलीकॉप्टरों से उतारा गया। इसके बाद वे दो दलों में बंट गए। कमांडर असॉल्ट राइफल्स, रॉकेट लॉन्चर, ग्रेनेड और रात में देख सकने में सक्षम उपकरणों से लैस थे। (Inside स्टोरी: पढ़िए भारतीय सेना के म्यांमार ऑपरेशन के बारे में 7 खास बातें)

सेना के विशेष बल के कमांडो विभाजित होने के बाद एनएसीएन (के) और केवाईकेएल द्वारा संचालित दो शिविरों की ओर बढ़े। माना जाता है कि ये दोनों समूह ही चार जून को घात लगाकर किए गए भीषण हमले के लिए जिम्मेदार हैं, जिनमें 18 सैनिक मारे गए और 11 अन्य घायल हो गए।

शिविर तक पहुंचने से पहले इन कमांडो को जंगलों में करीब पांच किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी पड़ी। सुरक्षा सूत्रों ने बताया कि दोनों दलों में से प्रत्येक को दो उप समूहों में विभाजित किया गया था। इनमें से एक समूह को सीधे हमले की जिम्मेदारी दी गई थी, जबकि दूसरे ने बाहरी घेरा बनाया ताकि किसी भी विद्रोही को बचकर भाग निकलने से रोका जा सके।

वास्तविक अभियान (शिविर पर हमला करना और नष्ट करना) 40 मिनट चला। कमांडो ने मुठभेड़ में न सिर्फ शिविर में मौजूद लोगों को मार गिराया गया, बल्कि रॉकेट लॉन्चर का इस्तेमाल भी किया गया और एक शिविर में आग लगा दी गई।

सूत्रों ने बताया कि अभियान पर नजर रखने के लिए थर्मल इमेजरी का भी इस्तेमाल किया गया। उन्होंने कहा कि म्यांमार के अधिकारियों से भी तालमेल रखा गया था। भारतीय वायु सेना के एमआई 17 हेलीकॉप्टरों को तैयार रखा गया था, ताकि कुछ भी गड़बड़ होने की स्थिति में वे कमांडो को वहां से निकाल सकें।

सूत्रों ने बताया कि यह अभियान विशिष्ट और बेहद सटीक खुफिया सूचनाओं के आधार पर अंजाम दिया गया। इस अभियान का अधीक्षण दीमापुर स्थित 3 कोर के कमांडर लेफ्टीनेंट जनरल विपिन रावत कर रहे थे।

अभियान के लिए अपने ब्रिटेन दौरे को टाल देने वाले सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग सेना मुख्यालय से समन्वय कर रहे थे। उग्रवादियों का सफाया करने का यह निर्णय चार जून को हुए हमले के कुछ ही घंटों बाद एक बैठक में किया गया। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इस बैठक की अध्यक्षता की और रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, जनरल सुभाग एवं अन्य उसमें मौजूद थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभियान के लिए अंतिम मंजूरी दी थी और अभियान का तालमेल डोभाल कर रहे थे।

सूत्रों ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो सेना क्षेत्र में इस तरह के और अभियान को अंजाम देगी। रक्षा राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने बताया कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत 'तुरंत जवाबी कार्रवाई करने के सिद्धांत' का पालन किया है।

राव ने कहा, 'इसके अनुसार अगर आपके साथ कुछ गलत हुआ हो और यदि आप व्यक्ति को पकड़ने के लिए सीमा को पार करते हैं तो अंतरराष्ट्रीय कानून आपको इसकी अनुमति देता है। तुरंत जवाबी कार्रवाई करने के सिद्धांत के अनुसार हमने उनका पीछा किया और दो जगहों पर उनके शिविरों को नष्ट कर दिया।' साथ ही उन्होंने इस बात पर बल दिया कि म्यामांर से इस मामले में तालमेल बनाकर रखा गया।

सेना की 21 पैरा इकाई 3 कोर से जुड़ी है, जिसके अभियान क्षेत्र में मणिपुर और नगालैंड आता है। भारतीय सेना के विशेष बल की इकाई पैरा कमांडो को सीधे कार्रवाई, बंधकों को रिहा कराने, आतंकवाद से निबटने, गैर पारंपरिक युद्ध कौशल, विदेशी आतंरिक रक्षा, विद्रोही गतिविधियों से निबटना, तलाश कर नष्ट करने और लोगों को बचाने जैसे अभियान में लगाया जाता है। सेना के पास विशेष बल की आठ बटालियन हैं। इनके अलावा वायु कारनामों को अंजाम देने के लिए तीन अन्य बटालियन हैं। विशिष्ट भूमिका के चलते विशेष बलों के कर्मियों को अभियानगत दक्षता एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के सबसे बढ़िया स्तर पर रखने की जरूरत होती है।

सूत्रों ने कहा, 'यह अधिकतर स्वैच्छिक होता है। प्रत्येक सैनिक को विभिन्न रेजीमेंट से लिया जाता है और वह विशेष बल में तब तक बना रहता है, जब तक वह निर्धारित मानकों के अनुसार शारीरिक रूप से उपयुक्त बना रहे।' उन्होंने कहा कि सामान्य सैनिकों को विभिन्न दायित्व दिए जाते हैं, जबकि इसके विपरीत विशेष बल के कमांडो का प्रशिक्षण साल भर चलता रहता है।

सूत्रों ने बताया कि विशेष बल के कमांडर दोनों हाथों से फायरिंग करने, तीन दिन बिना सोये अभियान चलाने, आईईडी को निष्क्रिय करने सहित विभिन्न गतिविधियों को अंजाम देने में पारंगत होते हैं।

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पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के बांग्लादेश युद्ध में 2 पारा (वायु अभियान) ने भारत का पहला हवाई हमला करते हुए ढाका के समीप मैमनसिंह जिले में पूंगली पुल पर कब्जा किया था। बाद में ढाका में प्रवेश करने वाली वह पहली इकाई थी। इस अभियान के लिए 2 पारा को कई सम्मानों से नवाजा गया।